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Temples of India: इस मंदिर में भगवान कृष्ण को चढ़ते हैं मिट्टी के पेड़े, जानें चमत्कारिक प्रसाद की कहानी

Temples of India: मथुरा में एक ऐसा मंदिर है, जहां प्रसाद के तौर पर भगवान श्रीकृष्ण को असली नहीं बल्कि मिट्टी के पेड़े चढ़ते हैं और इसे भक्त लोग भी पूरी आस्था और चाव से खाते हैं. आइए जानते हैं, क्यों कहा जाता है इसे चमत्कारिक प्रसाद?

Temples of India: मथुरा और गोकुल की धरती भगवान श्रीकृष्ण की अनगिनत लीलाओं से जुड़ी है. यहां हर घाट, हर गली, हर मंदिर किसी न किसी कथा को अपने भीतर समेटे हुए है. इन्हीं में से एक अनोखी परंपरा देखने को मिलती है, मिट्टी के पेड़ों की, जो न सिर्फ भक्ति की प्रतीक है बल्कि एक चमत्कारिक मान्यता से भी जुड़ी हुई है. आइए जानते हैं, गोकुल के किस मंदिर में भगवान कृष्ण को मिटटी के पेड़े चढ़ते हैं?

यहां भगवान को चढ़ते हैं मिट्टी के पेड़े

गोकुल स्थित यमुना के ब्रह्मांड घाट पर बना है ब्रह्मांड बिहारी मंदिर. यह वही स्थान है, जहाँ माता यशोदा ने बालकृष्ण के मुख में सम्पूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन किए थे. इस मंदिर में भगवान कृष्ण को किसी साधारण प्रसाद से नहीं, बल्कि मिट्टी से बने पेड़ों का भोग लगाया जाता है.

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ये पेड़े देखने में बिल्कुल असली मिठाई जैसे लगते हैं, लेकिन ये पूरी तरह से पवित्र मिट्टी से बनाए जाते हैं. श्रद्धालु इन्हें बड़े चाव से प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.

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चमत्कारिक मान्यता से जुड़ी परंपरा

कहा जाता है कि यदि कोई बच्चा बार-बार मिट्टी खाता है, तो उसे यह मिट्टी का पेड़ा खिला देने से वह मिट्टी खाना छोड़ देता है. स्थानीय लोग इसे भगवान की कृपा मानते हैं. यही वजह है कि देशभर से लोग अपने बच्चों के साथ इस मंदिर में दर्शन करने और यह प्रसाद लेने आते हैं.

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कैसे बनते हैं मिट्टी के पेड़े?

इन पेड़ों को तैयार करने की प्रक्रिया भी बेहद खास है. बरसात के मौसम में यमुना के पवित्र घाटों से मिट्टी निकाली जाती है. इस मिट्टी को कई दिनों तक धूप में सुखाया जाता है, फिर कूटकर और छानकर महीन पाउडर तैयार किया जाता है. इसमें थोड़ी-सी देसी घी और इलायची जैसी सुगंधित चीजें मिलाकर पेड़े का आकार दिया जाता है.

भक्ति से सेवा तक की यात्रा

इन पेड़ों का स्वाद भले ही मिठाई जैसा न हो, लेकिन इनके पीछे की भावना और आस्था हर भक्त के लिए अमूल्य होती है. वहीं, इस परंपरा की सबसे सुंदर बात यह है कि इन पेड़ों की बिक्री से जो भी आय होती है, वह पूरी तरह ब्रह्मांड बिहारी जी की सेवा में लगाई जाती है.

आस्था, परंपरा और चमत्कार का संगम

निस्संदेह, गोकुल का यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भक्ति और लोक आस्था का जीवंत उदाहरण है. यहाँ मिट्टी में भी माधुर्य है, और पेड़ों में भी श्रद्धा की मिठास. शायद इसी को कहते हैं, जहां आस्था मिट्टी से मिलकर भी अमृत बन जाती है.

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है और केवल सूचना के लिए दी जा रही है. News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.


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