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कभी सफेद था लाल किला आखिर कैसे हुआ ‘लाल’, जानिये- इस धरोहर से जुड़ी 5 चौंकाने वाली बातें

Red Fort Amazing Facts: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 77वें स्वतंत्रता दिवस पर मंगलवार को लाल किले की प्राचीर से देश की जनता को संबोधित किया। इस लाल किले से सबसे पहले देश की आजादी के समय यानी 15 अगस्त, 1947 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार तिरंगा फहरा कर देश की जनता […]

Red Fort Amazing Facts
Red Fort Amazing Facts: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 77वें स्वतंत्रता दिवस पर मंगलवार को लाल किले की प्राचीर से देश की जनता को संबोधित किया। इस लाल किले से सबसे पहले देश की आजादी के समय यानी 15 अगस्त, 1947 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार तिरंगा फहरा कर देश की जनता को संबोधित किया था। इसके बाद से यह परंपरा कायम है। हर साल देश के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से आम जनता को संबोधित करते हैं। क्या आप जानते हैं कि लाल किला कभी सफेद था और इसका नाम लाल किला भी नहीं था। यहां पर हम बता रहे हैं कि लाल किला से जुड़ी 5 अहम बातें जो आपको कर देंगी हैरान?

10 साल में बना था लाल किला

ताज महल की तरह ही लाल किला भी देश की अहम धरोहरों में शुमार है। ताज महल जहां दुनिया के सातवें अजूबे में शामिल है तो लाल किला भी विश्व की धरोहरों में शुमार है। ताज महल का निर्माण कराने वाले शाहजहां ने 1638 ईस्वी में लाल किला का निर्माण कराया था। विश्व धरोहर की सूची में शामिल लाल किले को बनवाने के लिए शाहजहां ने राजधानी तक बदल दी। शाहजहां ने उस समय राजधानी आगरा को दिल्ली स्थानांतरित कर लिया था, जिससे लाल किला के निर्माण की गति बरकरार रहे।

लाल किला और ताजमहल में 2 अहम समानताएं

यह भी कम हैरानी की बात नहीं है कि लाल किला और ताजमहल दोनों का निर्माण यमुना नदी के किनारे किया गया है। एक समय था जब दिल्ली में युमना नदी लाल किला के बिल्कुल सटकर बहा करती थी। खैर शाहजहां ने खुद यहां पर रहकर लाल किले का यमुना नदी के पास निर्माण करवाया। किले का निर्माण 1638 से शुरू होकर 1648 ईसवीं तक चला। इस तरह इसके निर्माण में 10 वर्ष तक का समय लगा। और पढ़ें - अरविंद केजरीवाल सरकार का स्वतंत्रता दिवस पर गिफ्ट, जानकर झूम उठेंगे दिल्लीवाले

लाल नहीं था पहले था सफेद

यह भी कम रोचक नहीं है कि लाल किला पहले लाल रंग का नहीं था। यह विशुद्ध रूप से सफेद रंग के पत्थरों से बना था। कुलमिलाकर पत्थरों पर सफेद चूना लगाया गया था। हालांकि, समय के साथ इन पत्थरों का रंग उतरने लगा और इसका सौंदर्य प्रभावित होने लगा। इस पर अंग्रेजी शासन में लाल किला के ऊपर लाल रंग करा दिया गया। इसके बाद से इसे लाल किला नाम दे दिया गया। यह भी कम हैरत की बात नहीं कि लाल किला के इस सच के बारे में कम ही लोगों को पता है। और पढ़ें - Rashtrapati Bhavan के अमृत उद्यान में सैर का मौका, नोट करें एंट्री, बुकिंग और टाइमिंग
एक किले के तीन-तीन नाम
लाल किला को लेकर बहुत कम लोग जानते होंगे कि पहले इसका नाम  'किला-ए-मुबारक' था और लोग इसे इसी नाम से जानते थे। मुगलकाल में तो इसे 'किला-ए-मुबारक' के नाम से जाना जाता था। दरअसल, शुरुआती दौर में इस किले का नाम 'किला-ए-मुबारक' ही था। अंग्रेजों के समय इसका बाद बदलकर लाल किला कर दिया गया। ऐसे में अंग्रेज इसे रेड फोर्ट बोलते थे। कुल मिलाकर इसके तीन-तीन (किला-ए-मुबारक, लाल किला और रेड फोर्ट) नाम हैं।

कभी लगता था लाल किला में बाजार

कभी लाल किला में शानदार बाजार लगता था, जहां पर सिल्क, ज्वेलरी समेत अन्य सामान बेचा जाता था। आम लोग खरीदारी करने आते और किले का दीदार करने के बाद ही जाते थे। लाल किले में दीवान-ए-आम के अलावा संगमरमर से बना भव्य महल भी है। लाल बलुआ पत्थर की दीवार पर किया गया काम लोगों को खूब भाता है।

जानिये- अहम तथ्य

कब हुआ उद्घाटन: 10 वर्ष तक चले निर्माण कार्य के बाद 1964 में इसका उद्घाटन किया गया था कितना आया खर्च: जानकारों की मानें तो लाल किला के निर्माण में भी जमकर पैसा खर्च किया गया। इसमें तुर्की से मंगाकर मखमल और चीन की रेशम से इसे सजाया गया था। इस पर कुल 1 करोड़ रुपये का खर्च आया था। आज यह कीमत कई हजार करोड़ रुपये होगी। कितने प्रवेश द्वार: लाल किला के निर्माण के दौरान इस बात का ध्यान रखा गया कि लोगों को दिक्कत नहीं आए। ऐसे में लाल किले के दो एंट्री गेट हैं। पहला लाहौरी गेट तो दूसरा दिल्ली गेट। यहां भी रोचक बात यह है कि उस समय लाहौर गेट से आम जनता की एंट्री थी, जबकि दिल्ली गेट से सिर्फ सरकारी लोग को प्रवेश मिलता था।  

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