16 दिसंबर 2012 की रात दिल्ली की सर्दी में एक दिल दहला देने वाली घटना घटी, जिसने पूरी दुनिया को हिला दिया। एक बस में छह दरिंदों ने एक लड़की के साथ घिनौनी बर्बरता की और उसे सड़क किनारे अधमरी हालत में छोड़ दिया। कुछ दिन बाद उस लड़की की मौत हो गई, और उसे ‘निर्भया’ के नाम से जाना जाने लगा। 2012 से लेकर 2024 तक सरकार ने कानून में कई बदलाव किए, लेकिन क्या सख्त कानूनों के बावजूद भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों की बढ़ती तादाद पर काबू पाया जा सका? आइए जानते हैं…
निर्भया केस की 12वीं बरसी पर जानें देश क्राइम रेट क्या कहता है?
16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में एक लड़की के साथ हुई दर्दनाक घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस घटना में छह दरिंदों ने चलती बस में एक युवती के साथ बर्बरता की सारी हदें पार कीं। बाद में उस लड़की की मौत हो गई और उसे ‘निर्भया’ नाम दिया गया। इस घटना ने सरकार को मजबूर कर दिया था कि वो महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए सख्त कानून बनाए। निर्भया कांड के बाद कानून में कई बदलाव किए गए थे, जैसे रेप की परिभाषा में बदलाव, नाबालिगों के खिलाफ कड़ी सजा और रेप के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान। लेकिन आज 12 साल बाद भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कोई खास कमी नहीं आई है। 2012 के बाद से रेप के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और सजा की दर में भी कोई सुधार नहीं हुआ है।
हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराधों के कितने मामले होते हैं दर्ज ?
केंद्र सरकार की नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 4 लाख से ज्यादा मामले दर्ज होते हैं। इन अपराधों में रेप, छेड़छाड़, दहेज हत्या, किडनैपिंग, ट्रैफिकिंग और एसिड अटैक जैसे अपराध शामिल होते हैं। 2012 से पहले औसतन हर साल 25 हजार रेप के मामले दर्ज होते थे, लेकिन 2013 के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 30 हजार से ऊपर पहुंच गया। 2016 में तो यह आंकड़ा 39 हजार के करीब था। 2022 में देशभर में कुल 31,516 रेप के मामले दर्ज हुए, यानी हर दिन औसतन 86 रेप के मामले सामने आए, जिसमें आरोपी ज्यादातर पीड़िता के जान-पहचान वाले ही होते हैं।
भारत में रेप के मामलों में सजा मिलने की दर कितनी है ?
कानून में बदलाव के बावजूद भारत में रेप के मामलों में सजा मिलने की दर बेहद कम है। NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, रेप के मामलों में सजा मिलने की दर सिर्फ 27 से 28 प्रतिशत ही है। यानी, 100 में से सिर्फ 27 मामलों में ही आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है। इसके अलावा, 2022 के अंत तक लगभग 2 लाख रेप के मामले लंबित थे, जिनमें से कुछ मामलों में दोषी को सजा मिली, लेकिन कई मामलों में आरोपी बरी हो गए। 2012 के निर्भया कांड के बाद सरकार ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कड़ी सजा का प्रावधान किया, लेकिन फिर भी सजा मिलने की दर में कोई खास सुधार नहीं हुआ है।
महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर सख्त कानूनों का असर क्यों नहीं दिखता
महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर सख्त कानूनों का असर न दिखने का एक कारण यह भी है कि अदालतों में लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसके साथ ही, हाल ही में लागू किए गए भारतीय न्याय संहिता (BNS) में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। इसमें नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराधों के लिए भी कड़ी सजा का प्रावधान है। इसके अलावा, पॉक्सो एक्ट में भी संशोधन कर मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। हालांकि, इन कड़े कानूनों के बावजूद, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कोई खास कमी नहीं आई है और आंकड़े यही दर्शाते हैं कि सख्त कानूनों के बावजूद हमारे समाज में महिलाओं की सुरक्षा अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।