कोर्ट के सारे फैसले जो कानून संगत हों वो न्यायसंगत भी हों ये जरूरी नहीं होता! इलाहाबाद हाई कार्ट के जिस फैसले पर आज चर्चा हो रही है वो कानून संगत भले हो, न्यायसंगत तो नहीं कहा जा सकता। अब सवाल ये है कि कैसे ? इस घटना में जज ने अपने फैसले में जो लिखा है, तकनीकी रूप से वो है जो आईपीसी के प्रावधान कहते हैं। हाइ कोर्ट ने कहा कि इस मामले में बलात्कार के प्रयास का आरोप नहीं बनता है। आरोपितों के खिलाफ आईपीसी की धारा धारा 354-बी और पॉक्सो की धारा 9 और 10 के तहत मुकदमा चलाया जाए।
क्या हैं इन धाराओं में सजा के प्रावधान?
आईपीसी की धारा 354-बी के मुताबिक किसी महिला को निर्वस्त्र करने या नग्न होने के लिए मजबूर करने के इरादे से उस पर हमला करने या आपराधिक बल प्रयोग करने से संबंधित है, जिसके लिए 3 से 7 साल तक की सजा हो सकती है। पॉक्सो की धारा 9 के मुताबिक, 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे के साथ कोई यौन शोषण करता है उसे 7 साल तक की सजा हो सकती है।
कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?
कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि इस मामले में बलात्कार के प्रयास का आरोप नहीं बनता है। कोर्ट ने कहा है कि आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों और मामले के तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध करना कि बलात्कार का प्रयास हुआ, संभव नहीं था। इसके लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना पड़ता कि आरोपियों की कार्रवाई अपराध करने की तैयारी से आगे बढ़ चुकी थी। कानून की किताब में धारा 354-बी ऐसे मामले के लिए रखा गया है, जिसमें पीड़िता दुष्कर्म से बच गई हो। इस आधार पर देखें तो हाई कोर्ट के जज ने कानून के मुताबिक फैसला दिया है, इसलिए इसे हम कानून संगत कह सकते हैं!
अब आइए समझते हैं कि यह फैसला न्याय संगत क्यों नहीं है?
केस के तथ्य के मुताबिक, आरोपियों पवन और आकाश ने 11 वर्षीय पीड़िता के ब्रेस्ट पकड़े और आकाश ने उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया एवं उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। इस बीच कुछ लोग वहां आ गए और आरोपी पीड़िता को छोड़कर भाग गए। मतलब अगर वहां लोग नहीं आए होते तो दुष्कर्म की घटना घटती! क्योंकि आरोपियों ने जो भी कृत्य किया था वह उसकी तैयारी थी। जज को इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए था।
जज से कहां हुई गलती?
जज से यहां गलती हुई है। जज ने आईपीसी के प्रावधानों की तकनीकी व्याख्या की है। ऐसे मामलों में कोर्ट का अप्रोच विक्टिम सेंट्रिक होता है, जबकि यहां जज ने आरोपी के पक्ष में कानून की तकनीकी व्याख्या की है। इसलिए हम कह सकते हैं कि यह फैसला न्यायसंगत नहीं है! हालांकि, कोर्ट ने आरोपियों को बरी नहीं किया है। उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 354-बी और पॉक्सो की धारा 9 और 10 के तहत मुकदमा चलेगा। हो सकता है मामला सुप्रीम कोर्ट में जाए और सुप्रीम कोर्ट इस मामले में विक्टिम सेंट्रिक अप्रोच अपनाकर न्यायसंगत फैसला सुनाए।