Brahmin vote in Uttar Pradesh politics: उत्तर प्रदेश की सियासत में ब्राह्मण वोट बैंक बेहद महत्वपूर्ण है. इसमें भी शक नहीं की ब्राह्मण वर्ग के मतदाताओं की उत्तर प्रदेश में करीब 10 से 11 फ़ीसदी की भागीदारी है ऐसे में इस बड़े वोट बैंक को अपने पाली में लाने का लालच सभी सियासी दलों को रहता है खासतौर से मायावती के सोशल इंजीनियरिंग के प्रयोग के बाद तो उत्तर प्रदेश की सियासत में ब्राह्मण मतदाताओं का कद इतना ऊंचा हो गया है जिसे सभी सियासी दलों को मजबूर किया कि वह ब्राह्मणों को अपने साथ लेकर चलें. विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान भारतीय जनता पार्टी के कुशीनगर से ब्राह्मण विधायक पीएनपाठक के घर पर ब्राह्मण विधायकों और विधान परिषद सदस्यों के सहभोज की तस्वीर भारतीय जनता पार्टी के लिए ही मुसीबत का सबब बन गई है. अब जबकि प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी ने अपने ही भाजपा विधायकों को यह हिदायत जारी की गई तो उसके बाद तो जैसे कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को मौका मिल गया. दोनों प्रमुख विपक्षी दलों ने अपने-अपने स्तर पर ब्राह्मण विधायकों को अपने पक्ष में आने के लिए ऑफर जारी कर दिया.
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समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने क्या दिया ऑफर
सबसे पहले समाजवादी पार्टी ने यह कहना शुरू कर दिया कि जब छत्री जाति के विधायकों ने बैठक की तब उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई लेकिन जैसे ही ब्राह्मण विधायक एकजुट हुए उनको चेतावनी जारी कर दी गई जो इस बात को साबित करती है कि ब्राह्मणों का सम्मान भारतीय जनता पार्टी में नहीं है ऐसे में पिछले दलित और अल्पसंख्यक के साथ ब्राह्मण समाज को समाजवादी पार्टी के साथ आना चाहिए. इधर कांग्रेस पार्टी भी यह दावा कर रही है की सबसे ज्यादा ब्राह्मणों का सम्मान उनकी सरकार में हुआ आजादी के बाद से साल 1989 तक उत्तर प्रदेश के जितने मुख्यमंत्री हुए उसमें से 6 ब्राह्मण जाति के थे और यह सभी कांग्रेस के थे ऐसे में ब्राह्मणों को कांग्रेस के साथ आने पर विचार करना चाहिए
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ब्राह्मण विधायक भाजपा से निराश क्यों
भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश के कल 52 ब्राह्मण विधायकों में से 46 ब्राह्मण विधायकों ने एकजुटता दिखाते हुए बैठक में ब्राह्मण के मौजूदा हालात पर चिंता जाहिर की थी. बैठक में शामिल विधायक शलभ मणि त्रिपाठी के अनुसार बैठक में यह माना गया था कि उत्तर प्रदेश का 90 फ़ीसदी ब्राह्मण मतदाता भारतीय जनता पार्टी को खुलकर वोट करता है फिर भी उन्हें सरकार में वह भागीदारी नहीं मिली जिसकी अपेक्षा थी और संगठन में भी उनका वर्चस्व कम हो रहा है. इस बैठक को मानसून सत्र में हुए छत्री विधायकों की बैठक के जवाब से जोड़कर देखा गया हालांकि बैठक में शामिल होने वाले ब्राह्मण विधायक इससे इनकार कर रहे हैं. वहीं, यूपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी ने तत्काल इस पर सख्त तेवर दिखाये और बाकायदा पत्र लिखकर भविष्य में इसे न दोहराने की हिदायत दी.
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