Prayagraj Magh Mela 2026: प्रयागराज के संगम तट पर माघ मेले के दौरान एक विशेष साधना परंपरा निभाई जाती है, जिसे कल्पवास कहा जाता है. इसमें श्रद्धालु माघ मास की एक निश्चित अवधि तक संगम के पास रहकर संयमित जीवन जीते हैं. यह साधना आत्मशुद्धि, अनुशासन और ईश्वर भक्ति का मार्ग मानी जाती है. आइए जानते हैं, कल्पवास का व्रत कितने समय का होता है, इसका उद्देश्य और नियम क्या हैं?
कितने समय का व्रत है कल्पवास?
कल्पवास सामान्यतः पौष पूर्णिमा या एकादशी से आरंभ होकर माघ पूर्णिमा तक चलता है. यह लगभग 30 दिन यानी एक माह का व्रत है. कुछ साधक जीवन में बारह वर्षों तक भी यह व्रत करते हैं. माघ मेला 2026 में भी हजारों श्रद्धालु इस परंपरा को निभाएंगे. साल 2026 में प्रयागराज माघ मेला का शुभारंभ 3 जनवरी से हो रहा है, जो 15 फरवरी, 2026 तक चलेगा.
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कल्पवास का रहस्य
कल्पवास का रहस्य बाहरी आडंबर में नहीं, बल्कि अंदरूनी बदलाव में छिपा है. सीमित भोजन, सरल दिनचर्या और नियमित साधना से मन शांत होता है. व्यक्ति अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण सीखता है. यही आत्मिक परिवर्तन कल्पवास का असली फल माना जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो कल्पवास आत्मसंयम की वह साधना है जिसमें व्यक्ति बाहरी सुविधा और दिखावे से दूर होकर अपने भीतर झांकता है. कल्पवास का वास्तविक रहस्य यही है कि यह शरीर से अधिक मन की तपस्या कराता है.
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कल्पवास के मुख्य नियम
एक कल्पवासी को सात्विक और अनुशासित जीवन अपनाना होता है. प्रमुख नियम इस प्रकार हैं:
- प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त सहित तीन बार पवित्र नदी में स्नान
- दिन में केवल एक बार सादा और शुद्ध भोजन
- भूमि पर चटाई या पुआल पर शयन
- ब्रह्मचर्य और इंद्रिय संयम का पालन
- झूठ, क्रोध, लोभ और नशे से दूरी
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क्या करें और क्या न करें
कल्पवास में क्या करें
- जप, ध्यान, पूजा और सत्संग में समय दें
- धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें
- जरूरतमंदों को दान और सेवा करें
- कुटिया के पास तुलसी लगाएं और जौ बोएं
कल्पवास में क्या न करें
- परनिंदा और कटु वचन से बचें
- भो-विलास और दिखावे से दूर रहें
- संकल्प अवधि में मेला क्षेत्र न छोडें
कल्पवास का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यता है कि संगम तट पर कल्पवास करने से पापों का क्षय होता है. इसे मोक्ष की दिशा में एक महत्वपूर्ण साधना माना गया है. शास्त्रों में कहा गया है कि इस दौरान किया गया दान और तप कई वर्षों की तपस्या के समान फल देता है.
मानसिक और शारीरिक लाभ
सात्विक भोजन, नियमित स्नान और सरल जीवन से शरीर को आराम मिलता है. मोबाइल और भागदौड से दूर रहकर मन स्थिर होता है. कई लोग इसे जीवन की सबसे शांत और अनुशासित अवधि बताते हैं. कल्पवास में रेत पर सोने के नियम का पालन जाता है, माना जाता है कि यह अर्थिंग थेरैपी का काम करता है, जिससे तन और मन प्रशांत हो जाता है।
कौन कर सकते हैं कल्पवास?
यह व्रत केवल साधु संतों के लिए नहीं है. गृहस्थ स्त्री और पुरुष भी परिवार सहित कल्पवास कर सकते हैं. प्रशासन द्वारा माघ मेले में कल्पवासियों के लिए विशेष व्यवस्थाएं की जाती हैं.
माघ मेला 2026 में कल्पवास
माघ मेला 2026 में कल्पवास एक बार फिर आस्था, संस्कृति और साधना का संगम बनेगा. संगम तट पर बसे कल्पवासी शिविर भारतीय परंपरा की जीवंत तस्वीर पेश करते हैं. कल्पवास केवल व्रत नहीं, बल्कि जीवन को सरल और सार्थक बनाने की एक सीख है.
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है।News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।