गणेश जी को क्यों नहीं लगाया गया किसी इंसान का मस्तक? 90 फीसदी लोगों को आज भी नहीं है पता!
Ganesh ji
रुचि गुप्ता
Ganesh Ji Story: पादम्कलप के समय एक बार देवराज इंद्र पुष्पभद्रा नदी के समीप गजराज पर बैठ कर यात्रा कर रहे थे। श्री लक्ष्मी के नशे में चूर, इंद्र वहां के मनोहर जंगलों में घूम रहे थे। उसी समय उन्होंने रम्भा नामक अप्सरा को देखा और उसे देखते ही रह गए। रम्भा का रूप उस समय बहुत कामुक लग रहा था। उस समय रम्भा को जो भी देखता, वह बस उसे ही देखता रह जाता। ऐसा ही जादू कुछ इंद्रदेव पर भी चला।
रम्भा उस समय कामदेव की ओर जा रही थी, लेकिन इंद्रदेव ने उसकी ओर बढ़ते हुए उससे पूछा कि वह कहाँ जा रही है। साथ ही उन्होंने रम्भा को देखते हुए कहा कि उनके दूत ने, उन्हें रम्भा के बारे में काफी कुछ बताया है और वे कई दिनों से उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
उन्होंने कई प्रकार की उपमाएं देते हुए रम्भा को कहा कि जिस तरह स्वच्छ जल चाहने वाला कभी कीचड़ नहीं चाहता, पुष्पों के सेज पर रहने वाला अस्त्रों की शय्या नहीं चाहता, उसी तरह तुम्हें सामने देख कर किसी और को चाहने के मुझे कोई इच्छा नहीं है। इंद्रदेव की बातें सुन कर रम्भा उनसे मन को मोह लेने वाली बातें करने लगी। उसने देवराज इंद्र के समाने सभी पुरुषों को कम बताते हुए कहा कि वह भी उनकी दासी बनने को तैयार है।
यह भी पढ़ें- Sankashti Chaturthi 2023: कब है संकष्टी चतुर्थी व्रत, जानें शुभ तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि
उसके बाद इंद्रदेव और रम्भा दोनों ने बहुत समय एकांत में बिताया। दोनों हर पल एक-दूसरे में खोए रहते। इसी बीच उस मार्ग पर दुर्वासा मुनि अपने शिष्यों के साथ आ पहुँचे। दुर्वासा मुनि सीधे वैकुण्ठ से आ रहे थे और उन्हें देख कर देवराज इंद्र एकदम स्तब्ध हो गए। फिर थोड़ा संभल कर उन्होंने मुनि को प्रणाम किया।
दुर्वासा मुनि ने इंद्र देव को आशीर्वाद के रूप में पारिजात फूलों की माला दी और साथ में यह भी बताया कि जो इसे अपने सिर पर धारण करेगा, चारों ओर उसकी जयकार होगी। सभी जन सबसे पहले उसकी ही पूजा करेंगे और वह देवताओं में भी अग्रणी होगा। ज्ञान, बुद्धि, तेज और बल में उनसे आगे कोई नहीं होगा। महालक्ष्मी भी कभी उन्हें छोड़कर नहीं जाएगी। और जो अहंकार में आकर भगवान् के इस प्रसाद का अपमान करेगा वह श्रीहीन हो जाएगा।
यह भी पढ़ें- ऐसे धारण करें घोड़े की नाल का छल्ला, शनि की ढैय्या-साढ़ेसाती से जल्द मिलेगी मुक्ति
दुर्वासा मुनि यह कहकर वहां से चले गए। रम्भा के यौवन के नशे में डूबे हुए इंद्रदेव ने दुर्वासा मुनि की दी हुए पारिजात पुष्पों की माला अपने गजराज के मस्तक की ओर उछाल दी। उस माला को पहनते ही गजराज ने इंद्र देव को ज़मीन पर गिरा दिया और वहां से चले गए। उसी समय महेंद्र को श्रीहीन देख कर रम्भा भी स्वर्ग की ओर चली गई।
प्रसाद रुपी माला को धारण करने के बाद गजराज भी एक हथिनी के साथ सुख भोगने लगे और बाद में भगवान् शिव ने गणेश जी के शरीर के साथ जो सिर जोड़ा, वह उन्हीं गजराज का था। क्योंकि प्रसाद रुपी माला को धारण करने के कारण इस मस्तक को देवों में अग्रणी, ज्ञान, तेज, बुद्धि और बल में सबसे आगे व कभी श्रीहीन न होने का वरदान जो प्राप्त था।
यह भी पढ़ें- बुध-गोचर से बना राजयोग करेगा इन 3 राशियों भाग्योदय, जॉब-बिजनेस में होगी छप्परफाड़ कमाई
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।
Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world
on News24. Follow News24 and Download our - News24
Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google
News.