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26/11 Mumbai Attack : बैसाखी के सहारे कोर्ट आई थी 9 साल की लड़की, जिसने आतंकी कसाब को पहुंचाया अंजाम तक

26/11 Mumbai Attack ; Devika Rotawan : मुंबई हमले के बाद 10 में से इकलौते पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब को पहचानकर फांसी के तख्ते पहुंचाने वाली देविका रोतावन का परिवार आज 15 साल भी मुफलिसी में दिन तोड़ रहा है।

मुंबई हमले की सरवाइवर देविका रोतावन (पहले और अब)।
26/11 Mumbai Attack, मुंबई : आज 26 नवंबर है। ये वही दिन है, जिसे आज से 15 साल पहले समुद्र के रास्ते मुंबई में घुसे आतंकियों ने काले दिन में बदल दिया था। इस दिन को याद करके देश के करोड़ों लोग सिहर उठते हैं। इन्ही करोड़ों में से एक नाम उस लड़की का भी है, जो इसकी भुक्तभोगी है। नाम है देविका रोतावन। आतंकी की गोली से जख्मी होने वाली और फिर आतंकियों के सरगना अजमल कसाब को उसके अंजाम तक पहुंचाने वाली यह लड़की आज 15 साल का लंबा अंतराल बीत जाने के बाद भी न सहने वाला दर्द झेल रही है।

ट्रेन पकड़नी थी और हॉस्टपिटल का बेड मिला देविका को

बता दें कि देविका रोतावन दिल दहला देने वाली उस वारदात के वक्त बांद्रा में एक चॉल में रहते परिवार की महज 9 साल की बच्ची थी। शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन पर अपने पिता नटवरलाल के साथ ट्रेन पकड़ने ही वाली थी कि अचानक उसके एक पैर पर गोली लग गई थी। इसके बाद उसकी एक तस्वीर खासी चर्चा में रही थी, जिसमें वह बैसाखियों के सहारे चलती नजर आ रही है। यह तस्वीर उस वक्त की है, जब देविका होटल ताज से पकड़े गए मौत के सौदागर अजमल कसाब के खिलाफ गवाही देने कोर्ट में पहुंची थी।

अगले महीने 25 साल की हो रही देविका ने कौन-कौन से दर्द देखे

कोर्ट में कसाब की पहचान करने वाली सबसे कम उम्र की गवाह के रूप में पहचान बना चुकी देविका 27 दिसंबर को देविका 25 साल की हो जाएगी। बड़ी बात यह है कि सरकारी मदद के बावजूद देविका और इसका परिवार आज भी उसी मुफलिसी में जी रहा है, जिसमें कि आज से 15 साल पहले था। एक ओर कैंसर ने मां का आंचल पहले ही छीन लिया था, वहीं आतंकी की गोली से मिले दर्द के बाद दूसरा दर्द देविका को स्कूल में साथ पढ़ने वाले बच्चों के द्वारा दूरी बना लिए जाने के रूप में मिला। इसके बाद बाकी परिवार की स्थिति तो पहले से भी खराब हो गई। यह भी पढ़ें: गर्लफ्रेंड के मां-बाप को जिंदा जलाकर मार डाला, 22 साल बाद पकड़ा गया शख्स अपने हालात और इनसे उबरने के लिए देश के सिस्टम से लड़ रही देविका बताती है कि 14 साल पहले काम बंद होने के बाद उसके पिता काम को आज तक नहीं मिल रहा। पीठ की गंभीर बीमारी के चलते भाई जयेश भी काम नहीं कर सकता। उम्मीद है कि जल्द ही वह (देविका खुद) किसी तरह परिवार का गुजारा चलाने लायक हो। हालांकि तंग हालात के बावजूद देविका पूरे हौसले के साथ कहती है, 'पुलिस की वर्दी पहनना, अपराधियों और आतंकवादियों का खात्मा करना ही मेरा लक्ष्य है'। यह भी पढ़ें: हमास ने छोड़े 17 बंधक, 13 इजराइली और चार थाई नागरिकों में कई बच्चे शामिल

फ्लैट का किराया और परिवार के पास आमदन नहीं होना बड़ी परेशानी

हालांकि ऐसा नहीं है कि देविका को प्रशासन की तरफ से मदद नहीं मिली। बीते कुछ बरसों में 13 लाख रुपए के करीब की आर्थिक मदद परिवार को मिल चुकी है, लेकिन बावजूद इसके परिवार तंगहाल है। जहां तक इसकी वजह की बात है एक तो परिवार के पास आमदन का कोई साधन नहीं है और दूसरा पुनर्वास के रूप में परिवार को एक अपार्टमेंट में दिए गए फ्लैट के लिए लगभग 20 हजार रुपए प्रतिमाह से ज्यादा का किराया देना पड़ रहा है। उसका कहना है कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ सिर्फ एक नारे से बढ़कर और कुछ भी नहीं है।


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