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यूरोपीय जलवायु एजेंसी का दावा, जनवरी 2025 अब तक का सबसे गर्म महीना

Globally Warmest Month: इस साल जनवरी महीने में तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों (Pre-Industrial levels) से 1.75 डिग्री सेल्सियस अधिक था, जबकि यूरोपीय इलाके में औसत तापमान 1991 से लेकर 2000 तक जनवरी माह में औसत से 2.51 डिग्री अधिक था।

सांकेतिक तस्वीर।
Globally Warmest Month: जनवरी महीने में ‘ला नीना’ के प्रभाव के बावजूद रिकॉर्ड सबसे अधिक गर्मी पड़ने की बात सामने आई है। यूरोपी जलवायु एजेंसी ने गुरुवार को यह जानकारी दी। जनवरी के महीने में सबसे अधिक तापमान की घटना ऐसे समय में हुई है जब पृथ्वी पर 2024 को सबसे गर्म वर्ष के रूप में अनुभव किया जा रहा है और यह पहला वर्ष होगा जब वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक दर्ज किया गया।

जनवरी 2025 में औसत तापमान 13.23 डिग्री रहा

यूरोपीय जलवायु सेवा कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) की गणना के अनुसार, जनवरी 2025 में औसत तापमान 13.23 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो पिछले साल सबसे गर्म जनवरी से 0.09 डिग्री अधिक और 1991-2020 के औसत से 0.79 डिग्री अधिक था। वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि जनवरी में पृथ्वी का तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.75 डिग्री सेल्सियस अधिक था। पिछले 19 महीनों में से 18 महीने वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री के निशान से ऊपर रहा है। सी3एस ने एक रिपोर्ट में कहा, "यूरोप के बाहर, उत्तर-पूर्व और उत्तर-पश्चिम कनाडा, अलास्का और साइबेरिया में तापमान सबसे ज्यादा औसत से अधिक था। यह दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी हिस्सो, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका के अधिकांश हिस्सों में भी औसत से ज्यादा दर्ज किए गए।

क्या है ‘ला नीना’?

सी3एस की उप निदेशक सामंथा बर्गेस ने कहा, ‘‘जनवरी 2025 एक और आश्चर्यजनक महीना है, जिसमें उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र (Tropical Pacific Region) में ‘ला नीना’ की स्थिति विकसित होने और वैश्विक तापमान पर उनके अस्थायी ठंड के प्रभाव के बावजूद पिछले दो वर्षों के दौरान रिकॉर्ड तापमान का दर्ज होना जारी रहा।’’ ‘ला नीना’ जलवायु संबंधी घटना है जो आमतौर पर वैश्विक तापमान को ठंडा करता है। ‘ला नीना’ के विकसित होने से मध्य प्रशांत महासागर का सतही जल सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है, जिससे वैश्विक स्तर पर मौसम प्रभावित होता है।

'ला नीना' के प्रभाव से भारत में भारी वर्षा होती है

‘ला नीना’ के प्रभाव से आमतौर पर भारत में मजबूत मानसून और भारी वर्षा होती है, जबकि अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में यह मौसमी घटना सूखे का कारण बनती है। यह वैश्विक तापमान को थोड़ा ठंडा भी करती है, जबकि इसके विपरीत ‘अल नीनो’ की घटना मौसम को गर्म करती है। कॉपरनिकस के वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि पिछले 12 महीने की अवधि (फरवरी 2024 – जनवरी 2025) पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में 1.61 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म थी।

2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष घोषित

इस बीच, दुनिया के कई हिस्सों में समुद्र की सतह का तापमान (एसएसटी) असामान्य रूप से अधिक रहा। जनवरी के लिए औसत एसएसटी (60 डिग्री दक्षिण और 60 डिग्री उत्तर के बीच) 20.78 डिग्री सेल्सियस था, जो इसे रिकॉर्ड दूसरा सबसे गर्म जनवरी माह बनाता है। जनवरी में विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने 2024 को अब तक का सबसे गर्म वर्ष घोषित किया था।


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