दिल्ली में घनी धुंध छाने से विजिबिलिटी जीरो हो गई और IGI एयरपोर्ट से 100 से ज्यादा फ्लाइट कैंसिल करनी पड़ीं. वहीं करीब 200 उड़ानें अपने निर्धारित टाइम से लेट चल रही हैं. दिल्ली एयरपोर्ट, एयरलाइंस और केंद्रीय मंत्रालय ने यात्रियों के लिए एडवाइजरी जारी करके उन्हें अलर्ट किया. मौसम विभाग ने आगे भी कई दिन ऐसे ही घना कोहरा छाने का अलर्ट दिया है, जिसका असर उड़ानों पर पड़ेगा और यात्रियों की परेशानी बढ़ सकती है.
सिर्फ दिल्ली ही नहीं, पूरे देश में एयरपोर्ट पर यही हाल है. ऐसे में लोगों के दिल दिमाग में एक सवाल उठता होगा कि आखिर किसी फ्लाइट को टेकऑफ और लैडिंग के लिए कितनी विजिबिलिटी चाहिए? फ्लाइट को टेकऑफ या लैंड करना है या नहीं, पायलट यह कैसे तय करते हैं? टेकऑफ ज्यादा रिस्की है या लैंडिंग ज्यादा खतरनाक है? आखिर कोहरे में फ्लाइट की लैंडिंग और टेकऑफ कैसे तय होती है? आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं…
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इन पर निर्भर करती लैंडिंग और टेकऑफ
बता दें कि हवाई जहाज बेशक हवा में उड़ते हैं और आसमान में सड़कों की तरह ट्रैफिक भी नहीं होता, फिर भी वे कैंसिल हो जाती हैं, क्योंकि हवाई जहाजों की लैंडिंग और टेकऑफ काफी हद तक मौसम पर निर्भर करती है. इसके अलावा फ्लाइटों का संचालन रूट मैप, इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम, एयर ट्रैफिक कंट्रोल, विजिबिलिटी, रनवे, एयरपोर्ट के गाउंड सिस्टम पर भी निर्भर करता है. अगर इनमें से एक भी पॉइंट पर गड़बड़ी हुई तो फ्लाइट रास्ता भटक जाएगी. लापता हो जाएगी या हादसे का शिकार हो जाएगी.
नेविगेशन सिस्टम तय करता टेकऑफ-लैंडिंग
बता दें कि हवाई जहाजों के अंदर एक खास नेविगेशन सिस्टम इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (ILS) लगा होता है, जो पायलट को मौसम के बारे में बताता है. जैसे गूगल मैप यह बताता है कि कहां और कितना किलोमीटर लंबा जाम लगा है, ठीक उसी तरह यह नेविगेशन सिस्टम बताता है कि कहां कोहरा छाया है, कहां बारिश हेा रही है और कहां आंधी तूफान चल रहा है. इस नेविगेशन सिस्टम से मौसम का हाल जानने के बाद ही पायलट एयर ट्रैफिक कंट्रोल से विजिबिलिटी समेत अन्य जानकारियां लेकर टेकऑफ या लैंडिंग का फैसला लेता है.
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हाइट-विजिबिलिटी तय करती लैंडिंग-टेकऑफ
बता दें कि इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम के 2 इंटरनल सिस्टम एक लोकलाइजर और दूसरा ग्लाइडस्लोप होता है. वहीं इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम से मौसम की जानकारी लेने के बाद भी 3 कैटेगरी के तहत 2 पॉइंट को ध्यान में रखकर फ्लाइट की लैंडिंग या टेकऑफ का डिसीजन लिया जाता है. यह 2 पॉइंट हाइट और विजिबिलिटी रेंज होते हैं, जिनके तहत ILS से मौसम की जानकारी लेने के बाद पायलट यह देखता है कि कितनी हाइट पर कितनी विजिबिलिटी होने पर उसे लैंडिंग करनी है कि उस हाइट से पायलट को रनवे की लाइट्स और मार्किंग नजर आ जाएं.
हाइट और विजिबिलिटी के लिए भी 3 कैटेगरी
फ्लाइट टेकऑफ और लैंड होगी या नहीं, इसका फैसला लेने के लिए हाइट और विजिबिलिटी पॉइंट को भी 3 कैटेगरी में बांटा गया है, जो अलग-अलग एयरपोर्ट पर कोहरे की स्थिति देखकर लागू की जाती हैं, जैसे...
ILS कैटेगरी-I आमतौर पर छोटे एयरपोर्ट पर लागू होती हैं, जिसमें तहत पायलट 200 फीट हाइट पर आकर 550 मीटर से ज्यादा विजिबिलिटी होने पर ही लैंडिंग करेगा. अगर विजिबिलिटी 550 से कम होगी तो लैंडिंग नहीं होगी.
ILS कैटेगरी-II आमतौर पर नेशनल एयरपोर्ट पर लागू होती है, जिसमें पायलट करीब 200 फीट हाइट पर आकर यह देखता है कि विजिबिलिटी 200 मीटर या इससे ज्यादा है या नहीं. अगर विजिबिलिटी 200 मीटर से कम हुई तो फ्लाइट लैंड नहीं होगी.
ILS कैटेगरी-III आमतौर पर इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर लागू होती है, जिसमें पायलट 50 फीट हाइट पर आकर यह देखता है कि विजिबिलिटी 50 मीटर है या नहीं. अगर विजिबिलिटी 50 मीटर से कम होगी तो पायलट लैंडिंग नहीं करेगा.