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सुप्रीम कोर्ट बोला- ‘तलाक-ए-हसन तीन तलाक की तरह नहीं’, यहां जानिए अंतर

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक टिप्पणी की कि तलाक के लिए मुसलमानों के बीच तलाक-ए-हसन की प्रथा प्रथम दृष्टया अनुचित नहीं है। हालांकि, इस दौरान कोर्ट ने कहा कि वह अब यह नहीं चाहता कि उनकी अदालत में आया यह मामला किसी अन्य कारण से एक एजेंडा बन जाए। न्यायमूर्ति संजय किशन […]

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक टिप्पणी की कि तलाक के लिए मुसलमानों के बीच तलाक-ए-हसन की प्रथा प्रथम दृष्टया अनुचित नहीं है। हालांकि, इस दौरान कोर्ट ने कहा कि वह अब यह नहीं चाहता कि उनकी अदालत में आया यह मामला किसी अन्य कारण से एक एजेंडा बन जाए। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'प्रथम दृष्टया यह (तलाक-ए-हसन) इतना अनुचित नहीं है। महिलाओं के पास भी एक विकल्प है ... Khula है।' न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने आगे कहा कि वह याचिकाकर्ता से सहमत नहीं है।   और पढ़िए महाराष्ट्र: पुणे में गलत दिशा से आए कंटेनर ने कार को रौंदा, एक ही परिवार के पांच सदस्यों की मौत   तलाक-ए-हसन क्या है? तलाक-ए-हसन वह प्रथा है जिसके द्वारा एक मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है, लेकिन इसमें उस शख्स को लगातार तीन महीने तलाक शब्द का इस्तेमाल करना होगा। मसलन जैसे किसी ने अपने पत्नी तो जनवरी में तलाक देने की बात कही और फिर फरवरी में कही और फिर बात न बनने पर अगले महीने मार्च में भी तलाक लेने को कहा तो वह शादी फिर अमान्य हो जाएगी।   और पढ़िएIRCTC Update: रेलवे ने 100 से अधिक ट्रेनों को किया रद्द, कहीं आपकी गाड़ी भी तो नहीं शामिल?   'Khula' के जरिए महिलाओं को भी हैं समान अधिकार सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा कि महिलाओं के पास भी 'Khula' के माध्यम से एक समान विकल्प होता है और अदालतें शादी के अपरिवर्तनीय टूटने के मामले में आपसी सहमति से तलाक भी देती हैं। पीठ ने कहा, 'यह तीन तलाक नहीं है..अगर दो लोग एक साथ नहीं रह सकते हैं, तो हम विवाह के अपरिवर्तनीय टूटने से भी तलाक दे रहे हैं।' पीठ ने आगे कहा कि वह नहीं चाहती कि तलाक-ए-हसन का मुद्दा एजेंडा बने। और पढ़िए – देश से जुड़ी खबरें यहाँ पढ़ें  Click Here - News 24 APP अभी download करें


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