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Explainer: राज्य एक, आउटब्रेक अनेक… अक्सर केरल में ही क्यों सामने आते हैं बीमारियों के पहले मामले?

Outbreaks in Kerala : कोरोना वायरस के अलावा केरल में नीपाह और मंकीपॉक्स के भी मामले भी सबसे पहले सामने आए थे। इस रिपोर्ट में जानिए कि ऐसा होने के कारण क्या हैं और क्या यह राज्य की कमजोरी है या मजबूती...

Doctors consulting patients in Kochi (ANI File)
Outbreaks in Kerala : देश में कोरोनावायरस वैश्विक महामारी का डर एक बार फिर उभरने लगा है। इसके नए JN.1 वैरिएंट का पहला मामला केरल में सामने आया था। वहीं, 30 जनवरी 2020 को भारत में कोरोना का पहला केस भी केरल में ही मिला था। इसके अलावा सितंबर में नीपाह वायरस के चलते दो लोगों मौत दर्ज करने वाला राज्य भी केरल ही था। मंकीपॉक्स भी सबसे पहले इसी राज्य में डिटेक्ट किया गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी बीमारियों के पहले मामले अक्सर केरल में ही क्यों सामने आते हैं। [caption id="attachment_502018" align="aligncenter" ] A girl wears the mask in the wake of Nipah Virus in Kerala (ANI File)[/caption] केवल कोविड ही नहीं, इस राज्य ने कई बीमारियों के आउटब्रेक्स का सामना किया है। इनमें मंकीपॉक्स, चिकनगुनिया, जापानी इंसेफलाइटिस, एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम, वेस्ट नाइल इंसेफलाइटिस, डेंगू, वायरल हेपेटाइटिस, नीपाह और स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियां हैं। केरल में जीका वायरस और एंथ्रैक्स के मामले भी देखे गए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो दशकों में केरल लगभग 10 वायरल और नॉन वायरल बीमारियों के पहले मामले दर्ज करने वाला राज्य है।

इसके पीछे के कारण क्या हैं?

बीमारियों के पहले मामले यहीं सामने आने के पीछे का सबसे पहला और अहम कारण है केरल की ज्योग्राफी। विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य का फॉरेस्ट कवर और इसका मानसून पैटर्न इसे बीमारियों के आउटब्रेक्स को लेकर काफी संवेदनशील बनाता है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि घनी आबादी वाले राज्य में प्राकृतिक आवास कम होते जा रहे हैं और इंसानी आबादी से उनकी नजदीकी बढ़ रही है। इस वजह से इंसानों और जानवरों के बीच फैलने वाली बीमारियों के यहां कई आउटब्रेक देखे गए हैं। इसका एक उदाहरण है नीपाह वायरस। राज्य में संसाधनों की तलाश में चमगादड़ों के आवास को नष्ट किया जा रहा है जो हजारों वायरसों के वाहक होते हैं। इसकी वजह से ऐसी स्थितियां बन जाती हैं जो चमगादड़ों से होने वाली बीमारियां आसानी से फैलाती हैं। द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज के कम्युनिटी मेडिकल चीफ डॉ. टीएस अनीश का कहना है कि सिवेट कैट्स अब लगभग शहरी जानवर बन गए हैं क्योंकि उनका प्राकृतिक आवास पूरी तरह से खत्म हो चुका है। ऐसे जानवरों को सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS) का कारण बनने वाले पैथोजेन का माध्यम माना जाता है। चमगादड़ भी अब इंसानी बस्तियों में आ गए हैं। इन जानवरों को अब नीपाह और इबोला वायरस के भंडार की तरह देखा जाने लगा है।

सख्त जांच और जागरूकता

इसके अलावा एक और कारण है इस राज्य की आबादी। केरल के लोग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। यहां के कई छात्र कई देशों में पढ़ाई कर रहे हैं और कई लोग काम कर रहे हैं। अगर उन्हें कोई संक्रामक बीमारी होती है और वह राज्य वापस आते हैं तो उनसे भी बीमारी फैलती है। राज्य का मैनेजमेंट और हेल्थ सिस्टम भी इसका एक अहम फैक्टर है। यहां टेस्टिंग प्रणाली बहुत कठोर है और यहां के लोग भी काफी जागरूक हैं। मंकीपॉक्स का पहला मामला यहां इसी के चलते सामने आया था। बीमार व्यक्ति संयुक्त अरब अमीरात से लौटा था। जब उसे पता चला कि विदेश में उसके संपर्क में आया एक व्यक्ति मंकीपॉक्स से पॉजिटिव पाया गया तो उसने खुद अपनी जांच कराई। जबकि उसमें बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे।

आलोचना करना उचित नहीं

जानकार कहते हैं कि आउटब्रेक रिपोर्ट कराने के लिए अक्सर केरल की आलोचना होती है लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए। यह एक्टिव सर्विलांस मैकेनिज्म है। इससे न केवल वायरस को डिटेक्ट करने में बल्कि इसे नियंत्रित करने में भी काफी मदद मिलती है। ये भी पढ़ें: JN.1 Variant से फेफड़ों के साथ पेट में भी हो रहा संक्रमण ये भी पढ़ें: कोरोना का नया वैरिएंट खतरनाक नहीं पर सतर्क रहें: ICMR ये भी पढ़ें: GYM, डांस या योग, सेहत के लिए क्या है सबसे फायदेमंद? ये भी पढ़ें: तो अब मौत की भी ‘भविष्यवाणी’ करेगा AI Tool! क्या है ये?


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