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Black Pottery: मणिपुर के आदिवासियों की विरासत, कुकिंग-सर्विंग के साथ सेहत को भी होगा लाभ

Black Pottery: मिट्टी के बर्तनों वाली कलाकारी तो हमारे देश की एक अहम पहचान है। आज हम आपको ब्लैक पॉटरी के बारे में बताएंगे, जो मणिपुर राज्य की खासियत है। आइए जानते हैं इसके बारे में।

Black Pottery: भारत ऐसा देश है, जिसके हर कोने से कला की महक आती है। कशमीर से कन्याकुमारी तक हर राज्य की अपनी कोई न कोई खासियत होती है। मिट्टी के बर्तनों के बारे में तो आप सभी जानते होंगे। एक दौर था जब हमारे देश में सिर्फ और सिर्फ मिट्टी के बर्तनों का ही प्रयोग किया जाता था। मगर अब लोग मॉडर्न हो गए है, जिस वजह से बर्तनों में भी बदलाव हो गया है। आपने कभी ब्लैक पॉटरी के बारे में सुना है? ब्लैक पॉटरी मतलब काली मिट्टी के बर्तन। यह बर्तन मणिपुर कि विशेषता है।

उखरूल जिला है ब्लैक पॉटरी हब

मणिपुर का उखरूल जिला अपनी सुंदर पहाड़ियों और पुराने शिल्प के घरों के लिए भी मशहूर है। यहां के घर भी परंपरा और समुदाय की बात को दर्शाता है। यह एक सांस्कृतिक धरोहर है, जो अपनी पारंपरिक कला ब्लैक पॉटरी के लिए मशहूर है। यहां के नुंगबी गांव के तांगखुल नागा जनजाती के लोग प्रसिद्ध काली मिट्टी के बर्तन बनाते हैं। ये भी पढ़ें- Travel Destination: ट्रिप का कर रहे हैं प्लान? घूम आएं पटनीटॉप के पास ये बेहतरीन हिल स्टेशन

क्यों खास है ये बर्तन?

ब्लैक पॉटरी जिसे लोंगपी पॉटरी भी कहते हैं। इस जिले की मशहूर और सांस्कृतिक कला है। इसमें बर्तन बनाने के लिए काली मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। इस मिट्टी के बर्तनों की खासियत यही है कि ये बर्तन पूरी तरह से हाथों की मदद से बनाए जाते हैं। इसे बनाने वाले कुम्हार बिना चाक की मदद से बर्तन बनाते हैं। कुम्हार बर्तन बनाने के लिए कुचले हुए सर्पीन पत्थर और प्राकृतिक मिट्टी के मिश्रण से बर्तन बनाते हैं।

कहां से आती है ये मिट्टी?

इन बर्तनों को बनाने वाले कुम्हार पहले इस मिट्टी को खोजने गहरे घने जंगलों में जाते हैं, जहां उन्हें इनके पत्थर मिलते हैं। वहां से प्राप्त पत्थरों को पीसकर बारिक पाउडर बनाया जाता है। इसके बाद इन्हें पानी में भिगोकर रखा जाता है फिर सुंदर बर्तनों का आकार दिया जाता है।

कैसे बनते हैं बर्तन?

इन बर्तनों को आकृति देने के बाद धूप में इन्हें सुखाया जाता है, ताकि बर्तन सही से सख्त हो जाए। अंतिम चरण में इन बर्तनों को पारंपरिक भट्टी में पकाया जाता है, जिस वजह से इन पर काला रंग और गहरा हो जाता है। ये बर्तन भट्टी पर पकाए जाने के बाद हर वातावरण और पर्यावरण में उपयोग करने के लिए अनुकूल हो जाते हैं।

मिट्टी इकट्ठा करना आसान नहीं

न्यूज एजेंसी ANI के अनुसार, स्थानीय कारीगर सोमी शेरोन ने बताया कि उन्हें इस मिट्टी को इकट्ठा करने के लिए दूर दराज और काफी गहरे जंगलों के अंदर जाना पड़ता है। इससे पीसने के लिए उन्हें अपने हाथों का इस्तेमाल करना पड़ता है, जो मेहनतभरा काम होता है। वे भी कारीगर हैं और बताते हैं कि गांव के 200 परिवार इस काम में लगे हुए हैं।

पकाने-परोसने के लिए परफेक्ट

काली मिट्टी के बर्तन सिर्फ शिल्पकारी नहीं है। यह बर्तर टिकाऊ है। स्वाभाविक रूप से ये बर्तन टॉक्सिन फ्री और खाने को गर्म रखने के लिए बनाए गए हैं। इन बर्तनों में खाना पकाना भी आसान है और इनमें खाना परोसा भी जा सकता है। वहां के रेस्टोरेंट में भी इन बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है, जिस वजह से ये काफी लोकप्रिय हो गए हैं। ये भी पढ़ें- Popular Indian Art: भारतीय कला से सजाएं अपना आशियाना, हर मेहमान कहेगा वाह


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