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चीन समर्थक मोहम्मद मुइजू बने मालदीव के नए राष्ट्रपति, चुनाव के दौरान चलाया था ‘इंडिया आउट’ कैंपेन, पढ़ें पूरा विश्लेषण

Mohamed Muizzu Elected Maldives President India China: मालदीव के राष्ट्रपति चुनाव में निवर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम सालिह को हार का सामना करना पडा है। चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार माले शहर के मेयर मोहम्मद मुइजू ने निवर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम सालिह पर 18 हजार वोटों से जीत दर्ज की। बता दें कि मोहम्मद मुइज्जू चीन समर्थक […]

Mohamed Muizzu Elected Maldives President
Mohamed Muizzu Elected Maldives President India China: मालदीव के राष्ट्रपति चुनाव में निवर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम सालिह को हार का सामना करना पडा है। चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार माले शहर के मेयर मोहम्मद मुइजू ने निवर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम सालिह पर 18 हजार वोटों से जीत दर्ज की। बता दें कि मोहम्मद मुइज्जू चीन समर्थक माने जाते हैं। हारने के बाद एक्स पर एक पोस्ट साझा करते हुए सालिह ने कहा कि मुइजू को उनकी जीत पर बधाई। उन्होंने मालदीव के लोगों को दुनिया के सामने सुंदर लोकतांत्रिक उदाहरण पेश करने के लिए धन्यवाद भी दिया। उन्होंने कहा कि इस चुनाव में 85 फीसदी मतदान हुआ जो कि अपने आप में रिकाॅर्ड है।

राजनीति में आने से पहले सिविल इंजीनियर थे मुइजू

वहीं मुइजू ने अपनी जीत की घोषणा के बाद कहा कि मालदीव के लोगों का स्पष्ट संदेश है वे इस परिणाम का स्वागत करते हैं। वे देश को समृद्ध और संप्रभु बनाने की दिशा और काम करेंगे। 45 वर्षीय नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने यूके से सिविल इंजीनियरिंग में डाॅक्टरेट की उपाधि ली है। राजनीति में कदम रखने से पहले उन्होंने एक कंपनी में इंजीनियर के रूप में भी काम किया था। फिलहाल वे राजधानी माले के मेयर थे। मेयर बनने से पहले वे आवास और बुनियादी ढांचा मंत्री थे।

मुइजू ने चलाया था इंडिया आउट कैंपेन

चुनाव में मुइजू ने अपने देश की जनता को इस बात का भरोसा दिलाया कि वे हमारे देश में मौजूद भारतीय सैनिकों को वापस भेजेंगे। इसके लिए उन्होंने चुनाव के दौरान 'इंडिया आउट' कैंपेन चलाया था। इसके साथ ही उन्होंने भीड़भाड़ वाली राजधानी में आवास संकट, भूमि की कमी और देश में घटते डाॅलर भंडार के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था। भारत से 450 मील दूर हिंद महासागर में स्थित मालदीव सामरिक दृष्टि से भारत के लिए बड़ा महत्वपूर्ण है। इस देश पर चीन और भारत दोनों की ही नजर है। एक तरफ चीन मालदीव में बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए भारी मात्रा में कर्ज दे रहा है। वहीं दूसरी ओर भारत मालदीव के प्रमुख बदंरगाहों के पुर्नविकास में जुटा है।

मालदीव पर चीन की भी नजर

चीन मालदीव पर अपना प्रभुत्व स्थापित करके हिंद महसागर से गुजरने वाले जहाजों की जासूसी करना चाहता है। इसके लिए उसने मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के साथ मिलकर एक समझौता भी किया था। इसके बदले में मालदीव चीन के बेल्ट रोड इनशिएटिव का हिस्सा बना था। लेकिन यामीन के हटने के बाद चीन विरोधी सालिह देश के नए राष्ट्रपति बने। उनके राष्ट्रपति बनने के बाद चीन को पूरी तरह से मालदीव से दरकिनार कर दिया गया। बता दें कि चीन समर्थक अब्दुल्ला यामीन भ्रष्टाचार के आरोप में फिलहाल 11 साल जेल की सजा काट रहे हैं।

शुरू से मालदीव के साथ रहा है भारत

मालद्वीव के साथ भारत के संबंध हमेशा से मधुर रहे हैं। भारत के साथ निकटता मालद्वीव के लिए हमेशा फायदेमंद रही है। 1988 में तख्तापलट की कोशिश, 2004 की सुनामी, 2014 का जल संकट, कोविड महामारी के दौरान भारत एक सच्चे मित्र के रूप में मालदीव की मदद करता आया है। भारत मालदीव में बुनियादी ढांचा निर्माण, क्रेडिट लाइन, माले संपर्क परियोजना, माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट, हनुमाधू एयरपोर्ट, हुलहुमले क्रिकेट स्टेडियम, गुल्हिफाल्हू पोर्ट के निर्माण में भारत की हिस्सेदारी रही है।

चीन के कर्ज में डूबा है मालदीव

भारत-चीन दोनों के लिए मालदीव महत्वपूर्ण है। अब्दुल्ला यामीन के शासनकाल में मालदीव ने अपना एक द्वीप 40 लाख डाॅलर में 50 सालों के लिए लीज पर लिया था। मालदीव पर चीन का एक बिलियन डाॅलर का कर्ज है जो चीन ने वहां की विकास परियोजनाओं में निवेश किया है।


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