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‘अरावली के साथ नहीं होने देंगे छेड़छाड़ और खनन रोकेंगे…’, CM भजनलाल शर्मा का बड़ा बयान; कांग्रेस ने भी किया पलटवार

राजस्थान में अरावली पर्वतमाला को लेकर छिड़ा विवाद अब पर्यावरण से आगे बढ़कर सीधे राजनीति के केंद्र में पहुंच चुका है. सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश ने नई बहस छेड़ दी कि आखिर कौन-सी पहाड़ियां अरावली कहलाएंगी और कौन नहीं. इसी गर्मागर्म माहौल में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का बड़ा बयान सामने आया है. उन्होंने दावा किया कि अरावली के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं होने देंगे और अवैध खनन रोकेंगे.

राजस्थान में अरावली पर्वतमाला को लेकर छिड़ा विवाद अब पर्यावरण से आगे बढ़कर सीधे राजनीति के केंद्र में पहुंच चुका है. सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश ने नई बहस छेड़ दी कि आखिर कौन-सी पहाड़ियां अरावली कहलाएंगी और कौन नहीं. इसी गर्मागर्म माहौल में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का बड़ा बयान सामने आया है. उन्होंने दावा किया कि अरावली के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं होने देंगे और अवैध खनन रोकेंगे.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने बढ़ाई चिंताएं

देश की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में शामिल अरावली पर संकट की चर्चा तब तेज हुई जब कोर्ट ने कहा कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियां अरावली की परिभाषा में नहीं आएंगी. इस आदेश के बाद विशेषज्ञों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और विपक्ष ने चेतावनी दी कि इससे पहाड़ का बड़ा हिस्सा संरक्षण की श्रेणी से बाहर हो सकता है और खनन माफियाओं को इसका लाभ मिलेगा. क्योंकि केवल 100 मीटर से ऊंचे पहाड़ ही अरावली का हिस्सा माना जाएगा तो हरियाणा की तरह यहां भी खनन माफिया पूरी अरावली को छलनी कर देंगे.

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प्रदेश को रेगिस्तान बनाने के डेथ वारंट पर हस्ताक्षर कर रहे हैं भाजपा नेता-टीकाराम जुली

राजस्थान के नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जुली में केंद्र और राज्य सरकार पर अरावली का चीरहरण करने का आरोप लगा दिया. उन्होंने कहा कि वह माफिया और खनन माफिया को पनपाने के लिए भाजपा सरकार ने राजस्थान की जनता का मौत का फरमान जारी किया है. लाखों पेड़ काटकर अरावली पर्वतमालाओं को खोखला करने जा रही है.

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अरावली से सरिस्का बचाओं की मुहिम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि सभी को संयुक्त रूप से मिलकर प्रकृति की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए. अरावली वाले क्षेत्र अलवर से आने वाले नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने तो यहां तक आरोप लगा दिया कि एक पेड़ मां के नाम लगाने वाले भाजपा नेता अरावली को खोखला करने जा रहे हैं.

कोर्ट ने खारिज किया तो भाजपा सही क्यों ठहरा रही- अशोक गहलोत

यानी कि कांग्रेस और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसे 'अरावली बचाओ आंदोलन' का रूप दे दिया. सोशल मीडिया पर डीपी बदलने से लेकर सड़क पर विरोध तक, आंदोलन ने तेजी पकड़ ली. कांग्रेस के अशोक गहलोत ने तो यह सफाई भी दी कि साल 2023 में तत्कालीन सरकार की समिति ने 100 मीटर की परिभाषा की सिफारिश की थी जिसे एफिडेविट के माध्यम से 16 फरवरी 2010 को सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था उस वक्त उनकी सरकार ने इसे स्वीकार किया और फॉरेस्ट सर्वे आफ इंडिया से मैपिंग करवाई अवैध खनन को पकड़ने के लिए रिमोट सेंसिंग का उपयोग करने का निर्देश जारी किया. सवाल यह है कि जो परिभाषा कोर्ट में खारिज हो चुकी थी उसी की सिफारिश भाजपा सरकार ने केंद्र सरकार की समिति से क्यों की?

मुख्यमंत्री का बयान-सियासत में नया मोड़

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने विरोधों के बीच साफ कहा कि कांग्रेस डीपी बदलकर लोगों को गुमराह कर रही है. हम भरोसा दिलाते हैं कि अरावली के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी और खनन भी रुकेगा. यह बयान राजनीतिक तापमान और बढ़ाने वाला साबित हुआ. लेकिन इसकी भी तसल्ली दे रहा है कि सरकार तक अरावली बचाने की मुहिम की बात पहुंच चुकी है और खुद मुख्यमंत्री इस पर गंभीरता दिखा रहे हैं.

वहीं, बीजेपी नेता राजेंद्र राठौड़ तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या कर भ्रम फैलाने का कांग्रेस पर आरोप भी लगा रहे हैं. राठौर की मानें तो अरावली हिल्स को 100 मीटर ऊंचाई के मार्ग दंड से परिभाषित करना उनकी सरकार का फैसला नहीं है बल्कि कांग्रेस शासन काल में ही तय हुआ था.

कांग्रेस ने किया पलटवार

मुख्यमंत्री के बयान पर नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जुली ने प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि 'अगर सच में खनन रोकते हैं और अरावली बचाते हैं तो स्वागत है', लेकिन इसे जमीन पर लागू भी करके दिखाएं. मुख्यमंत्री ने पहली बार बिना पर्ची पढ़े बड़ा बयान दिया है. क्या सच में अरावली संकट में है?

गंभीर सकंट आएगा- विशेषज्ञ

पर्यावरण से जुड़े जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में दी गई रिपोर्ट के अनुसार सामने आई अगर नई परिभाषा लागू होती है तो अरावली का 80-90% हिस्सा संरक्षण क्षेत्र से बाहर हो सकता है. खनन, शहरी विस्तार और जलसंकट की समस्या और गंभीर हो सकती है. यही कारण है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसे जन आंदोलन का रूप देने की तैयारी में हैं और इसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा बता रहे हैं. अरावली क्षेत्र का 25 फीसदी हिस्सा अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान और आरक्षित वनों में आता है. ऐसे में यहां भी खनन का रास्ता खुल जाएगा.

मुख्यमंत्री के बयान से राजनीति में जरूर गर्मी आई है, लेकिन बड़ा सवाल अभी भी वही है- क्या सरकार अरावली बचाने के लिए वास्तविक कदम उठाएगी, या यह भी एक बयानबाजी की जंग है? अरावली पर फैसला सिर्फ जमीन, खनन या ऊंचाई का नहीं-राजस्थान के पर्यावरण और भविष्य का सवाल भी है.


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