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जयपुर बीजेपी में ‘सिफारिशी कार्यकारिणी’ का तमाशा, विवाद हुआ तो डिलीट की लिस्ट

Rajasthan Politics: जयपुर शहर अध्यक्ष अमित गोयल ने आज सुबह सोशल मीडिया पर अपनी ‘जंबो कार्यकारिणी’ की सूची जारी की। 34 नाम और हर नाम के सामने ‘सिफारिशकर्ता’ का नाम भी।

जयपुर शहर बीजेपी जिला अध्यक्ष अमित गोयल (Pic Credit-Social Media X)

Jaipur BJP executive list controversy: राजस्थान बीजेपी में सब कुछ ‘ठीक-ठाक’ है… बस पार्टी की ‘ठीक-ठाक’ की परिभाषा बदल चुकी है। एक तरफ प्रदेश अध्यक्ष महीनों से अपनी टीम बनाने का नाम ही नहीं ले रहे। दूसरी तरफ जयपुर शहर बीजेपी ने ‘सिफारिशी राजनीति’ का ऐसा नमूना पेश कर दिया, जिसने पार्टी की साख को सड़क पर उतार दिया है।

दरअसल, जयपुर शहर अध्यक्ष अमित गोयल ने आज सुबह सोशल मीडिया पर अपनी ‘जंबो कार्यकारिणी’ की सूची जारी की। 34 नाम और हर नाम के सामने ‘सिफारिशकर्ता’ का नाम भी। कौन किस मंत्री, विधायक, सांसद या संघ नेता की सिफारिश पर चुना गया सब सार्वजनिक! जैसे कोई भर्ती परीक्षा में ‘उत्तर कुंजी’ लीक कर दी गई हो।

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अब ‘काम’ नहीं, ‘कनेक्शन’ बिकता है

सूची देख कर पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के चेहरे पीले पड़ गए। क्योंकि ये साफ हो गया कि बीजेपी में अब ‘काम’ नहीं, ‘कनेक्शन’ बिकता है। मंत्री जी, सांसद जी, विधायक जी या फिर संघ के बड़े चेहरे से सिफारिश करवा लो, पद अपने आप मिल जाएगा। जिन्होंने बरसों पसीना बहाया, मोहल्लों में बैठके कीं, बूथों पर डटे रहे उनका नाम तक नहीं। और जिनका इकलौता ‘योगदान’ नेता जी का करीबी होकर उनके साथ सेल्फी खिंचवाना है वो आज पदाधिकारी बन गए।

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अध्यक्ष की कार्यशैली पर उठे सवाल

इनमें मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, डिप्टी सीएम दीया कुमारी और कई कैबिनेट मंत्रियों , सांसद और विधायकों के नाम भी पदाधिकारियों की सिफारिश करने वालों में दर्शाए गए हैं। पार्टी परंपरा के अनुसार, जब भी किसी भी स्तर की सूची जारी की जाती है तो उसमें केवल पदाधिकारी का नाम और पद होता है। इससे जयपुर शहर अध्यक्ष अमित गोयल की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो गए हैं कि पार्टी की गोपनीय जानकारी को सार्वजनिक क्यों किया गया?

पार्टी परंपरा कहती है कि पदाधिकारी सूची में सिर्फ नाम और पद होता है। लेकिन यहां तो सिफारिश की ‘सील’ भी लगा दी गई। ये न सिर्फ संगठन के भीतर की ‘गोपनीयता’ की धज्जियां उड़ाना है, बल्कि आम कार्यकर्ता को यह एहसास दिलाना है कि उसकी कोई औकात नहीं।

युवा मोर्चा की लिस्ट पर भी हो चुका है बवाल

मजेदार बात ये कि यही खेल पहली बार नहीं हुआ। युवा मोर्चा की सूची पर भी पहले बवाल मच चुका है। मतलब ‘भूल’ बार-बार हो रही है और हर बार कंप्यूटर ऑपरेटर के सिर मढ़ दी जाती है। जैसे ही ये सूची वायरल हुई, जिन बड़े नेताओं का नाम ‘सिफारिशकर्ता’ के तौर पर लिखा गया था उनके पास गुस्साए कार्यकर्ताओं के फोन और संदेश आने लगे नेता जी, हमारे लिए सिफारिश क्यों नहीं की?

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विरोध बढ़ा तो डिलीट की सूची

जब विरोध बढ़ने लगा तो कुछ देर में अमित गोयल ने सूची डिलीट कर दी और सफाई दी ये मानवीय भूल थी, ऑपरेटर ने गलती से अपलोड कर दी। अरे भाई, अगर ये गलती है तो फिर ये गलती बार-बार क्यों हो रही है? और अगर ये ‘भूल’ है तो फिर बीजेपी में असली खेल भूल के नाम पर सिफारिश का ही क्यों दिखता है?

बीजेपी बनी सिफारिशी क्लब

असल सवाल यही है क्या राजस्थान बीजेपी अब पूरी तरह ‘सिफारिशी क्लब’ बन चुकी है? जहां जमीन पर पसीना बहाने वाला नहीं, बल्कि नेता जी की चिट्ठी लाने वाला ही ‘पदाधिकारी’ कहलाएगा? उससे भी बड़ा सवाल यह कि अगर जयपुर शहर की कार्यकारिणी का हाल ये है तो आने वाली प्रदेश कार्यकारिणी का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं। बहरहाल, पार्टी के वफादार नेता तो यह भी कहने लगे हैं कि पार्टी के नारों में ‘सेवा ही संगठन’ लिखा रहेगा लेकिन असलियत में नारा बदलकर ये हो जाएगा सिफारिश ही संगठन।

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