जस्टिन के पिता का भी सख्त रहा रवैया, आखिर क्यों भारत के खिलाफ बेरुखी दिखाता है ट्रूडो परिवार?
India-Canada Relation
india canada row: खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप निज्जर की हत्या के बाद से लगातार भारत और कनाडा में संबंध खराब हो रहे हैं। निज्जर की हत्या में भारत का हाथ बताने के कनाडाई पीएम के बयान के बाद से तनाव चरम पर है। लेकिन गौर से देखें तो संबंध आज से ही खराब नहीं हुए। जस्टिन ट्रूडो के पिता भी जब कनाडा के पीएम थे, तब भी भारत के संबंध ठीक नहीं थी। ट्रूडो के पिता पियरे एलिएट ट्रूडो कनाडा के 15वें प्रधानमंत्री थे, जो 1971 की शुरुआत में भारत दौरे पर आए थे। पांच दिन के दौरे के समय भारत की पीएम इंदिरा गांधी थीं। यहां पियरे ने ऊंट की सवारी करने के साथ ही ताजमहल का दीदार किया था। गंगाघाट का निरीक्षण भी किया। लेकिन असल में भारत के साथ कनाडा की तल्खी का कारण परमाणु परीक्षण था। कोई खालिस्तानी मुद्दा नहीं।
दरअसल भारत ने कनाडा से कनाडा ड्यूटेरियम यूरेनियम रिएक्टर यानी CANDU Reactor हासिल किया था। जिसके लिए शर्त थी कि इसका उपयोग शांति के काम में किया जाएगा। लेकिन बाद में यही मशीन भारत और कनाडा में विवाद का कारण बन गई। क्योंकि इस रिएक्टर से परमाण ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। भारत जैसे विकासशील देशों को इसकी काफी जरूरत थी। लेकिन उत्पादन इकाइयों की कमी के कारण यूरेनियम के साथ प्लूटोनियम भी मंगवाया गया। भारत की मदद अमेरिका और कनाडा ने की, जो सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम में भारत के साथी बने। कई और परमाण कार्यक्रमों में दोनों की साझेदारी हुई।
कनाडा ने परमाणु विस्फोट के बाद खींच लिए थे पीछे हाथ
इसके तहत ही CIRUS न्यूक्लियर रिएक्टर की शुरुआत भी 1960 में कर दी गई। कनाडा ने इसमें सहयोग दिया और भारत की ओर से अगुआई होमी जहांगीर भाभा की ओर से की गई। इसी दौरान कनाडाई पीएम पियरे की ओर से कहा गया कि यह कार्यक्रम सिर्फ शांति के लिए है। अगर भारत कोई परमाण परीक्षण करेगा तो कनाडा कार्यक्रम को सस्पेंड कर देगा। एक रिपोर्ट के अनुसार पियरे के दौरे को सिर्फ 3 साल ही बीते थे। उसके बाद 1974 में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण कर दिया।
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जिसके बाद कनाडा ने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम से हाथ खींच लिए थे। लेकिन भारत ने शांति का हवाला देकर परमाणु परीक्षण की बात कही थी। कहा था कि कोई भी उल्लंघन समझौते को लेकर नहीं किया गया है। कनाडा ने अपने सभी अधिकारी रिएक्टरों से वापस बुला लिए थे। कई वर्ष बीत गए। कनाडा के साथ रिश्ते कुछ सामान्य तब हुए, जब पीएम मनमोहन सिंह 2010 में कनाडा गए थे। यहां दोनों देशों के बीच परमाण समझौते को लेकर सिग्नेचर हुए थे। लेकिन इसके बाद तल्खी रिश्तों में तब आई, जब कनाडा ने अपने देश में रह रहे खालिस्तानी आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई से इन्कार कर दिया था। लगातार 1970 के बाद से कनाडा में सिखों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है।
परमार पर लगा था 329 लोगों की हत्या का आरोप
कनाडा में कुल आबादी में फिलहाल सिख 2 परसेंट है। 1980 में पंजाब में उग्रवाद फैला, तो कई आतंकी पंजाब में थे। एक आतंकी तलविंदर सिंह परमार 1981 में कनाडा भाग गया था। उसके खिलाफ दो पुलिसवालों के मर्डर का आरोप था। भारत ने कनाडा से उसको सौंप देने की गुहार लगाई थी। लेकिन पियरे की सरकार ने मना कर दिया था। भारत ने खुफिया रिपोर्ट के आधार पर एक जून 1985 को एक विमान पर हमला होने की योजना के बारे में बताया था। जिसमें खालिस्तानी आतंकियों का जिक्र था, जो अटैक करने वाले थे।
लेकिन भारत की सुरक्षा मांग पर कनाडा ने गौर नहीं किया। इसके बाद 23 जून 1985 को एयर इंडिया के कनिष्क विमान में टोरंटो से लंदन जाते समय विस्फोट किया गया था। जिसमें 329 लोग मारे गए थे। अधिकतर लोग कनाडा के थे। आरोप परमार पर लगे, लेकिन ट्रूडो ने उसको बचा लिया। हालांकि परमार 1992 में पंजाब में पुलिस के हत्थे चढ़ गया था। जिसको मार गिराया गया था। अब खालिस्तान के मामले में ट्रूडो का रवैया भी अपने पिता की ही तरह है।
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