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खेलते-खेलते बच्चा करने लग जाता है खिलौनों से बातें? पेरेंट्स को डेवलपमेंट की ये स्टेज पता होनी चाहिए

Why do Babies Talk to Their Toys: अगर आपने भी बच्चों को खिलौनों से बात करते देखा है तो आपको परेशान होने या ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है क्योंकि रिसर्च के मुताबिक बच्चों का खिलौनों से बात करना मेंटल और इमोशनल डेवलपमेंट का नॉर्मल हिस्सा होता है.

बच्चों का उम्र के साथ यह व्यवहार बदलता रहता है. Image Credit- Freepik

Are Talking Toys Good For Babies: कई बार बच्चा खेलते-खेलते खिलौने से बात करने लगता है. ऐसे में कई पेरेंट्स को लगता है कि उनके (Why do Kids Talk to Themselves When They Play) बच्चे का दिमागी संतुलन खराब हो रहा है या उसे कुछ परेशानी हो रही है, लेकिन ऐसा नहीं है. कई रिसर्च में इसे बहुत ही नॉर्मल व्यवहार कहा गया है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बच्चों का खिलौनों से बात करना मेंटल और इमोशनल डेवलपमेंट का नॉर्मल (Emotional Development) हिस्सा है. इस उम्र में बच्चे अक्सर अपने दोस्त खिलौनों को मान लेते हैं और अपनी कल्पना शक्ति का इस्तेमाल कर रहे होते हैं.

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क्या है खिलौनों से बात करने का मतलब?

जब बच्चा बड़ा होता है तो वो बोलना सीखता है और अपनी काल्पनिक दुनिया (Emotional Development of Child) में जीता है. इसे साइकोलॉजी में इमेजिनेटिव प्ले कहा जाता है. खिलौनों से बात करना उनकी इमेजिनेशन और क्रिएटिव थिंकिंग होती है. ऐसे बच्चे अक्सर दिमाग के तेज होते हैं.  

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किस उम्र में नजर आता है ऐसा व्यवहार?

वैसे तो ये बच्चे के दिमाग पर निर्भर (Emotional Development Examples) करता है. लेकिन ज्यादातर यह व्यवहार 2 से 5 साल की उम्र के बच्चों में नजर आता है. इस दौरान वे अपने आसपास की चीजों को इंसान की तरह ट्रीट करने लगते हैं और फिर बच्चे सीखते हुए खिलौनों से बात करते हैं.

कब पेरेंट्स को चिंता करनी चाहिए?

  • बच्चा किसी से बिल्कुल भी बात ना करे.
  • हर वक्त अकेला रहकर खिलौनों से बात करे.
  • दिमाग पर जोर डालने लगे.
  • 5–6 साल के बाद भी काल्पनिक दुनिया में फर्क न समझ पाए.

बच्चे की डेवलपमेंट की ये कौन सी है?

यह बच्चों की पहली दूसरी स्टेज है, जब बच्चा चीजें समझ कर बोलने की कोशिश करता है. साथ ही, बच्चा इमोशनल डेवलपमेंट के दौर में होता है, क्योंकि वह खिलौनों को भी अपना दोस्त समझने लगता है. उम्र के साथ यह व्यवहार बदलता रहता है. ऐसे में आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.

पेरेंट्स को क्या करना चाहिए?

  • बच्चे से बात करें और उनकी बात सुनें
  • उसके साथ खेलें और सवाल पूछें
  • उसकी कल्पनाओं को निखरने दें
  • प्यार और भरोसे का माहौल बनाए रखें

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