बांग्लादेश में दीपू चंद्र दास नाम के शख्स की ईशनिंदा के आरोप में भीड़ वीभत्स हत्या कर देती है. बाद में पुलिस जांच में सामने आता है कि ईशनिंदा का आरोप झूठा था. बताया जाता है कि ईशनिंदा की अफवाह दीपू के साथ काम करने वाले लोगों ने ही फैलाई थी. इतना ही नहीं, उन लोगों ने बाहर के लोगों को दीपू की हत्या के लिए उकसाया. उन लोगों से ईशनिंदा करने के सबूत भी मांगे गए थे, उसमें भी वे नाकाम रहे. लेकिन फिर भी वे दीपू की जान के पीछे पड़े रहे, आखिर में उन्होंने दीपू की बड़ी बेरहमी से जान ले ली.
एनडीटीवी ने अपनी रिपोर्ट में दीपू दास के साथ काम करने वाले चश्मदीद के हवाले से लिखा है कि उसे हिंदू होने की वजह से नहीं मारा गया, बल्कि उसकी कड़ी मेहनत से लोग जलते थे. उन्होंने बताया कि जिन लोगों को काम नहीं मिल रहा था, उन्होंने ही द्वेष के चलते ईशनिंदा की अफवाह फैलाई थी.
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चश्मदीद ने दीपू की हत्या का रौंगटे खड़े कर देने वाला आंखों देखा मंजर भी बयां किया. उसने बताया कि उस दिन फैक्ट्री और उसके बाहर क्या क्या हुआ था.
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चश्मदीद ने बताया, 'पहले, दीपू को एचआर ऑफिस बुलाया गया. उससे जबरन इस्तीफा लिखवाया गया. वहां फैक्ट्री के कर्मचारियों के साथ बाहरी लोग भी थे. दीपू को उन लोगों के हवाले कर दिया गया.'
साथ ही बताया, 'उसके बाद दीपू को भीड़ फैक्ट्री के गेट से बाहर ले गई और जनता के हवाले कर दिया. बाहर इंतजार कर रहे लोगों ने उसे बेरहमी से पीटा. उसके चेहरे और छाती पर मारा गया. लाठियों से बेरहमी से पीटा. काफी खून बह रहा था. यह सब फैक्ट्री के गेट के ठीक बाहर हुआ. बाद में वे शव को कम से कम 1 किलोमीटर तक घसीटते हुए ले गए और एक पेड़ से लटका दिया. उसे शव को आग लगा दी.'
चश्मदीद ने इसके अलावा कहा कि हम वहीं थे लेकिन हम एक शब्द भी नहीं बोल सके. कुछ लोगों ने बचाने की कोशिश की लेकिन खुद पर हमले के डर से पीछे हट गए.