दुनिया का फ्रिज कहलाने वाले आर्कटिक पर अब खतरा मंडराने लगा है. आर्कटिक क्षेत्र जलवायु संकट की वजह से तेजी से गर्म हो रहा है.नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) की 2025 की रिपोर्ट को देखकर सभी वैज्ञानिकों के पसीने छूट गए. रिपोर्ट में ये साफ देखा जा सकता है कि आर्कटिक में अब उतनी सर्दी नहीं पड़ रही, जितनी पड़नी चाहिए और इसका खामियाजा पूरी दुनिया को भुगतना पड़ेगा. अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025 तक आर्कटिक में 125 साल के रिकॉर्ड में सबसे ज्यादा गर्मी दर्ज की गई. आर्कटिक की सैकड़ों नदियों का रंग बदल रहा है, अब उनका रंग चमकदार लाल-नारंगी होने लगा है. वैज्ञानिक इसका जिम्मेदार पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने को ठहरा रहे हैं. पर्माफ्रॉस्ट एक ऐसी जमीन है जो कम से कम दो साल तक 0°C या उससे नीचे के तापमान पर जमी रहती है.
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पिछले 10 साल सबसे ज्यादा गर्म
NOAA की रिपोर्ट में ये साफ हुआ है कि आर्कटिक में 125 सालों का रिकॉर्ड टूट गया. अब इस इलाके में औसत से चार गुना तेजी से तापमान बढ़ रहा है. आर्कटिक के इतिहास में पिछले 10 साल सबसे ज्यादा गर्म रहे हैं. मार्च 2025 में समुद्र की बर्फ सबसे ज्यादा पिघली है. बर्फ की मोटाई 28% कम हुई है. वहीं क्लाइमेट चेंज की वजह से 2025 में ग्रीनलैंड से 125 अरब टन बर्फ पिघल गई जो समुद्र के स्तर को बढ़ाने के लिए काफी होती है.
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रस्टिंग ने बदला नदियों का रंग
सैकड़ों नदियों के पानी का अचानक बदलता हुआ रंग भी चिंता का विषय है. नदियों का रंग बदलकर लाल-नारंगी हो गया जिसकी वजह रस्टिंग है. दरअसल, जब जमीन में हजारों सालों से जमे हुए लोहे के खनिज, बढ़ते तापमान और बर्फ पिघलने की वजह से रिसकर नदियों में मिलने लगते हैं तो रस्टिंग की वजह से उनका रंग बदलने लगता है. यही वजह है जिससे सैकड़ों नदियों के पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है. रिपोर्ट के मुताबिक 200 से ज्यादा नदियों के पानी का रंग बदल रहा है.
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बदल रहा है समुद्र का मिजाज
आर्कटिक में बढ़ती गर्मी का असर अब समुद्र पर भी देखा जा सकता है. अटकलांटिक महासागर का पानी अब नॉर्थ की तरफ आर्कटिक में घुस रहा है, जिसकी वजह से प्लैंकटन की मात्रा बढ़ रही है. इसका असर आर्कटिक की मूल प्रजातियों पर भी पड़ रहा है, इनकी संख्या बहुत तेजी से कम हो रही है.
बदल रहा है समुद्र का मिजाज
आर्कटिक में बढ़ती गर्मी का असर अब समुद्र पर भी देखा जा सकता है. अटकलांटिक महासागर का पानी अब नॉर्थ की तरफ आर्कटिक में घुस रहा है, जिसकी वजह से प्लैंकटन की मात्रा बढ़ रही है. इसका असर आर्कटिक की मूल प्रजातियों पर भी पड़ रहा है, इनकी संख्या बहुत तेजी से कम हो रही है. आर्कटिक में जारी बदलाव पूरी दुनिया के लिए चिंताजनक है. वैज्ञानिकों के मुताबिक इसका अंजाम बुरा हो सकता है. तटीय शहरों के डूबने का खतरा बढ़ेगा, बर्फ में रहने वाले जानवर भूखे मर जाएंगे, बेमौसम बारिश, बाढ़ और लैंडस्लाइड्स जैसी घटनाओं में भी इजाफा होगा.
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