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UP को पहला एक्सप्रेस वे देने वाला जेपी ग्रुप का एमडी मनोज गौड़ कैसे पहुंचा सलाखों के पीछे, जानें पूरा मामला ?

Greater Noida News: ग्रेटर नोएडा में कभी एक छत्र राज करने वाला बिल्डर जेपी ग्रुप अब कानून के शिकंजे में इस कदर फंस चुका है कि आने वाले दिनों में उसकी मुश्किलें और बढ़ सकती है. जेपी ग्रुप ने उत्तर प्रदेश को पहला एक्सप्रेस वे दिया था. इसका नाम यमुना एक्सप्रेस वे है.

Greater Noida News: ग्रेटर नोएडा में कभी एक छत्र राज करने वाला बिल्डर जेपी ग्रुप अब कानून के शिकंजे में इस कदर फंस चुका है कि आने वाले दिनों में उसकी मुश्किलें और बढ़ सकती है. जेपी ग्रुप ने 2012 में उत्तर प्रदेश को पहला एक्सप्रेस वे दिया था. इसका नाम यमुना एक्सप्रेस वे है. 165 किलोमीटर लंबा यह एक्सप्रेस वे ग्रेटर नोएडा से शुरू होकर आगरा तक जाता है. समय का चक्र ऐसा बदला कि अब जेपी ग्रुप दिवालिया घोषित हो चुका है.

अर्श से शुरू हुआ सफर फर्श पर पहुंचा

जेपी ग्रुप की तूती मायावती सरकार में जमकर बोली जब कौड़ियों के भाव जमीन जेपी ग्रुप को दे दी गई. स्पोर्ट्स सिटी से लेकर फार्मूला वन बुद्धा इंटरनेशनल सर्किट तक कई ऐसे प्रोजेक्ट जेपी ने शुरू किए जो कि बाद में दिवालिया हो गए. फार्मूला वन रेसिंग ट्रैक पिछले 12 सालों से धूल फांक रहा है. वहां 2011, 2012, 2013 में रेस हुई उसके बाद से कोई फार्मूला वन रेस नहीं हुई. स्पोर्ट्स सिटी के खरीदार आज भी ठोकर खाने पर मजबूर है.

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डिजिटल रिकाॅर्ड से कसा कानूनी शिकंजा

दरअसल, इसी वर्ष मई के महीने में ईडी ने जेपी इंफ्राटेक और उसकी सहयोगी कंपनी के 15 ठिकानों पर छापेमारी की थी. इस दौरान महत्वपूर्ण दस्तावेज, डिजिटल उपकरण, बैंक रिकॉर्ड जब्त किए गए थे. डिजिटल रिकाॅर्ड की जांच करने पर पता चला है कि मामला मनी लांड्रिंग से जुड़ा हुआ है. ऐसे में पुख्ता सबूत मिलने के बाद अब ईडी ने मनोज गौड़ को सलाखों के पीछे भेज दिया है.

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निवेशकों के पैसों से की गई कथित हेराफेरी

ईडी की जांच में सामने आया है कि जेपी इंफ्राटेक ने अपने विभिन्न रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स में खरीदारों से वसूले गए पैसे को निर्धारित कार्यों में लगाने के बजाय अन्य परियोजनाओं और कंपनियों में ट्रांसफर कर दिया. इस कथित वित्तीय हेराफेरी के कारण हजारों निवेशकों और घर खरीदारों के सपने अधूरे रह गए, जबकि कई लोग वर्षों से अपने फ्लैट का इंतजार कर रहे हैं.

2017 में दर्ज हुई थी पहली एफआईआर

यह विवाद नया नहीं है. वर्ष 2017 में भी जब कई प्रोजेक्ट्स समय पर पूरे नहीं हुए, तो नाराज घर खरीदारों ने बिल्डर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. उस समय भी आरोप लगे थे कि कंपनी ने खरीदारों के धन का गलत इस्तेमाल किया और निर्माण कार्य को ठप छोड़ दिया. अब ईडी की ताजा कार्रवाई से पुराने घाव फिर हरे हो गए हैं. ईडी इस मामले में आगे और भी बड़ी कार्रवाई कर सकती है. फिलहाल ग्रुप पर 1200 करोड़ की मनी लांड्रिंग का आरोप है.

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