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जान पर खेलकर किसान करते हैं सिंघाड़े की खेती, क्यों उन्हें अपने शरीर पर लगाना पड़ता हैं इंजन ऑयल?

सिंघाड़ा किसानों के लिए जानलेवा खेती का प्रतीक बन चुका है. मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के जयस्वरूप जैसे किसान हर दिन अपने शरीर पर जला हुआ मोबिल (इंजन ऑयल) लगाकर तालाब में उतरते हैं.

सिंघाड़ा तो आपमें से कई लोगों देखा और खाया ही होगा. सिंघाड़ा एक ऐसा फल है, जिसको अलग-अलग जरूरतों के हिसाब से खाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. व्रत में सिंघाड़े का आटा खाना हो या, सामान्य दिनों में इसकी सब्जी. सिंघाड़े को लोग कच्चा या उबाल के भी खाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं सिंघाड़े की खेती करना किसी जानलेवा खेल से कम नहीं. बहुत कम लोग जानते हैं कि सिंघाड़े की खेती करने वाले किसान अक्सर अपने शरीर पर जला हुआ मोबिल लगाकर पानी में उतरते हैं. इसके पीछे कई वजहें हो सकती हैं.

जान पर खेलकर होती है सिंघाड़े की खेती

न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार, सिंघाड़ा किसानों के लिए जानलेवा खेती का प्रतीक बन चुका है. मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के जयस्वरूप जैसे किसान हर दिन अपने शरीर पर जला हुआ मोबिल (इंजन ऑयल) लगाकर तालाब में उतरते हैं. ऐसा कोई एक दिन नहीं, बल्कि तीन-तीन महीनों तक लगातार करना पड़ता है. जयस्वरूप पिछले तीन सालों से सिंघाड़ा की खेती कर रहे हैं. वे बताते हैं कि फसल तो तीन महीने में तैयार हो जाती है, लेकिन इस दौरान किसानों को रोजाना कई घंटे पानी में डूबकर काम करना पड़ता है.

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खतरनाक जीवों और बीमारी का डर


सिंघाड़ा पानी में उगता है और पानी के नीचे कई तरह के जलीय जीव रहते हैं, जैसे- जहरीले सांप, केकड़े, और अन्य कीड़े जो कभी भी काट सकते हैं. इस वजह से किसानों को हर दिन खतरे का सामना करना पड़ता है. पानी में लगातार रहने की वजह से शरीर में खाज, खुजली और फंगल इंफेक्शन जैसी समस्याएं भी आम हैं. जयस्वरूप बताते हैं कि कभी-कभी उंगलियां तक सड़ने लगती हैं.

जला हुआ मोबिल बनता है ढाल


किसान जब पानी में उतरने से शरीर पर खाज-खुजली बढ़ जाती है, तो गरीब किसान उसके इलाज के लिए दवाई नहीं खरीद पाते. ऐसे में उनके लिए जला हुआ मोबिल ही 'सस्ता उपाय' बन जाता है. किसान शरीर पर जला हुआ लुब्रिकेंट लगाते हैं ताकि त्वचा की खुजली और बैक्टीरियल इंफेक्शन से कुछ राहत मिल सके. वे बताते हैं कि मोबिल न लगाएं तो हालत और बिगड़ जाती है, त्वचा गलने तक की नौबत आ जाती है.

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