जस्टिस ए बदरुद्दीन ने कहा कि एक मुस्लिम महिला, सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पुनर्विवाह होने तक अपने पति से गुजारा भत्ता पाने का दावा कर सकती है, लेकिन इस प्रावधान के सेक्शन चार में कहा गया है कि अगर वह पति की सहमति से साथ रहने से इंकार करती है तो इसके बाद वह पति से गुजारा भत्ता पाने का दावा नहीं कर सकती।
हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
हाईकोर्ट ने यह फैसला तब सुनाया, जब एक व्यक्ति ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसे अपनी पूर्व पत्नी और बेटे को हर महीने 10,000 रुपये का भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। हाई कोर्ट ने मामले और उसके रिकॉर्ड पर गौर करते हुए पाया कि दोनों पक्ष 31 दिसंबर, 2018 से अलग-अलग रह रहे थे और उनके बीच मुकदमा 2019 में शुरू हुआ। कोर्ट ने इस बात को ध्यान में रखा कि महिला के पास कोई रोजगार नहीं था और उसे अपने और अपने बेटे के लिए गुजरा भत्ते की आवश्यकता थी। हालांकि कोर्ट ने कहा कि 'खुला' के तहत विवाह समाप्त होने तक पत्नी और बेटे को गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए।