भुवन ऋभु
विवाह के लिए शुभ माने जाने वाले अक्षय तृतीया पर बड़े पैमाने पर बाल विवाहों को एक तरह से सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है। मुहुर्त कितना भी शुभ हो, लेकिन कानून को ठेंगा दिखाते हुए किए गए बाल विवाहों का नतीजा बच्चों से बलात्कार के रूप में सामने आता है। लिहाजा बच्चियों का जीवन बचाने के लिए इस अक्षय तृतीया बाल विवाह की प्रथा को तिलांजलि देने का मुहूर्त आ गया है।
हाल ही में हम एक ऐसी आपराधिक घटना के गवाह बने, जिससे दुनिया के सभी कानूनविदों और मानव अधिकारों की रक्षा की बात करने वाले हर व्यक्ति का सिर शर्म से झुक जाए। अफ्रीकी देश घाना के एक सम्मानित मजहबी नेता और 62 साल के बुजुर्गवार कैमरे की मौजूदगी में पूरे रीतिरिवाजों के साथ 12 साल की एक बच्ची से विवाह रचा रहे थे। इस समारोह का गवाह बनने के लिए बड़ी तादाद में उनके अनुयायी भी मौजूद थे।
बुजुर्गवार मजहबी नेता के इस कृत्य से बहाने से ही सही, बाल विवाह का मुद्दा एक बार फिर दुनियाभर में चर्चा में आ गया। ज्यादातर लोगों ने क्षोभ और नाराजगी जताई। लेकिन हालात हमारे यहां भी कुछ बेहतर नहीं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएचएफएस) के आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में भी हर चौथी लड़की का विवाह उसके 18 साल के होने से पहले हो जाता है। देश के 257 जिले ऐसे हैं, जहां बाल विवाह की दर 23.3 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
और जब आप यह आलेख पढ़ रहे होंगे, तो ध्यान रखें कि हजारों परिवार 10 मई को पड़ने वाली अक्षय तृतीया या आखा तीज पर अपने बच्चों को विवाह का जोड़ा पहनाने की तैयारी में बैठे होंगे। विवाह के लिए शुभ माने जाने वाले इस दिन बड़े पैमाने पर बाल विवाह करने की एक तरह से सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है। मुहुर्त कितना भी शुभ हो, लेकिन कानून को ठेंगा दिखाते हुए किए गए बाल विवाहों का नतीजा बच्चों से दुष्कर्म के रूप में सामने आता है। लिहाजा इसे रोकने की जरूरत है।
ये जरूर कहा जा सकता है कि मौजूदा समय में बाल विवाह को रोकने के लिए जितने गंभीर प्रयास भारत में हो रहे हैं, उतने कहीं और नहीं। पिछले साल 2023 में हमने बाल विवाह के खिलाफ दुनिया की सबसे बड़ी लामबंदी देखी। विभिन्न राज्यों के 54 सरकारी विभागों के नेतृत्व में चली इस मुहिम में ‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ के तहत पांच करोड़ भारतवासियों ने बाल विवाह के खिलाफ शपथ ली। बाल विवाह के खिलाफ अलख जगाने हजारों की संख्या में महिलाएं सड़कों पर उतरीं। बाल विवाह के पूरी तरह से खात्मे की उनकी मांग को बच्चों, बिरादरी के सदस्यों, गांवों-कस्बों के बुजुर्गों, पंचायत सदस्यों, सरकारी प्रतिनिधियों और गैरसरकारी संगठनों सहित तमाम अन्य लोगों का सहयोग व समर्थन मिला।
सुदूर इलाकों में जमीन पर अभियान चला रहे इन संगठनों के लिए यह अक्षय तृतीया परीक्षा की घड़ी है। जब उन्हें पांच करोड़ लोगों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ दिलाने के नतीजे देखने को मिलेंगे। ‘रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई’ की परंपरा वाले इस देश में वचन की एक पवित्रता रही है। माना जा सकता है कि जिन लोगों ने यह शपथ ली है, वे उसे तोड़ेंगे नहीं। फिर भी चौकस रहते हुए राज्य सरकारों को अक्षय तृतीया के दिन सामूहिक विवाहों के चलन को चुनौती के बजाय एक अवसर के रूप में देखना चाहिए कि किस तरह जागरूकता के प्रसार और कानून के चाबुक से वे इसे रोक सकते हैं।
जागरूकता अभियान के तहत स्कूलों में कार्यशालाएं, नुक्कड़ नाटक और विवाह करने जा रहे लड़के और लड़की की उम्र की जांच जैसे कुछ कदम उठाए जा सकते हैं। अगर कुछ और चाहते हैं तो लोगों से अनुरोध किया जा सकता है कि वे है कि विवाह के निमंत्रण पत्र पर लड़के व लड़की की जन्मतिथि अंकित करें।
दूसरा, बाल विवाह रोकने के लिए बने कानून बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (पीसीएमए) 2006 पर कड़ाई से अमल सुनिश्चित करना जरूरी है। बाल कल्याण समितियों जैसी एजेंसियों को बाल विवाह रोकने के लिए प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के समान स्टे ऑर्डर या निषेधाज्ञा जारी करने जैसी शक्तियां देकर सुनिश्चित किया जा सकता है। पीसीएमए एक्ट के तहत बाल विवाह को प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की ओर से जारी आदेश से रोका जा सकता है। इस आदेश के बावजूद अगर विवाह होता है, तो कानून की नजर में वह रद्द और अवैध है। लेकिन ज्यादातर मामलों में बाल कल्याण समितियों की भूमिका देखभाल व सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों के अल्पकालिक पुनर्वास तक सीमित है।
बाल विवाह की रोकथाम में पंचायतों की भूमिका खासी अहम हो सकती है। पंचायतें पीसीएमए के प्रभावी क्रियान्वयन की निगरानी के लिए गांव, प्रखंड व जिला स्तर पर बाल कल्याण एवं सुरक्षा समितियां गठित कर सकती हैं। इसके अलावा ये उन अभिभावकों और उनके रिश्तेदारों के लिए काउंसलिंग सत्रों का आयोजन कर सकती है। जो अपने बच्चों के विवाह की योजना बना रहे हैं। इन समितियों को स्कूली पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले और बगैर सूचना दिए सात दिन से ज्यादा गैरहाजिर रहने वाले बच्चों की खोज खबर रखने और उनकी निगरानी का जिम्मा भी सौंपा जा सकता है। तीसरे, निवारक उपाय के रूप में पीसीएमए पर सख्ती से अमल के अलावा ट्रैफिकिंग, बच्चों से बलात्कार और पॉक्सो जैसे आपराधिक कानूनों के प्रावधान जहां भी लागू हो सकते हैं, वहां किए जाएं।
इससे एक संदेश जाएगा कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीर है। कड़ी कार्रवाइयों के जरिए पुजारियों, मौलवियों, पादरियों, सजावट करने वालों, भोजन व मिष्ठान बनाने वालों, बैंड बाजा वालों और इन शादियों में हिस्सा लेने वाले लोगों को एक सख्त संदेश देने की जरूरत है। असम में जनवरी 2023 से जारी अभियान तमाम राज्य सरकारों के लिए एक उदाहरण पेश करता है कि बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में कानूनी उपायों का इस्तेमाल कितना प्रभावी भूमिका निभा सकता है। चौथा, 18 वर्ष की उम्र तक सभी बच्चों को निशुल्क गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के वायदे को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल कर राजनीतिक दलों के लिए यह दिखाने का समय है कि वे बाल विवाह के खात्मे के लिए गंभीर हैं। स्वस्थ, सुशिक्षित एवं समृद्ध नागरिक किसी भी लोकतंत्र के खाद-पानी हैं।
राहत की बात है कि घाना की बच्ची का मामला चर्चा-ए-आम हो गया। ऐसे मामलों को उछाले जाने की जरूरत है, क्योंकि असली समस्या ये है कि बाल विवाह के मामले सामने नहीं आ पाते। आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर मिनट तीन बाल विवाह होते हैं। लेकिन रोजाना सिर्फ तीन मामले दर्ज होते हैं। यानी बाल विवाह रोजाना हजारों बच्चियों का बचपन छीन रहा है और हम अनजान हैं। ये हालात बदलने चाहिए। एक सभ्य समाज के लिए एक बच्ची का विवाह, एक बच्ची से बलात्कार भी शर्मनाक है और पूरी तरह अस्वीकार्य है। हमें यह तय करने की जरूरत है कि इस बार की अक्षय तृतीया कुछ अलग होगी।
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यह वो शुभ घड़ी होगी, जब कानून लागू करने वाली एजेंसियां बाल विवाह की रोकथाम के लिए ऐसे सख्त और प्रभावी कदम उठाएंगी। जैसे पहले कभी नहीं देखे गए। निश्चित रूप से यह संभव है। एक तरफ जहां घाना का मामला है, तो वहीं दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश के कुरनूल की एक बेहद गरीब पृष्ठभूमि की बच्ची का मामला है। जो पढ़ना चाहती थी। बच्ची ने स्थानीय विधायक से संपर्क कर अपना बाल विवाह रुकवाया और फिर जिलाधिकारी ने उसका कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में दाखिला कराया। वो बच्ची इस बार आंध्र प्रदेश बोर्ड की बारहवीं की परीक्षा में अव्वल आई है। हमें अपनी बच्चियों को इस तरह के अवसर देने की जरूरत है। क्योंकि अगर हम अपने बच्चों की सुरक्षा में विफल रहते हैं, तो प्रगति व विकास के हमारे सारे दावे निराधार माने जाएंगे।
(प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता भुवन ऋभु चर्चित किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन : टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज के लेखक हैं। इस किताब में सुझाई गई रणनीतियों के आधार पर देश में बाल विवाह के लिहाज से संवेदनशील 300 जिलों में बाल विवाह मुक्त भारत अभियान चलाया जा रहा है।)