समय था दूसरे विश्व युद्ध का. नाजी सेना ने रूस पर हमला बोल दिया था. पुतिन का शहर लेनिनग्राद (सेंट पीटर्सबर्ग) भी इसकी चपेट में था. यहां पर नाजी सेना ने डायरेक्ट हमला नहीं किया था. पूरे शहर को चारों तरफ से घेर लिया था. पूरे शहर में करीब 800 से ज्यादा दिन तक ऐसी स्थिति रही. शहर में खाने के लिए कोई चीज बाहर से नहीं आ सकती थी. ऐसे में कुछ समय बाद खाने का सामान खत्म होने लगा. भीषण ठंड ने भी शहर को अपनी चपेट में ले लिया था. तापमान 40 डिग्री से नीचे पहुंच गया. लोग भूख और ठंड से मरने लगे. बताया जाता है खाने के तौर पर रोटी के तीन टुकड़े दिए जाते थे. इन रोटियों में लकड़ी का बुरादा मिला होता था. हालांकि, रोटी के ये टुकड़े भी सब को नहीं मिलते थे. ऐसे में एक महीने के भीतर ही करीब एक लाख लोग भूख, ठंड और बीमारी से मर गए. बताया जाता है कि इस शहर की आबादी 35 लाख थी, लेकिन जब घेराबंदी हटाई गई तो यह संख्या केवल सात लाख रह गई. इसका मतलब है इस दौरान 28 लाख लोगों की मौत हो गई थी. इनमें पुतिन का बड़ा भाई भी शामिल था. पुतिन के बड़े भाई को उनकी मां ने एक शेल्टर हाउस में भेज दिया था. ताकि उसे खाना मिलता रहे. लेकिन उनकी डिप्थीरिया नाम की बीमारी से मौत हो गई.
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जो सात लाख लोग बचे थे, उनमें पुतिन की मां मारिया शेलोमोवा भी शामिल थीं. लेकिन उनके बचने की कहानी एक चमत्कार से कम नहीं है. उन्हें कब्र में दफन किया जा रहा था, तभी कुछ पल पहले वह उठ बैठीं. इस किस्से को लेकर दो कहानियां हैं. एक कहानी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन ने बताई है. क्लिंटन का दावा है कि यह कहानी खुद पुतिन ने उन्हें सुनाई थी. दूसरी कहानी पुतिन ने खुद अपनी आत्मकथा में बताई है.
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हिलेरी क्लिंटन ने क्या सुनाई थी कहानी
साल 2014 में हिलेरी क्लिंटन का 'हार्ड चॉइसिज़' नाम से संस्मरण छपा था. इसमें क्लिंटन ने पुतिन की मां से जुड़ा किस्सा शेयर किया है. यह किस्सा खुद पुतिन ने उनसे साझा किया था. पुतिन ने उन्हें बताया था कि लेनिनग्राद की घेराबंदी में कैसे उनकी मां को मरा हुआ समझ लिया गया था और उन्हें दफनाने से ऐन पहले उनके पिता ने उन्हें बचा लिया था.
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क्लिंटन ने लिखा है, "पुतिन ने अपने माता-पिता के बारे में एक कहानी सुनानी शुरू की. यह कहानी मैंने न कभी सुनी थी और न ही कहीं पढ़ी थी. पुतिन के पिता ने द्वितीय विश्व युद्ध की लड़ाई में मोर्चे पर तैनात थे. पुतिन के पिता कुछ दिनों की छुट्टी पर घर आए थे. जब वह उस अपार्टमेंट के पास पहुंचे, जहां उनका परिवार रहता था. तभी उन्होंने शवों का एक ढेर देखा. इन्हें एक ट्रक में लादना था. जैसे ही वह उस ढेर के पास पहुंचे, तभी उन्हें एक महिला के पैर दिखे. उन पैरों में जो जूते थे, वो जाने-पहचाने थे. जब उन्होंने गौर से देखा तो वो उनकी पत्नी थीं. फिर वह दौड़कर वहां पहुंचे और अपनी पत्नी का शव उन लोगों से मांगा. पहले तो उनकी वहां मौजूद लोगों से बहस हुई, फिर वह शव पाने में कामयाब हो गए. पुतिन के पिता ने जब चेक किया तो वह जिंदा थीं. इसके बाद वह अपनी पत्नी को लेकर घर आ गए. और उनकी खूब देखभाल की. जिसके बाद वह ठीक हो गईं. और इसके करीब सात साल बाद उनके बेटे व्लादिमीर का जन्म हुआ."
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चाचा ने की थी मदद
लेकिन, पुतिन ने अपनी आत्मकथा "First Person: An Astonishingly Frank Self-Portrait by Russia's President" में इससे थोड़ी अलग कहानी बताई है. इसमें उन्होंने अपने परिवार के बारे में संक्षेप में बताया है. इसमें पुतिन ने बताया था कि उनकी मां भूख की वजह से बेहोश हो गई थीं. इसके बाद वहां मौजूद लोगों ने उन्हें शवों के ढेर के पास लिटा दिया. उन शवों को जब दफनाया जा रहा था, तभी वह ऐन वक्त पर जाग गईं. इस कहानी में उनके पिता उस वक्त उनके युद्ध के मोर्चे पर थे, न कि अपनी बीवी के साथ.
पुतिन ने लिखा है, "मेरे चाचा ने मेरी मां की मदद की थी. मेरे चाचा मेरी मां को अपने हिस्से का राशन खिलाते थे. लेकिन कुछ समय बाद दोनों को अलग-अलग जगह भेज दिया गया. इसके बाद मेरी मां भुखमरी की कगार पर पहुंच गई थीं. एक बार मेरी मां भूख से बेहोश हो गईं. लोगों को लगा कि उनकी मौत हो गई है, और उन्होंने उन्हें शवों के साथ लिटा दिया. लेकिन तभी मेरी मां जाग गईं. इसके बाद उन्हें लोगों ने शवों के ढेर से अलग कर दिया. ऐसे मेरी मां बच गईं"
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खुद का खाना दे देते थे पुतिन के पिता
पुतिन के माता-पिता को लेकर एक और किस्सा है. युद्ध में पुतिन के पिता जख्मी हो गए थे, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. इस दौरान पुतिन के पिता को राशन का थोड़ा सा सामान मिला था. इसमें से कुछ हिस्सा वो अपनी पत्नी को दे देते थे. इस बारे में पुतिन ने लिखा है, "मेरे पिता किसी तरह जिंदा बच गए थे. उन्हें कई महीनों अस्पताल में रहना पड़ा था. मेरी मां भी उन्हें अस्पताल में मिली थीं. जब दोनों की मुलाकात हुई, तो मेरी मां अधमरी हो गई थीं. मेरे पिता ने जब यह देखा तो वे नर्सों से छिपाकर उन्हें अपना ही खाना दे देते थे. लेकिन मेरे पिता खुद भूख से बेहोश होने लगे. जब डॉक्टरों ने चेक किया तो यह मामला सामने आ गया. जिसके बाद उन्हें फटकार पड़ी और उन्हें अपनी बीवी से मिलने पर रोक लगा दी गई. लेकिन दोनों के साथ चमत्कार हुआ और दोनों ही बच गए. हालांकि, पिता को लगी उस चोट की वजह से वे जिंदगीभर लंगड़ाकर चले."