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Yodha Review: फिल्म को क्यों नहीं मिले दर्शक? Super Hit पर भी कलेक्शन इतना कम? तो हिट की परिभाषा क्या?

Yodha Review: किसी फिल्म की कहानी बेहद बेकार लेकिन फिर भी सुपरहिट। किसी फिल्म की कहानी सुपरहिट लेकिन फिर भी बॉक्स ऑफिस पर मर जाती है फिल्म क्यों? आखिर किसी भी फिल्म के हिट होने की परिभाषा क्या है?

Yodha
Yodha Review: बीते दिन यानी 15 मार्च को सिनेमाघरों में सिद्धार्थ मल्होत्रा की फिल्म 'योद्धा' रिलीज हुई। फिल्म को लेकर लोगों में पहले से क्रेज तो जरूर था, लेकिन अगर इस फिल्म की पहले दिन की कमाई देखी जाए तो उम्मीद से भी बेहद कम रही। अपने ओपनिंग डे पर फिल्म 'योद्धा' महज 4.1 करोड़ रुपये का कारोबार कर पाई, जो फिल्म के हिसाब से बेहद कम है।

'हिट' की परिभाषा क्या?

अब सवाल ये है कि आखिर इतनी अच्छी कहानी के बाद भी फिल्म कमाई क्यों नहीं कर सकी? लोगों में फिल्म के लिए एक्साइटमेंट देखी गई, तो उसके बाद भी थिएटर में 'योद्धा' के लिए कोई नजर क्यों नहीं आया? अच्छी कहानी के बाद भी अगर कोई फिल्म कमाई नहीं कर पाती तो फिर 'हिट' की परिभाषा क्या है?

इंटरनेट यूजर्स ने की फिल्म की तारीफ

अगर सोशल मीडिया की भी बात करें तो लोगों ने 'योद्धा' की तारीफों के खूब पुल बांधे हैं। इंटरनेट यूजर्स ने फिल्म को खूब सराहा है, लेकिन फिर भी फिल्म की कमाई बता रही है कि 'योद्धा' बड़ी कमाई करने में नाकाम हो सकती है। शानदार कहानी, दमदार एक्शन, गजब की कैमिस्ट्री और एक समझदार फौजी का जज्बा भी लोगों को थिएटर में नहीं खींच पाता।

हिट की कोई परिभाषा नहीं

दरअसल, हिट होने की कोई परिभाषा नहीं है क्योंकि किसी फिल्म की कहानी में बिल्कुल भी दम नहीं होता और वो हिट हो जाती है। साथ ही कई रिकॉर्ड भी तोड़ देती है। हालांकि कई बार अच्छी कहानी के बाद भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर मर जाती है, जो 'योद्धा' के साथ होता नजर आ रहा है।

मिर्च-मसाला ही बिकता है

ऐसा नहीं है कि फिल्म का प्रमोशन नहीं किया गया या इसके ट्रेलर में कोई कमी थी। सब कुछ बेहद शानदार था और उसके बाद भी अगर 'योद्धा' को दर्शक नहीं मिले तो इसमें ना फिल्म की गलती है और ना ही फिल्म बनाने वालों की। हां, ये जरूर कहा जा सकता है कि जैसे फिल्म में 'योद्धा' सिस्टम की मार झेलता है वैसे ही अब लगता है कि भारतीय दर्शकों को भी फिल्मों में बस मिर्च-मसाला चाहिए। फिर चाहे किसी फिल्म की कहानी कितनी भी शानदार क्यों ना हो उसका पिटना तो लाजिमी है, जिसका सामना कहीं ना कहीं 'योद्धा' भी कर रहा है। यह भी पढ़ें- पिता की सीख, सिस्टम की मार और खून में कुछ कर गुजरने का जज्बा, ऐसे ही एक फौजी नहीं बनता ‘योद्धा’


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