Judiciary : जस्टिस कृष्णन विनोद चंद्रन ने आज सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में शपथ ली। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने जस्टिस चंद्रन को शपथ दिलाई। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 7 जनवरी को पटना हाई कोर्ट के जज जस्टिस कृष्णन विनोद चंद्रन को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की थी। सरकार ने 13 जनवरी को जस्टिस कृष्णन विनोद चंद्रन को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश मान ली थी। जस्टिस चंद्रन के शपथ लेने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 33 हो गई है। एक पद अभी भी खाली है।
जस्टिस चंद्रन मूलरूप से केरल हाई कोर्ट से हैं। उनका जन्म 25 अप्रैल 1963 को हुआ था। तिरुअनंतपुरम के केरल लॉ कॉलेज से वकालत की डिग्री पाने के बाद उन्होंने 1991 में प्रैक्टिस शुरू की। जस्टिस चंद्रन 2011 में केरल हाई कोर्ट के जज बने। 27 मार्च 2023 को वह पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस नियुक्त हुए। कॉलेजियम ने जस्टिस चंद्रन के नाम की सिफारिश करते हुए लिखा था कि केरल हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस सीटी रवि कुमार इसी 5 जनवरी को रिटायर हुए थे, जो केरल हाईकोर्ट से आए हुए थे। जबकि झारखंड, जम्मू कश्मीर, मेघालय, उड़ीसा, सिक्किम और त्रिपुरा हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।
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सरकार ने कॉलेजियम की सिफारिश पर मुहर लगाई
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 7 जनवरी की उसी बैठक में जिसमें जस्टिस के विनोद चन्द्रन को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की थी, बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय को दिल्ली हाई कोर्ट और तेलंगाना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस आलोक अराधे को बॉम्बे हाई कोर्ट ट्रांफसर करने की सिफारिश की थी। 14 जनवरी को सरकार ने कॉलेजियम की उस सिफारिश पर भी मुहर लगा दी। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में मुख्य न्यायाधीश सहित पांच वरिष्ठतम जज शामिल होते हैं। मौजूदा कॉलेजियम में CJI जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस अभय एस ओका शामिल हैं।
कॉलेजियम की कुछ सिफारिशें सरकार के पास अभी भी लंबित
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की 7 जनवरी की सिफारिश को बिना किसी विलंब के एक हफ्ते के भीतर सरकार की मुहर लगाने से ऐसा लगता है कि कॉलेजियम की सिफारिशों को सरकार गंभीरता से लेती है और तत्काल उसपर मुहर लगा देती है। जबकि वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। कॉलेजियम की कुछ सिफारिशें लंबे समय तक मंत्रालय में धूल फांकती रहती हैं। उदाहरण के लिए पिछले साल, 27 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सरकार को सिफारिश भेजी थी कि दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस सीडी सिंह का ट्रांसफर इलाहाबाद हाई कोर्ट कर दिया जाए। उस पर अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 3 अगस्त 2023 को गुजरात हाई कोर्ट के पांच जजों के ट्रांसफर की सिफारिश सरकार के पास भेजी थी। डेढ़ साल पूरा होने को है, लेकिन सरकार ने अभी तक कॉलेजियम की उस सिफारिश पर कोई फैसला नहीं किया है। कॉलेजियम की सिफारिश की फाइल केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय के दफ्तर में आज भी कहीं धूल फांक रही है।
SC ने जजों के ट्रांसफर मामले में सरकार को आड़े हाथों लिया
पिछले साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्र राव को झारखंड हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाने की सिफारिश की। सरकार ने कॉलेजियम की सिफारिश पर निर्णय लेने में देरी की तो झारखंड सरकार, केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट आ गई। सुप्रीम कोर्ट ने जब सरकार को आड़े हाथों लिया, तब जाकर जस्टिस एमएस रामचंद्र राव का ट्रांफसर हुआ।
कॉलेजियम की सिफारिशों पर फैसला लेने को समय सीमा तय नहीं
कॉलेजियम की सिफारिशों पर निर्णय लेने की कोई समय सीमा तय नहीं है। यह सरकार पर निर्भर करता है कि कॉलेजियम की किस सिफारिश पर तत्काल निर्णय करती है और किसे ठंडे बस्ते में डालती है। व्यवस्था के मुताबिक कॉलेजियम की सिफारिश को सरकार चाहे तो पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम को लौटा सकती है। लेकिन, अगर कॉलेजियम उसी नाम को दोबारा भेजती है तो सरकार को उसे मानना होगा। कई बार कॉलेजियम के द्वारा भेजे गए नामों पर सरकार को ऐतराज होता है तो इसी प्रक्रिया के दौरान सरकार फाइल पर निर्णय लेने में देरी करती है। जिसके चलते कई नियुक्तियां नहीं हो पाती हैं। इसका सबसे उपयुक्त उदाहरण सुप्रीम कोर्ट के वकील और पूर्व सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम से जुड़ा विवाद है। कॉलेजियम ने उनको सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त करने की सिफारिश की। गोपाल सुब्रमण्यम के अलावा कॉलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट के वकील रोहिंटन नरीमन के नाम की भी सिफारिश थी। बाकी दो हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को सुप्रीम कोर्ट के जज बनाने की सिफारिश की गई थी।
गोपाल सुब्रमण्यम को जज बनाने के पक्ष में नहीं थी सरकार
सरकार गोपाल सुब्रमण्यम को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने के पक्ष में नहीं थी, इसलिए बाकी नामों पर सरकार ने मुहर लगा दी और गोपाल सुब्रमण्यम का नाम वापस लौटा दिया था। कॉलेजियम उनके नाम को दोबारा सरकार को भेजती, उससे पहले ही गोपाल सुब्रमण्यम ने घोषणा कर दी कि वो सुप्रीम कोर्ट का जज नहीं बनना चाहते। गोपाल सुब्रमण्यम सोहराबुद्दीन फेक एनकाउंटर मामले में सुप्रीम कोर्ट में एमिकस क्यूरी रहे थे और कोर्ट में रोज इस मामले से जुड़े नए नए तथ्य लाते थे। इसके बाद इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। उस समय गुजरात सरकार के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे।
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सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की मांग
सुप्रीम कोर्ट में 2023 में एक याचिका आई थी, जिसमें मांग की गई थी कि कॉलेजियम की सिफारिश पर निर्णय के लिए समय सीमा तय होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से इस संबंध में उनकी राय मांगी थी। इस बीच कॉलेजियम की सिफारिशों पर निर्णय लेने में सरकार मनमानी करने लगी। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने तब नाराजगी जताते हुए कहा था कि कॉलेजियम कोई सर्च पैनल नहीं है। कॉलेजियम की सिफारिशों को लेकर टाल मटोल करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई पर विचार करने का फैसला किया। सुप्रीम कोर्ट में आज भी यह याचिका लंबित है। याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने इस मामले पर सुनवाई नहीं होने को लेकर जब संबंधित बेंच के जज अब रिटायर्ड जस्टिस संजय किशन कौल से अनुरोध किया तब जस्टिस कौल ने कहा था कि ‘मुझे नहीं पता कि अवमानना मामले में सुनवाई क्यों नहीं हो रही, याचिका सुनवाई के लिए लिस्ट क्यों नहीं हो रही है? CJI जस्टिस चंद्रचूड जरूर जानते होंगे’ और तभी उन्होंने ये भी कहा था कि ‘कुछ बातें अनकही ही अच्छी होती हैं… Some things are best left unsaid.