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बढ़ती उम्र के साथ खोने लगे हैं सूंघने की शक्ति, तो ये है इन बीमारियों के लक्षण

Lost Sense of Smell: स्मैल के जरिए हम अपने आसपास की चीजों से कनैक्ट हो पाते हैं। गंध से लेकर सुगंध तक हम अपने नाक के जरिए महसूस कर सकते हैं। हालांकि, बढ़ती उम्र के साथ कुछ लोग सूघने की क्षमता को खोने लगते हैं, जिसे अगर उम्र बढ़ने का कारण समझा जाए ये बिल्कुल […]

Edited By : News24 हिंदी | Updated: Aug 25, 2023 12:36
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Lost Sense of Smell: स्मैल के जरिए हम अपने आसपास की चीजों से कनैक्ट हो पाते हैं। गंध से लेकर सुगंध तक हम अपने नाक के जरिए महसूस कर सकते हैं। हालांकि, बढ़ती उम्र के साथ कुछ लोग सूघने की क्षमता को खोने लगते हैं, जिसे अगर उम्र बढ़ने का कारण समझा जाए ये बिल्कुल गलत होगा। एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि जिन लोगों की स्मैल करने की ताकत कम होने लगती है, वो कई तरह की बीमारी के शिकार भी हो सकते हैं।

सामने आई एक रिसर्च में पता चला है कि बुजुर्गों में स्मैल करने की शक्ति कम होनी शुरू हो जाती है, जो ब्रेन से जुड़ी बीमारियों की ओर संकेत करता है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं कि कैसे स्मैल खोने की समस्या दिमागी स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है।

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हो सकते हैं डिप्रेशन का शिकार

आमतौर पर सर्दी-होने पर नाक पूरी तरह खुलती नहीं है, जिसका असर ब्रेन पर धीरे-धीरे होने लगता है। एक रिसर्च से इस बात का पता चला है कि हायपोस्मिया (यानि स्मैल न आने की समस्या) होती है। अगर आप काफी लंबे से इस समस्या से जूझ रहे हैं, तो उम्र बढ़ने के साथ आप डिप्रेशन का शिकार भी हो सकते हैं।

क्या कहती है बुजुर्गों के बारे में रिसर्च

स्मैल ठीक से अनुमान न लगा पाना अल्जाइमर रोग और पार्किंसंस रोग (Parkinsons) जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों की ओर संकेत हो सकता है। फेडरल गर्वनमेंट स्टडी के मुताबिक, 70 से लेकर 73 साल के ओल्डएज 2.125 पर रिसर्च की गई, जिसके तहत जब लोगों की स्मैल पावर को चेक किया गया, तो उसमें पाया गया कि 48 फीसदी लोगों को स्मैल की पॉब्लम से जूझना नहीं पड़ रहा था। वहीं, 28 फीसदी में स्मैल करने की सेंस कम पाई गई , जिसे हायपोस्मिया (hyposmia) कहा जाता है। वहीं, 24 फीसदी में स्मैल सेंस न के बराबर पाई गई। वे लोग एनोस्मिया (anosmia) से पीड़िथ थे।

कैसे असर करती है सूंघने की क्षमता 

मनुष्य की स्मैल करने की क्षमता दो कैमिकल सेंसिज़ में से एक है। ये सेंसरी सेल्स के माध्यम से काम करता है। इन्हें आलफैक्टरी न्यूरॉन्स कहा जाता है। इसमें स्मैल रिसेप्टर (Smell Receptor) मौजूद होता है। जिसकी मदद से आसपास के मॉलीक्यूल्स को पिक करता है। बाद में उन्हें इंटरप्रेट करने के लिए ब्रेन में रिले किया जाता है। स्मैल मॉलीक्यूल्स जितने हाई होते हैं,उतने ही तेज़ी से हमतक स्मैल तक पहुंचती है।

स्मैल की कमी का असर हमारी हेल्थ और व्यवहार पर भी दिखने लगता है। इसके चलते खाने के स्वाद के साथ साथ न ही उसका आंनदले सकते हैं। अगर आप के साथ लगातार ये पॉब्लम बनी हुई है, तो ये डिप्रेशन का कारण बनने लगता है और इसके साथ अन्य कारण भी जुड़े होते हैं जैसे-

  • मेंटल हेल्थ पर असर करता है
  • यादाश्त पर इसका असर दिखने लगता है, आप बातें भूलने लगते हैं।
  • जल्दी तनाव में आ जाते हैं और परेशान भी रहने लगते हैं।
  • घुटन महसूस करने लगते हैं और कंसंट्रेशन भी कम हो जाती है।
  • व्यवहार में चिड़चिड़ापन आने लगता है।

Disclaimer: इस लेख में बताई गई जानकारी और सुझाव को पाठक अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। News24 की ओर से किसी जानकारी और सूचना को लेकर कोई दावा नहीं किया जा रहा है।

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News24 हिंदी

First published on: Aug 25, 2023 10:56 AM

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