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150 मिनट बर्फ के नीचे दबा रहा, होश आने पर ली लंबी-लंबी सांसें; Uttarakhand Avalanche में जिंदा बचे शख्स ने सुनाई आपबीती

Mana Village Avalanche : उत्तराखंड के माणा गांव में आए बर्फीले तूफान ने BRO के कर्मचारियों को अपनी चपेट में ले लिया। 55 लोग बर्फ में दब गए थे, जिसमें से 4 की मौत हो गई है। मौत को मात देने वाले शख्स ने सुनाई रौंगटे खड़े कर देने वाली आपबीती।

Mana Village Avalanche : उत्तराखंड के माणा गांव के पास आए बर्फीले तूफान ने BRO के लिए काम कर रहे लोगों के लिए जानलेवा साबित हुआ। BRO के 55 कर्मचारी बर्फ के नीचे दब गए थे, जिसमें से 49 को निकाला गया जबकि एक खुद ही वापस अपने घर पहुंच गया है। बताया जा रहा है कि अब तक कुल 4 लोगों की मौत हुई है जबकि अन्य मजदूरों की तलाश जारी है। बर्फ के नीचे दबे होने के बाद आखिर कैसे एक शख्स ने अपनी जान बचाई? उसने अपनी आपबीती सुनाई है। बर्फ के नीचे दबे होने के बाद मौत को मात देकर जिंदा बचे विपिन कुमार ने बताया कि वह सड़क पर जमी बर्फ को हटाने के काम में लगे हुए थे। वह एक मशीन चलाते थे और शिफ्ट पूरी करने के बाद आराम कर रहे थे। आराम करने के लिए एक कंटेनर का इस्तेमाल करते थे। विपिन ने बताया कि मैंने एक तेज गर्जना सुनी, गड़गड़ाहट की तरह और इससे पहले कि मैं कुछ कर पाता, तब तक हर तरफ अंधेरा हो गया। बर्फ का पूरा पहाड़ उसी जगह गिर गया जहां BRO के कर्मचारी थे। सभी बर्फ की मोटी परत के नीचे दब गए। विपिन ने बताया कि इसके बाद सन्नाटा छा गया। हिला भी नहीं जा रहा था। शरीर के ऊपर बर्फ और डर के कारण शरीर जम गया था। मुझे लगा कि यह अंत है। मैं हिल नहीं सकता था और कुछ देख भी नहीं पा रहा था। कुछ देर बाद मैंने जोर से हांफना शुरू किया और शरीर को हिलाया। इसके बाद बर्फ को हटाना शुरू किया। ये सब करने में ढाई घंटे से अधिक का वक्त लग गया। विपिन से कुछ ही दूरी पर दर्जन भर से अधिक कर्मचारी सो रहे थे, जिनके कंटेनर कागज के टुकड़े की तरह फट गए थे। कुछ लोग बड़ी ही मुश्किल से कंटेनर से बाहर निकले और पैदल ही वहां से आगे बढ़ने लगे। हम में से कुछ तो ऐसे भी थे, जिन्होंने ठीक से कपड़े भी नहीं पहने थे। ठंड के कारण हालत खराब हो चुकी थी। यह भी पढ़ें : उत्तराखंड में जहां बर्फ के नीचे दबे 55 मजदूर, वहां ऐसे बच निकलने 2 हजार ग्रामीण बिहार के रहने वाले प्रोजेक्ट मैनेजर को भयंकर चोट लगी, जान बच गई लेकिन शरीर में हुए घाव को भरने के लिए 29 टांके लगाने पड़े। ऐसा नहीं है कि बर्फ के नीचे दबने वालों में सिर्फ मजदूर थे बल्कि इसमें सिविल इंजीनियर, मैकेनिक, रसोइया और मशीन ऑपरेटर भी थे।


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