Yunus Khan Left BJP Rajasthan Election 2023: कहते हैं राजनीति में जो दिखता है वह होता नहीं है और जो होता है वह दिखता नहीं है। कल तक वसुंधरा राजे के सबसे खासम-खास रहे यूनुस खान ने आज बीजेपी का साथ छोड़ दिया। उन्होंने डीडवाना से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। यूनुस खान के बीजेपी छोड़ते ही ये सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि वसुंधरा राजे सरकार में सबसे खासम-खास और पूर्व परिवहन मंत्री यूनुस खान को निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ रहा है। यह हाल तब हैं जब बीजेपी की दो लिस्ट में वसुंधरा राजे के कुछ करीबी नेताओं को भी तवज्जो दी गई है।
कहीं से भी नहीं मिला टिकट
दरअसल, बीजेपी ने इस बार अपने इकलौते मुस्लिम उम्मीदवार यूनुस खान पर भरोसा नहीं जताया। उन्हें दो बार जीती गई डीडवाना सीट से टिकट नहीं दिया गया। यूनुस खान डीडवाना के दिग्गज नेता हैं। वह बीजेपी के एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार भी थे। हालांकि पिछली बार डीडवाना से उनका टिकट काटकर असुरक्षित सीट टोंक से मैदान में उतारा गया। उनके सामने कांग्रेस के दिग्गज नेता सचिन पायलट चुनाव लड़ रहे थे, बीजेपी का जाना तय था और सामने सचिन पायलट जैसे धाकड़ नेता...ऐसे में यूनुस खान आखिरकार चुनाव हार गए।
यूनुस खान की संघ से नाराजगी
डीडवाना उनके लिए सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती है। यहां कायमखानी मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी है। यूनुस खान के बीजेपी छोड़ने की दूसरी सबसे बड़ी वजह संघ से उनकी नाराजगी रही। सूत्रों के मुताबिक आरएसएस से उनकी नाराजगी कई बार सामने आ चुकी है। यूनुस खान पर संघ की विचारधारा के विरुद्ध गतिविधियां करने का भी आरोप लग चुका है।
पार्टी कार्यक्रमों को लगातार कर रहे थे इग्नोर
तीसरी सबसे बड़ी वजह यूनुस खान पार्टी के कार्यक्रमों को लगातार इग्नोर कर रहे थे। उन्होंने पिछले दोनों परिवर्तन यात्रा में भी हिस्सा नहीं लिया। पिछले 5 साल में भी वह बीजेपी के बड़े कार्यक्रमों में नहीं गए। शायद उन्हें भी पता था कि एक न एक दिन उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। अटकलें यह हैं कि इन मामलों में वसुंधरा राजे भी उन्हें नहीं बचा सकीं। वहीं राजे उनके राजनीतिक भविष्य में आड़े नहीं आना चाहती थीं, इसलिए संभवतया उन्हें बीजेपी छोड़ने की हरी झंडी मिल गई।
हाई पावर वाले नेता बन गए थे यूनुस
यूनुस खान को वसुंधरा राजे सरकार में पीडब्ल्यूडी और परिवहन विभाग सौंपा गया था। कहा जाता है कि यूनुस खान का कद इतना बड़ा था कि कई दूसरे नेताओं को उनसे ईर्ष्या होने लग गई थी। 2018 में पीएम मोदी की रैली से लेकर अमित शाह की सभा तक की जिम्मेदारी उन्होंने आगे होकर निभाई। चार बार उन्हें बीजेपी का टिकट मिला। इसमें उन्हें दो बार जीत और दो बार हार का सामना करना पड़ा। पिछली बार यूनुस खान के टिकट पर बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने वीटो लगा दिया था। हालांकि तब वसुंधरा राजे ने उन्हें टिकट देने का आश्वासन दिया था। तब उन्हें टिकट मिल गया था। उन्हें टोंक से चुनाव लड़ाया गया।
इस तरह आए बीजेपी में
यूनुस खान का जन्म सीकर के गणेदी गांव में 1 अगस्त 1964 को हुआ। उन्होंने डीडवाना से स्नातकोत्तर किया और फिर काम की तलाश में जयपुर चले गए। राजनीति में उनकी एंट्री 80 के दशक के अंत में हुई। राजस्थान में भैंरोसिंह शेखावत की सरकार में शेखावत को डीडवाना और लाडनूं से चुनाव लड़ने के लिए किसी मुस्लिम कैंडीडेट की जरूरत थी। ऐसे में उनकी मुलाकात उस वक्त शेखावत सरकार में केबिनेट मंत्री रहे रमजान खान से हुई। रमजान ने ही यूनुस का नाम सुझाया। युनूस के बारे में कहा जाता है कि वे कायमखानी मुसलमान थे। वह राजपूत से इस्लाम में कन्वर्ट हुए थे।
दिलचस्प होगा चुनाव
2018 विधानसभा चुनाव के अनुसार, डीडवाना में कुल 2,28,431 मतदाता हैं। यहां मुस्लिम, जाट और एससी वर्ग के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। मुस्लिम और एससी वर्ग के वोट निर्णायक माने जाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में यहां कुल 72.7 फीसदी मतदान हुआ था। डीडवाना में यूनुस खान की अच्छी खासी लोकप्रियता है। कांग्रेस ने यहां वर्तमान विधायक चेतन सिंह डूडी पर भरोसा जताया है तो वहीं भाजपा ने भी हारे हुए प्रत्याशी जितेंद्र सिंह जोधा को टिकट दिया है। डीडवाना का ये चुनाव वोटों के ध्रुवीकरण होने की वजह से काफी दिलचस्प होगा।