कभी आपने सोचा है कि भारत में हर कुछ सालों में एक नई एयरलाइन तो शुरू होती है लेकिन कुछ वक्त बाद उसका नाम तक सुनाई नहीं देता. पिछले 20 सालों में कई दिग्गज आए. किसी ने एयर सहारा की शुरुआत की. किसी किसी ने जेट एयरवेज की, तो किसी ने किंग फिशर को उड़ता हुआ फाइव स्टार होटल बना दिया. लेकिन नतीजा - एक एक करके सभी खत्म हो गए. भारत का एिएशन सेक्टर बाहर से जितना बड़ा और चमकदार दिखता है, अंदर से यह उतना ही ज्यादा खतरनाक है. इसीलिए कई लोग इसे एयरलाइन का श्मशान घाट कहते हैं. अभी हाल ही में गोफस्ट ने अपने ऑपरेशंस बंद कर दिए. वहीं विस्तारा और एयर इंडिया भी हर साल हजारों करोड़ों का घाटा झेल रही हैं.
लेकिन इन सबके बीच एक एयरलाइन ऐसी है जिसने सभी को पीछे छोड़ रखा है. नाम है इंडिगो. इंडिगो अकेली ऐसी एयरलाइन है जिसने फाइनेंसियल ईयर 2024 में करीब 8170 करोड़ रुपये का प्रॉफिट कमाया. जबकि बाकी सभी कंपनियां लॉस में डूबी हुई थी. आज जहां विस्तारा और एयर इंडिया दोनों को मिलाकर इनके पास केवल 300 एयरक्राफ्ट्स हैं. वहीं अकेले इंडिगो के 400 से ज्यादा प्लेंस आसमान में उड़ रहे हैं. आइये जानते हैं कि IndiGo की शुरुआत कैसे हुई थी और इसे किसने शुरू किया?
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कैसे हुई IndiGo एयरलाइन्स की शुरुआत ?
सोचने वाली बात यह है कि 2006 में दो दोस्तों ने मिलकर इंडिगो की शुरुआत सिर्फ एक प्लेन से की थी और आज 19 साल बाद यह इंडिया की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी बन चुकी है. तो आखिर इंडिगो ने ऐसा अलग क्या किया कि आज यह कंपनी इस मुकाम पर पहुंच चुकी है और जिस एविएशन मार्केट में टिकना भी मुश्किल है वहां इंडिगो लगातार प्रॉफिट कैसे कमा रही है? आइए डिटेल में जानने की कोशिश करते हैं.
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दो दोस्तों ने की शुरुआत
साल 2005 की शुरुआत में दो दोस्त राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल एक नई एयरलाइन शुरू करने की तैयारी में थे. उस वक्त राहुल भाटिया का ट्रैवल का बिजनेस था और राकेश गंगवाल अमेरिका में एयरलाइन इंडस्ट्री के बड़े नाम रह चुके थे. दोनों ने मिलकर इस नए वेंचर को नाम दिया इंडिगो. मतलब इंडिया ऑन द गो. लेकिन 2005 के उस टाइम पर एयरलाइन शुरू करने का यह फैसला बिल्कुल भी आसान नहीं था. क्योंकि उस वक्त इंडिया की एविएशन मार्केट पर जेट एयरवेज का कब्जा हुआ करता था.
दूसरी तरफ एयर डेक सबसे सस्ते टिकट्स देकर मिडिल क्लास को उड़ने का सपना दिखा रही थी. साथ ही Air इंडिया और इंडियन एयरलाइन जैसे सरकारी खिलाड़ी भी मौजूद थे और विजय माल्या अपनी चमचमाती किंगफिशर एयरलाइन के साथ एंट्री मार चुके थे. वहीं पिछले कुछ सालों से एविएशन सेक्टर में इतनी उठक-पठक हुई थी कि साल 1991 से 2006 के बीच 14 प्राइवेट एयरलाइंस बंद हो चुकी थी. ऐसे माहौल में एक नई एयरलाइंस शुरू करना सच में पागलपन जैसा था.
एक स्ट्रेटजी ने बदल दी IndiGo की किस्मत
इंडस्ट्री के बड़े-बड़े लोग इंडिगो को लेकर बिल्कुल भी कॉन्फिडेंट नहीं थे. लेकिन इंडिगो ने शुरुआत में ही ऐसा दांव खेला जिसने सभी को हैरान कर दिया. साल 2005 में अपनी एयरलाइन के ऑपरेशंस शुरू करने से पहले ही इंडिगो ने सीधा 100 नए प्लेंस का ऑर्डर दे दिया. यह देखकर इंडस्ट्री के बड़े-बड़े प्लेयर्स भी हैरान रह गए कि जिस कंपनी का अभी ठीक से नाम भी नहीं बना था, उसने इतिहास का सबसे बड़ा एयरक्राफ्ट ऑर्डर कैसे दे दिया.
इंडिगो का यह पहला कदम ही बाकी एयरलाइंस से बिल्कुल अलग था और यही वो स्ट्रेटजी थी जिसने इस कंपनी की किस्मत बदल डाली. दरअसल उस दौर में दुनिया में सिर्फ दो ही बड़ी कंपनियां थी जो कमर्शियल प्लेंस बनाती थी. पहली थी Boeing और दूसरी थी एयरबस. और इंडिया में ज्यादातर एयरलाइंस Boeing को ही चुन रही थी.
क्योंकि बोइंग के प्लेंस यहां पहले से मौजूद थे. उनकी अवेलेबिलिटी ज्यादा थी और एयरलाइंस का पूरा सिस्टम लाइक पायलट ट्रेनिंग से लेकर मेंटेनेंस तक बोइंग पर ही सेट हो चुका था. एयरबस उस समय इंडिया के लिए एक नया नाम था. उसकी टेक्नोलॉजी थोड़ी अलग थी. और अगर कोई एयरलाइन उसे चुनती भी तो उसे नए सिरे से पायलट ट्रेनिंग करानी पड़ती, मेंटेनेंस का अलग इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना पड़ता और स्पेयर पार्ट्स भी आसानी से नहीं मिलते. और यहीं पर राकेश गंगवाल का एक्सपीरियंस काम आया.
उन्होंने एयरबस से कहा कि अगर हमें भारी डिस्काउंट मिले और कुछ खास शर्तें मानी जाएं तो हम सीधा 100 प्लेंस एक साथ खरीद लेंगे. अब एयर बस के लिए इंडियन मार्केट में आने का यह एक बहुत बड़ा मौका था. इसलिए वो इंडिगो की शर्तें मानने के लिए राजी हो गया. कहा जाता है कि इस बड़े ऑर्डर के बदले इंडिगो को लगभग 40 से 50% तक का डिस्काउंट मिला था. उन्होंने सिर्फ प्राइस ही कम नहीं करवाए बल्कि यह शर्त भी रखवाई कि अगर किसी प्लेन में कोई टेक्निकल प्रॉब्लम आती है या इंजन में कोई दिक्कत होती है तो उसकी जिम्मेदारी भी एयर बस की ही होगी.
इतना ही नहीं इंडिगो ने एयरबस से यह भी कहा कि हम सारे 100 प्लेंस एक साथ नहीं लेंगे. आपको हर 45 दिन में एक-एक प्लेंस हमें देना होगा. इससे एयरबस पे भी एक साथ प्रोडक्शन का प्रेशर नहीं पड़ा और इंडिगो को अपनी कैपेसिटी धीरे-धीरे बढ़ाने का वक्त मिल गया. एक तरह से यह दोनों के लिए ही विनविन डील थी.
इंडिगो ने किया असली खेल
असली खेल तो इसके बाद शुरू हुआ जब इंडिगो ने एक-एक करके उन सभी प्लेंस को बेचना शुरू कर दिया. यह सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा होगा लेकिन यही था इंडिगो का सेल एंड लीज बैक मॉडल था. मान लीजिए इंडिगो ने 1000 करोड़ रुपये की कीमत वाला प्लेन 500 करोड़ में खरीदा. क्योंकि उन्हें बल्क डिस्काउंट मिला था. फिर उन्होंने उसी प्लेन को एक लीजिंग कंपनी को 700 करोड़ रुपये में बेच दिया. अब लीजिंग कंपनी को भी 300 करोड़ का डिस्काउंट मिल रहा था तो उसने भी खुशी-खुशी खरीद लिया और इस तरह इंडिगो को सीधा 200 करोड़ रुपये का पहले ही प्रॉफिट हो गया.
इसके बाद इंडिगो ने अपना ही बेचा हुआ प्लेन उस लीजिंग कंपनी से किराए पर ले लिया और अपनी फ्लाइट्स के बीच इस्तेमाल करने लगा. इस स्ट्रेटजी से इंडिगो को तीन बड़े फायदे हुए. सबसे पहला फायदा यह कि हर नए प्लेन पर सीधा प्रॉफिट हुआ जिससे कंपनी के पास शुरुआत से ही ढेर सारा कैश जमा हो गया. दूसरा बड़ा फायदा यह था कि प्लेंस लीज पर होने के चलते इंडिगो को शुरुआत से ही बड़े-बड़े लोंस नहीं लेने पड़े. जिससे उनकी फाइनेंसियल पोजीशन मजबूत बनी रही. और तीसरा फायदा यह हुआ कि इंडिगो ने शुरुआत से ही नए और एडवांस्ड एयरबस A320 प्लेंस चुने तो मेंटेनेंस का खर्चा भी कम रहा और फ्यूल की खपत भी कम हो गई.
क्योंकि उस वक्त के बोइंग एयरप्लेस के मुकाबले एयरबस A320 करीब 8 से 10% ज्यादा फ्यूल एफिशिएंट था. अब आप सोच रहे होंगे कि 10% से क्या ही फर्क पड़ने वाला है. लेकिन एयरलाइंस के बिजनेस में यह फर्क करोड़ों में होता है.
इसको ऐसे समझिए कि अगर बोइंग प्लेन दिल्ली से बेंगलुरु के फ्लाइट में 5000 लीटर तेल पीता है तो वही काम एयरबस का प्लेन 4500 लीटर में कर देगा. अब अगर एिएशन फ्यूल 85 रुपये पर लीटर है तो एक फ्लाइट में सीधा 420000 रुपये की बचत होगी और इंडिगो दिन में सैकड़ों फ्लाइट्स ऑपरेट करता है. तो सोचिए साल भर में फ्यूल की बचत कितनी ज्यादा होती होगी.
सही मायनों में देखा जाए तो इंडिगो ने शुरुआत से ही इंडियन पैसेंजर्स की नब्ज पकड़ ली थी. इंडिगो ने देखा कि भारत के लोग टाइम और कंफर्ट से ज्यादा सस्ते किराए को देखते हैं. लोग 500 रुपये बचाने के लिए रात 2:00 बजे की फ्लाइट पकड़ने को भी तैयार रहते हैं. इसलिए इंडिगो ने शुरुआत से ही अपना बिजनेस मॉडल ऐसे सेट किया कि खर्चे कम से कम हो जिससे टिकट के दाम सस्ते हो सके.
उन्होंने फालतू के खर्चे बिल्कुल कट कर दिए. जैसे फ्लाइट में खाना देना या बड़ी-बड़ी स्क्रीन पर एंटरटेनमेंट दिखाना और ज्यादातर लोग 200 से 300 रुपये बचाने के लिए इंडिगो का टिकट लेने को तैयार थे. उनका मकसद था कि टिकट पर प्रॉफिट भले ही थोड़ा कम हो लेकिन पैसेंजर्स की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ जाए कि कोई भी फ्लाइट खाली ना जाए. इस स्ट्रेटजी की वजह से जो लोग पहले कभी हवाई जहाज का टिकट लेने का सोच भी नहीं सकते थे वो भी इंडिगो के सस्ते किरायों की वजह से फ्लाइट पकड़ने का सपना देखने लगे.
हब एंड स्पोक मॉडल ने IndiGo को बनाया धनवान
असल में इंडिगो के कम टिकट प्राइस के पीछे एक जीनियस स्ट्रेटजी थी जिसका नाम था हब एंड स्पोक मॉडल. जबकि उस वक्त किंग फिशर जैसे दूसरे प्लेयर्स पॉइंट टू पॉइंट मॉडल पर काम करते थे. चलिए इसको एक एग्जांपल से समझते हैं और पहले बात करते हैं पॉइंट टू पॉइंट मॉडल की. मान लीजिए कि इंडिया के 10 शहर हैं तो पॉइंट टू पॉइंट मॉडल में इन 10 शहरों को आपस में जोड़ने के लिए हर एक शहर का सीधा कनेक्शन बाकी सभी शहरों से बनाना पड़ता है. मतलब सिर्फ दिल्ली को बाकी सिटी से कनेक्ट करने के लिए नौ अलग-अलग फ्लाइट्स की जरूरत होगी. ऐसे में सभी शहरों को एक दूसरे से कनेक्ट करने के लिए टोटल 45 रूट्स बनेंगे.
मतलब 45 डिफरेंट फ्लाइट चलानी पड़ेगी. और यह भी जरूरी नहीं कि सभी फ्लाइट्स फुल कैपेसिटी के साथ जाएं. काफी बार सीट्स खाली भी जाती हैं. यानी एयरलाइन का खर्चा तो पूरा होगा पर कमाई आधी होगी. इसी वजह से पॉइंट टू पॉइंट मॉडल काफी महंगा पड़ता है. और यही वजह थी कि किंग फिशर, जेट एयरवेज और एयर इंडिया जैसे बड़े-बड़े प्लेयर्स भी इस मॉडल को सस्टेन नहीं कर पाए.
अब यहीं पर इंडिगो ने एक मास्टर स्ट्रोक खेला और उसने पॉइंट टू पॉइंट मॉडल को अवॉइड करके हब एंड स्पोक मॉडल को अपना लिया. यह एक ऐसा तरीका है जिसमें एक बड़ा एयरपोर्ट हब की तरह काम करता है और बाकी छोटे-छोटे एयरपोर्ट्स स्पोक्स की तरह काम करते हैं. मान लीजिए कि दिल्ली एक हब की तरह काम कर रहा है और लखनऊ, पटना एंड जयपुर जैसे 10 छोटे-छोटे शहर स्पोक्स की तरह काम कर रहे हैं. तो ऐसे में सभी छोटे शहरों से पैसेंजर्स पहले दिल्ली आकर इकट्ठा होते हैं. फिर वहां से दूसरी कनेक्टिंग फ्लाइट पकड़ कर अपने-अपने डेस्टिनेशन पर जाते हैं. मतलब कि एक सिटी को दूसरे सिटी से डायरेक्ट कनेक्ट नहीं करना है. इस मॉडल का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि जहां दूसरी एयरलाइंस को 10 शहर कनेक्ट करने में 45 फ्लाइट्स चलानी पड़ती थी, वहीं इंडिगो सिर्फ नौ फ्लाइट्स में ही काम चला लेता था जो बहुत बड़ा डिफरेंस है.
इससे प्लेेंस का फ्यूल भी बचा, क्रू मेंबर्स का खर्चा कम हुआ, मेंटेनेंस भी कम लगा और फ्लाइट का यूटिलाइजेशन भी मैक्सिमम हो गया. यह मॉडल इंडिगो की सक्सेस का एक हिडन सीक्रेट था जो किंगफिशर और जेट एयरवेज जैसे बाकी सभी एयरलाइंस मिस कर गए.
ऑन टाइम इज ए वंडरफुल थिंग का स्लोगन
इसके साथ ही इंडिगो ने अपने ऐड कैंपेन में ऑन टाइम इज ए वंडरफुल थिंग का स्लोगन चलाया जो आगे चलकर उनकी सबसे बड़ी पहचान बन गई. क्योंकि उस वक्त वाकई में इंडिगो की ज्यादातर फ्लाइट्स टाइम पर ही होती थी और यह पॉसिबल इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने ऑपरेशंस को बिल्कुल अलग तरीके से मैनेज किया. लाइक उनकी टीम का हर बंदा टाइम की वैल्यू को समझता था. प्लेन के लैंड करते ही ग्राउंड स्टाफ अगले 30 मिनट के अंदर उसे दोबारा उड़ान भरने के लिए तैयार कर देते थे. यह पॉसिबल इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने अपने फ्लट में सिर्फ एयरबस A320 फैमिली के प्लेन रखे थे. उन्हें रोज नए-नए मॉडल्स के प्लेन पर दिमाग लगाने की जरूरत नहीं थी.
एयरलाइन्स को लगा झटका
लेकिन इसी बीच आया साल 2008 और इंडियन एयरलाइन इंडस्ट्री को ऐसा झटका लगा जिसने पूरे सेक्टर की कमर तोड़ दी. दरअसल उस साल ग्लोबल इकोनमिक क्राइसिस के चलते तेल की कीमतें आसमान छूने लगी. केवल किंग फिशर का नुकसान आठ गुना बढ़कर करीब 1600 करोड़ रुपये पर पहुंच गया था. वहीं जेट एयरवेज और Spice जेट को भी भारी घाटा हुआ था.
लेकिन इसी बुरे वक्त में इंडिगो ने सबको हैरान करते हुए करीब 82 करोड़ रुपये का प्रॉफिट कमाया और उस साल प्रॉफिट में रहने वाली इंडिया की इकलौती एयरलाइन बन गई. यही वो टर्निंग पॉइंट था जहां से इंडिगो ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 2008 के बाद जहां यह कंपनी तेजी से ऊपर जा रही थी, वहीं दूसरी एयरलाइंस की हालत खराब हो रही थी. इंडिगो की तरह ही जेट ने भी jet लाइट नाम की सस्ती सर्विस शुरू की. लेकिन अपने खर्चों पर कंट्रोल ना रख पाने के कारण धीरे-धीरे जेट एयरवेज कर्ज में डूबती चली गई.
हालांकि 2013 में एतिहाद ने इसमें इन्वेस्ट किया था लेकिन हालात फिर भी नहीं सुधरी और आखिरकार अप्रैल 2019 में जेट एयरवेज हमेशा के लिए बंद हो गई. जेट एयरबेज के बंद होने से उसके एयरपोर्ट स्लॉट्स खाली हो गए. जिस पर इंडिगो ने तुरंत कब्जा जमा लिया. साथ ही इंडिगो ने जेट के कई एक्सपीरियंस पायलट और क्रू मेंबर्स को भी हायर कर लिया. जिससे उन्हें पहले से ही ट्रेंड स्टाफ मिल गए. इसी तरह किंगफिशर एयरलाइंस जिसने अपने शुरुआती दौर में जबरदस्त नाम कमाया था वह भी अंदर से खोखली होती जा रही थी. विजय माल्या ने एयर डेक्कन को खरीद कर किंगफिशर को और बड़ा बनाने का सपना देखा. बढ़िया खाना, शराब, आरामदायक सीटें और पर्सनल टीवी स्क्रीन.
किंगफिशर प्लेन एक उड़ता हुआ फाइव स्टार होटल की तरह था. लेकिन इस चमक-धमक के खर्च को यह कंपनी भी कंट्रोल नहीं कर पाई. और साल 2011-12 तक आते-आते हालत इतनी बिगड़ गई कि ना तो एंप्लाइजस को सैलरी देने के पैसे थे और ना ही फ्यूल भरने के. आखिरकार साल 2012 में किंगफिशर की फ्लाइट भी हमेशा के लिए बंद हो गई. किंगफिशर के फॉल के बाद साल 2013 तक इंडिगो इंडिया की नंबर वन डोमेस्टिक एयरलाइन बन चुकी थी. उसका मार्केट शेयर करीब 30% तक पहुंच गया था. जो जेट एयरवेज और एयर इंडिया जैसे पुराने प्लेयर से कहीं ज्यादा था.
इंटरनेशनल फ्लाइट शुरू की
अब इंडिया में अपना नाम बनाने के बाद इंडिगो ने बाहर की मार्केट में कदम रखने का फैसला किया. इसकी शुरुआत हुई सिंगापुर और बैंकॉक जैसे पॉपुलर डेस्टिनेशन से. इस बीच इंडिगो को टक्कर देने के लिए मैदान में कुछ नए खिलाड़ी भी उतरे. जैसे 2014 में एयर एशिया और 2015 में विस्तारा ने अपनी फ्लाइट शुरू की.
उस वक्त ऐसा लगा कि शायद अब इंडिगो को इन विदेशी प्लेयर्स से कड़ी टक्कर मिलने वाली है. लेकिन इन दोनों का फोकस एकदम अलग था.विस्तारा का फोकस था प्रीमियम सर्विज पर जबकि एयर एशिया ध्यान दे रही थी अल्ट्रा लो कॉस्ट मॉडल पर लेकिन इंडिगो मिडिल क्लास लोगों को टारगेट कर रहा था. ऐसे में एयर एशिया का स्केल भी काफी छोटा रह गया और आखिरकार वो एयर इंडिया में जाकर मर्ज हो गई. कुल मिलाकर इंडिगो को इनसे कोई खास फर्क नहीं पड़ा और हर साल वो अपने फ्लट में नए प्लेेंस जोड़ता गया.
आपको बता दें कि कि इंडिगो ने साल 2011 में एक साथ 180 प्लेंस का ऑर्डर दिया था. फिर 2015 में 250 प्लेंस और 2019 में पूरे 300 नए प्लेंस का ऑर्डर प्लेस किया जो इंडिगो के एक्सपेंशन का एक बहुत बड़ा रीजन था.
दो दोस्तों के बीच अनबन
अब इंडिगो की ग्रोथ बाहर से देखने पर एकदम स्मूथ लग रही थी. लेकिन साल 2018-19 में कंपनी के अंदर एक नया तूफान उठ रहा था. राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल जिन्होंने मिलकरइंडिगो की शुरुआत की थी उनके बीच अब गहरी अनबन होने लगी थी. यहां तक कि साल 2019 में राकेश गंगवाल ने कंपनी में कॉर्पोरेट गवर्नेंस की गड़बड़ियों पर सवाल उठाते हुए सेबी को लेटर भेजकर आरोप लगाया कि इंडिगो के डिसीजंस राहुल भाटिया के फायदे के लिए ज्यादा होते हैं, ना कि बाकी शेयर होल्डर्स के लिए. इससे इंडिगो के टॉप मैनेजमेंट में हलचल मच गई. वो दो दोस्त जिन्होंने मिलकर इंडिगो को खड़ा किया था, अब एक दूसरे के खिलाफ खड़े थे. वहीं कुछ ही साल बाद साल 2022 की शुरुआत में राकेश गंगवाल ने कंपनी के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया और यह भी ऐलान किया कि वह धीरे-धीरे अपना सारा स्टेक बेच देंगे. लेकिन इस अंदरूनी लड़ाई के बावजूद इंडिगो के ऑपरेशन पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ा और यही साबित करता है कि इंडिगो का मैनेजमेंट कितना मैच्योर था कि उन्होंने अपने आपसी मतभेदों को बिजनेस के ऊपर हावी होने नहीं दिया.
कोविड का दौर बना चैलेंज
अब साल 2020 तक इंडिगो अपने पीक पर थी. लेकिन तभी एक ऐसा तूफान आया जिसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया और उस तूफान का नाम था कोविड-19. मार्च 2020 में पूरे इंडिया के पैसेंजर फ्लाइट्स पर रोक लग गई. एयरपोर्ट्स खाली हो गए और आसमान एकदम सूना पड़ गया. इंडिगो के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था कि फाइनेंसियल ईयर 2020-21 में उसे हजारों करोड़ का नुकसान झेलना पड़ा था. लेकिन यहां भी इंडिगो ने सर्वाइव करने का एक नया तरीका निकाल लिया था.
कंपनी ने तुरंत बड़े कदम उठाते हुए टॉप मैनेजमेंट की सैलरी में बड़ी कटौती की. पायलट्स और क्रू की सैलरी भी कम की गई और कुछ एंप्लाइजस को नौकरी से निकाला गया जिससे खर्चों को कम किया जा सके. साथ ही लॉकडाउन के दौरान इंडिगो ने अपने कुछ प्लेंस को कारगो फ्लाइट में कन्वर्ट कर दिया था ताकि थोड़ा बहुत रेवेन्यू भी जनरेट हो सके. इस तरह 2022 आते-आते जैसे ही हालात नॉर्मल हुए तो इंडिगो ने फ्लाइट की बढ़ती हुई डिमांड का पूरा फायदा उठाया. इतना कि 2022 के मिड तक इंडिगो एक बार फिर लॉस से उभर कर प्रॉफिट में आ गई.
लेकिन दूसरी तरफ कोविड की वजह से बाकी एयरलाइंस की हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई. Air India और Vistar को Tata ग्रुप ने अपने अंडर में ले लिया. दूसरी तरफ Spiceet भी फाइनेंसियल प्रॉब्लम में फंस गई और इसमें सबसे बड़ा झटका लगा GFTST को जो पहले Go एयर हुआ करता था. हैवी लॉसेस के चलते GFTS 2023 में बैंकरप्ट हो गई और उसकी फ्लाइट्स हमेशा के लिए बंद हो गई. इस तरह साल 2023 तक इंडिगो का डोमेस्टिक मार्केट शेयर 60% से भी ऊपर चला गया.
इसका मतलब यह था कि इंडिया में हर 10 में से छह लोग जो फ्लाइट से सफर कर रहे थे वो इंडिगो के फ्लाइट में बैठे थे. यह लगभग मोनोपोली जैसी सिचुएशन थी जो इससे पहले इंडियन एविएशन मार्केट में कभी भी नहीं देखी गई.
पेरिस एयर शो में उठाया बड़ा कदम
जून 2023 में इंडिगो ने पेरिस एयर शो में एक ऐसा कदम उठा लिया जिससे पूरे एिएशन इंडस्ट्री में हलचल मच गई.
इंडिगो ने एक ही बार में 500 नए प्लेंस का ऑर्डर दे दिया. यह एविएशन के इतिहास का सबसे बड़ा ऑर्डर था. इस स्टेप के साथ ही इंडिगो ने साफ कर दिया कि आने वाले कई सालों तक इंडिया के आसमान पर उसी का दबदबा रहने वाला है. आज इंडिगो के फ्लट में 400 से ज्यादा प्लेेंस एक्टिव सर्विस में है. और आने वाले सालों में सैकड़ों नए प्लेंस इसमें जुड़ने वाले हैं. इंडिगो की कहानी हमें यह सिखाती है कि मार्केट चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों ना हो अगर स्ट्रेटजी सही हो, डिसिप्लिन बना रहे और कस्टमर की जरूरत को समझा जाए तो नामुमकिन को भी मुमकिन बनाया जा सकता है.