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भारत-पाक बाॅर्डर पर बसा है टीचर फैक्ट्री गांव, टीचर्स डे पर जानें 250 शिक्षक देने वाले ‘अध्यापक खेड़ा’ विलेज की कहानी

Teachers Day 2023 India Pakistan Border Teachers Factory Village: भारत-पाकिस्तान सीमा से महज 15 किमी. दूर पंजाब के फाजिल्का जिले में एक गांव है डंगर खेड़ा गांव। पंजाब का सीमावर्ती क्षेत्र अक्सर ड्रग्स की तस्करी के लिए सुर्खियों में रहता है। लेकिन इस गांव की यह उपलब्धि आपको उर्जा से भर देगी। डंगर खेड़ा गांव […]

Danger Khera Village
Teachers Day 2023 India Pakistan Border Teachers Factory Village: भारत-पाकिस्तान सीमा से महज 15 किमी. दूर पंजाब के फाजिल्का जिले में एक गांव है डंगर खेड़ा गांव। पंजाब का सीमावर्ती क्षेत्र अक्सर ड्रग्स की तस्करी के लिए सुर्खियों में रहता है। लेकिन इस गांव की यह उपलब्धि आपको उर्जा से भर देगी। डंगर खेड़ा गांव आसपास के लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। साढ़े 6 हजार की आबादी वाला यह गांव 1614 हैक्टेयर में फैला हुआ है। गांव में करीब 1100 परिवार रहते हैं। इन परिवारों ने देश के भविष्य को उज्जवल बनाने वाले 250 टीचर्स दिए हैं। इस गांव की कहानी शुरू होती है इसी गांव के टीचर कुलजीत सिंह डंगरखेड़ा के साथ। कुलजीत सिंह 1997 में सरकारी टीचर बने। तब से वह डंगरखेड़ा में पढ़ाई के लिए जुनून और गांव के युवाओं के लिए सरकारी टीचर बनने की बड़ी वजह बन गए।

डंगर खेड़ा का नाम बदलकर अध्यापक खेड़ा कर देना चाहिए

एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कुलजीत सिंह ने बताया कि जब उनकी 1997 में नौकरी लगी तो मुश्किल एक या दो लोग होंगे जिनका सेलेक्शन नौकरी के लिए हुआ था। गांव की जमीन ज्यादा उपजाऊ नहीं होने के कारण ज्यादातर नहरी पानी पर निर्भर है और घर का खर्च चलाने के लिए सरकारी नौकरी के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं है। मुझे खुशी है कि मैं कई अन्य लोगों को अपने नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित करने में कामयाब रहा। कुलजीत ने बताया कि उनकी 21 साल की बेटी दो साल पहले प्राइमरी टीचर के तौर पर सेलेक्ट हुई। प्राइमरी स्कूलों के लिए भर्ती किए गए इस साल घोषित किए गए नतीजों में से करीब 30 सेलेक्शन इस गांव से ही हुए हैं। वहीं गांव के टीचर बताते हैं कि डंगर खेड़ा नाम बदलकर अध्यापक खेड़ा कर देना चाहिए। हमारा गांव एक फैक्ट्री की तरह है जहां से निकले युवक राज्य के कई सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं।

बच्चों को देखकर महिलाएं भी पढ़ने आ रही है

सालों पहले जब कुलजीत की पंजाबी टीचर के रूप में भर्ती हुई तो उन्हें लगा कि मेरी तरह अन्य स्टूडेंट भी टीचर बने। इसके बाद यहां कई कोचिंग सेंटर और रीडिंग रूम खुलने लगे। इसके बाद छात्रों को विभिन्न भर्ती परीक्षाओं के बारे में गाइड करना शुरू कर दिया। एक दशक पहले गांव में 2 कोचिंग खुले वहीं पिछले 2 सालों में यहां 5 रीडिंग रूम बनाए गए हैं, जो लाइब्रेरी के रूप में काम आ रहे हैं। गांव में लाइब्रेरी चलाने वाले संजय ने बताया कि मैं गेजुएट हूं और सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहा हूं। हम यहां पढ़ाई करने के लिए आने वाले छात्रों को पीने का पानी, न्यूज पेपर और पावर बैकअप देते हैं। यहां एक साथ 40 लोग बैठ सकते हैं। यहां एक डिस्कशन रूम भी है जहां छात्र बैठते हैं और आराम करते हैं।

अन्य गांव के युवा भी ले रहे हैं प्रेरणा

गांव में पढ़ाई को लेकर जुनून ऐसा है कि रीडिंग रूम में शादीशुदा महिलाएं भी पढ़ने आती हैं। गांव की सरपंच बताती हैं कि हमने विधायक से कहा है कि वो हमें ऐसी लाइब्रेरी बनाने में मदद करें जो एकदम फ्री हो। जहां आकर छात्र पढ़ाई कर सकें। सरपंच बताती है कि यहां के युवाओं की उर्जा और जुनून को देखकर अन्य गांव के युवा भी अब यहां पढ़ाई के लिए आने लगे हैं। वे कहते हैं कि डंगर खेड़ा की हवा ही कुछ और है यहां आकर पढ़ाई करेंगे तो सफलता जरूर मिलेगी। डंगर खेड़ा में एक प्राइमरी और एक सरकारी स्कूल भी है। यहां कुल 1200 बच्चे पढ़ते हैं। इसके अलावा और कोई प्राइवेट स्कूल नहीं है। कुलजीत बताते हैं कि अब हमने छात्रों को UPSC की तैयारी भी करवा रहे हैं। हम अपने गांव से IAS या PCS अधिकारी रूप में देखना चाहते हैं।  


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