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‘घरेलू वैवाहिक कलह आम…आत्महत्या उकसावे की वजह नहीं’, औरेया सुसाइड केस में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वैवाहिक कलह को लेकर की जाने वाली आत्महत्याओं पर एक अहम टिप्पणी की है. कोर्ट का कहना है कि वैवाहिक कलह और आपसी मतभेद या लड़ाई के बाद अगर पति या फिर पत्नी ने आत्महत्या की तो उसे कोर्ट उसे किसी तरह का भी उकसावा नहीं मानेगा.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वैवाहिक कलह को लेकर की जाने वाली आत्महत्याओं पर एक अहम टिप्पणी की है. कोर्ट का कहना है कि वैवाहिक कलह और आपसी मतभेद या लड़ाई के बाद अलग पति या फिर पत्नी ने आत्महत्या की तो उसे कोर्ट उसे किसी तरह का भी उकसावा नहीं मानेगा.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में आत्महत्या के लिए उकसाने के एक मामले में एक महत्वपूर्ण आदेश देते हुए कहा है कि वैवाहिक कलह और घरेलू विवाद आम हैं और अगर किसी पति या पत्नी की आत्महत्या के कारण मृत्यु हो जाती है, तो इसे आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता.

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अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर झगड़े के दौरान पति या पत्नी या परिवार का कोई सदस्य कहता है कि "उसे मर जाना चाहिए" और बाद में वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है, तो यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा.

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कब का है मामला?

जानकारी के अनुसार, मामला 14 नवंबर, 2022 का है, जब औरैया में तीन लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. पीड़ित, जिसकी शादी रचना देवी से लगभग सात साल पहले हुई थी, ने 13 नवंबर, 2022 को आत्महत्या कर ली.

एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि उसकी पत्नी और ससुराल वालों द्वारा उसे लगातार परेशान और अपमानित किया जाता था. यह भी कहा गया था कि 8 नवंबर, 2022 को झगड़े के दौरान, रचना देवी के माता-पिता उसके ससुराल आए और अपने दामाद से कहा कि 'उसे मर जाना चाहिए'.

FIR में आगे कहा गया, रचना देवी ने पहले भी अपने पति के खिलाफ दहेज से संबंधित धाराओं में मामला दर्ज कराया था. समझौता होने के बाद भी, उसने मामला वापस नहीं लिया.

जांच के बाद, आरोप पत्र दाखिल किया गया और सत्र न्यायालय ने मामले का संज्ञान लिया. 19 अक्टूबर, 2023 को सत्र न्यायालय ने महिला और उसके माता-पिता की दोषमुक्ति याचिका खारिज कर दी.

इस फैसले को चुनौती देते हुए, याचिकाकर्ताओं ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि वैवाहिक झगड़े आम बात हैं और उकसाने के आरोप झूठे हैं. उन्होंने कहा कि जानबूझकर उकसाने का कोई सबूत नहीं है और झगड़े के दौरान दिए गए कथित बयान से उकसावे का मामला नहीं बनता.

आवेश में कहे गए शब्द उकसावा नहीं- HC

राज्य और शिकायतकर्ता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि ससुराल वालों की टिप्पणी में यातना, अपमान और उकसावे की भावना झलकती है, जो आईपीसी की धारा 306 के तहत उकसावे के लिए काफी है.

दोनों पक्षों को सुनने के बाद, उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि आत्महत्या के लिए उकसाने का इरादा भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत दोषसिद्धि के लिए आवश्यक है.

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अदालत ने कहा कि हालांकि गवाहों ने दावा किया कि ससुराल वालों ने उस व्यक्ति से कहा था कि "उसे मर जाना चाहिए," लेकिन आवेश में कहे गए ऐसे शब्द उकसावा नहीं है. साक्ष्यों से यह साबित नहीं होता कि पीड़ित के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.

उच्च न्यायालय ने माना कि निचली अदालत ने साक्ष्यों का समुचित विश्लेषण किए बिना रचना देवी और उसके माता-पिता की रिहाई की अर्जी खारिज कर दी थी. तदनुसार, उच्च न्यायालय ने औरैया सत्र न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया.


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