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जजों से भी गलतियां हो सकती हैं! सुप्रीम कोर्ट ने माना, इस केस में सुधारा आदेश

Supreme Court News: प्रवर्तन निदेशालय की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों को अपनी गलतियां स्वीकार करने में हिचक नहीं होनी चाहिए। बेंच ने कहा कि न्यायपालिका जजों की गलती की संभावना को स्वीकार करती है।

Edited By : Nandlal Sharma | Updated: Sep 25, 2024 14:22
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Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जजों से भी गलतियां हो सकती हैं और अदालतों को इसे स्वीकार करने में हिचक नहीं दिखानी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई केस बंद हो गया है और उसमें त्रुटियां हैं तो भी उसे सही किया जा सकता है।

इंडिया बुल्स हाउसिंग फाइनेंस और उसके अधिकारियों को अंतरिम प्रोटेक्शन देने के एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है कि उसके आदेश में कुछ त्रुटियां रह गई थीं। इस आदेश में कोर्ट ने इंडियाबुल्स के खिलाफ कर्ज वसूली और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की कार्यवाही पर भी रोक लगा दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश में गलतियां स्वीकार की हैं।

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ईडी की दायर याचिका पर हुई सुनवाई

दरअसल प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस आदेश में संशोधन की मांग की थी। ईडी की दलील थी कि इस मामले में उसका पक्ष सुने बिना ही अदालत ने रोक का आदेश पारित कर दिया था। जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस संजय कुमार की तरफ से सुनाए गए फैसले में एक और दोष था। इसमें एक तरफ तो पक्षकारों को अपनी शिकायत की सुनवाई के लिए हाईकोर्ट जाने को कहा गया था, साथ ही अंतरिम प्रोटेक्शन दी गई थी, जो हाईकोर्ट में मामले के लंबित रहने तक कायम रहती।

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सामान्य तौर पर सुप्रीम कोर्ट की प्रोटेक्शन तब तक कायम रहती है, जब तक कि पक्षकार हाईकोर्ट नहीं पहुंच जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट अंतरिम प्रोटेक्शन पर फैसले का मामला हाईकोर्ट पर छोड़ देता है। मंगलवार को जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने दोनों गलतियों को स्वीकार किया और आदेश में संशोधन किया। कोर्ट ने कहा कि वसूली कार्यवाही में अंतरिम सुरक्षा तब तक रहेगी, जब तक पक्षकार हाईकोर्ट का रुख नहीं कर लेते हैं। इसके बाद अंतरिम आदेश पर फैसला लेने का काम हाईकोर्ट करेगा।

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‘गलतियों को स्वीकार करने में हिचक नहीं’

बेंच ने कहा कि कोर्ट अंतिम उपाय होती है। इसलिए यह अदालत अपने आदेश की गलतियों को स्वीकार करने में हिचकेगी नहीं, और चीजों को दुरूस्त करने के लिए हमेशा तैयार है। बेंच ने प्रवर्तन निदेशालय की याचिका को स्वीकार करते हुए 4 जुलाई 2023 को पारित अपने आदेश के उस हिस्से को वापस ले लिया, जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग का जिक्र था।

वीके जैन बनाम दिल्ली हाईकोर्ट केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए बेंच ने कहा कि हमारी कानून व्यवस्था जजों की गलती की संभावना को स्वीकार करती है। हालांकि यह टिप्पणी जिला अदालत के जजों के संदर्भ में की गई थी, लेकिन यह न्यायपालिका की ऊपरी अदालतों के जजों के मामले में भी समान रूप से लागू होती है। कोर्ट ने कहा कि यह आवश्यक है कि संवैधानिक अदालत उन गलतियों को पहचानें जो उनके न्यायिक आदेशों में आ गई हों और उन्हें सुधारें।

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Edited By

Nandlal Sharma

First published on: Sep 25, 2024 02:22 PM

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