प्रशांत देव, नई दिल्ली
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को राज्यसभा के इंटर्न्स के छठे बैच को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि अब अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश जारी करेंगी, ऐसी स्थिति हम कभी नहीं बना सकते। बिलों को मंज़ूरी देने की समय सीमा को लेकर कुछ ही समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। फैसले में बिलों को मंजूरी देने को लेकर राष्ट्रपति और राज्यपाल को समय सीमा तय करने के लिए कहा गया था। इसके कुछ ही दिन बाद अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका को लेकर सख्त शब्दों का प्रयोग किया है। धनखड़ ने कहा कि मैं हाल ही की घटनाओं का उल्लेख करता हूं। वे हमारे दिमाग पर छाई हुई हैं। 14 और 15 मार्च की रात को नई दिल्ली में एक न्यायाधीश के निवास पर एक घटना हुई। 7 दिनों तक किसी को इसके बारे में पता नहीं था।
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हमें अपने आपसे सवाल पूछने होंगे। क्या देरी समझने योग्य है, क्षमा करने योग्य है? क्या यह कुछ मौलिक प्रश्न नहीं उठाता? किसी साधारण स्थिति में कानून के शासन को परिभाषित करती हैं। यह केवल 21 मार्च को था, जब एक समाचार पत्र द्वारा खुलासा किया गया कि देश के लोग पहले कभी इतने स्तब्ध नहीं हुए थे। सौभाग्य से हमें अधिकृत स्रोत भारत के सर्वोच्च न्यायालय से इनपुट मिला। और इनपुट ने दोषपूर्णता का संकेत दिया। इनपुट से संदेह नहीं हुआ कि कुछ गलत था।
Hon’ble Vice-President, and Chairman, Rajya Sabha, Shri Jagdeep Dhankhar presided over the Valedictory Function of the 6th Rajya Sabha Internship Program at Vice-President’s Enclave today. #RajyaSabha pic.twitter.com/QPBdLxUkKp
— Vice-President of India (@VPIndia) April 17, 2025
जलियांबाग नरसंहार का उल्लेख
संविधान की मूल संरचना के सिद्धांत का उल्लेख करते हुए धनखड़ ने कहा कि हाल ही में एक पुस्तक के विमोचन पर एक घटना हुई थी और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश द्वारा पुस्तक का ध्यान मूल सरंचना पर था। दिन को 14 अप्रैल के रूप में चुना गया था, जो डॉ. बीआर आंबेडकर से जुड़ा है। न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और पुस्तक के प्रसिद्ध लेखक ने 13 अप्रैल का उल्लेख किया था। आजादी से पहले जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल को घटना हुई थी, जहां हमारे लोग मारे गए थे, नरसंहार किया गया था।
आपातकाल का जिक्र किया
एक प्रधानमंत्री ने अपनी सीट बचाने के लिए 25 जून 1975 को आपातकाल लगाया, न्यायाधीश भूल गए, दर्शक भूल गए। यह एक जुड़ाव प्रवचन होना था, पूछताछ करने वाला। किसी ने सवाल नहीं पूछा कि कोई ऐसी घटनाओं को रोक सकता था। इस दौरान लाखों लोगों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया और यह दौर 21 मार्च 1977 तक चला था।
मिसाइल बन चुका है अनुच्छेद 142
भारत के राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है। राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण और बचाव की शपथ लेते हैं। यह शपथ केवल राष्ट्रपति और उनके नियुक्त लोग ही नहीं लेते। प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, न्यायाधीश सभी लेते हैं। हाल ही का एक निर्णय में राष्ट्रपति को निर्देश दिए गए हैं। हम कहां जा रहे हैं, देश में क्या हो रहा है? हमें अत्यंत संवेदनशील होना होगा। अनुच्छेद-142 लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है, जो न्यायपालिका को 24×7 उपलब्ध है।
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