राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच ने 1993 में ट्रेन में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में दोषियों की समय पूर्व रिहाई पर साफ और कठोर रुख अपनाते हुए याचिकाएं खारिज कर दीं. अदालत ने कहा कि “आतंकवाद जैसे गंभीर अपराधों में किसी दोषी की रिहाई न केवल समाज के लिए बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक शांति के लिए भी भारी खतरा बन सकती है.” यह मामला 1993 के उस हड़कंप मचा देने वाले ट्रेन ब्लास्ट से जुड़ा है, जिसने देशभर में दहशत फैला दी थी. इस वारदात के बाद देशभर की सुरक्षा एजेंसियों ने जांच में वर्षों लगाए और कई दोषियों को टाडा के तहत सजा हुई. इस मामले में यह चारो आरोपी पिछले 20 सालों से जेल की सजा काट रहे हैं.
किसने मांगी थी रिहाई?
दोषी असफाक खान, फजलुर रहमान, अबरे रहमत अंसारी और मोहम्मद आजाद अकबर ने अपनी बढ़ी उम्र और खराब सेहत का हवाला देकर हाईकोर्ट में समय पूर्व रिहाई के लिए याचिका दाखिल की थी. लेकिन जस्टिस सुदेश बंसल और जस्टिस भुवन गोयल की खंडपीठ ने कड़े शब्दों में इन याचिकाओं को खारिज करते हुए साफ किया कि आतंकवाद जैसे मामलों में रिहाई से जनसुरक्षा को खतरा है ऐसी रिहाई से राष्ट्रीय सुरक्षा को जोखिम और इससे सार्वजनिक शांति और व्यवस्था प्रभावित हो सकती है.इसलिए वे इस याचिका को खारिज करते हैं.
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सरकार की तरफ से मजबूत पैरवी
केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भरत व्यास ने तर्क दिए, जबकि राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेश चौधरी ने अदालत में पैरवी की. हालांकि याचिका करता हूं की ओर से यह दलील दी गई कि गृह मंत्रालय के निर्देशानुसार 20 साल से ज्यादा की सजा काटने के बाद जल्दी रिहाई पर विचार होना चाहिए.
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क्यों अहम है यह फैसला?
यह फैसला न सिर्फ एक पुराने और चर्चित मामले से जुड़ा है, बल्कि यह स्पष्ट संकेत भी देता है कि आतंकवाद पर अदालत का रुख बिल्कुल सख्त है. अदालतें राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अपराधों पर किसी तरह की रियायत देने के पक्ष में नहीं हैं. यह निर्णय उन मामलों पर भी मिसाल बन सकता है, जहाँ आतंकवाद के दोषियों द्वारा समयपूर्व रिहाई या कम सजा की मांग की जाती है.
क्या था यह पूरा मामला
दरअसल साल 5 दिसम्बर 1993 देश के मुंबई, सूरत, लखनाऊ,कानपुर और हैदराबाद शहर में ट्रेनों में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे. जिनमे 2 लोगों की मौत हुई थी और 22 से भी ज्यादा लोग घायल हुए थे. जिनमे इन आरोपियों को उम्र कैद की सजा हुई थी.