Jhalawar School Roof Collapse: राजस्थान के झालावाड़ में स्कूल की छत ढहने के बाद जो तबाही का मंजर दिखा, वह 7 परिवारों को कभी न भूल सकने वाला दर्द दे गया। पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनने, अपनी और परिवार की जिंदगी संवारने का सपना आंखों में संजोए बच्चे स्कूल पहुंचे थे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि मौत इंतजार कर रही है। एक झटके में 7 घरों के चिराग बुझ गए। हादसे के बाद झालावाड़ में इतना गमगीन और मार्मिक माहौल देखने को मिला। हादसे में जान गंवाने वाले बच्चों की अंतिम यात्रा, उनकी जलती चिता, रोते-बिलखते मां-बाप... भगवान ऐसा दर्दभरा मंजर किसी को न दिखाए।
प्रत्यक्षदर्शी ने सुनाई हादसे की आंखों-देखी
हादसे को एक बच्ची ने अपनी आंखों से देखा और मीडिया से बात करते हुए उसका दर्द छलक गया। उसने बताया कि वह सफाई कर रही थी। स्कूल में बच्चों की चहल-पहल थी। कुछ बच्चे क्लास के अंदर बैठे थे। अचानक पत्थर गिरने की आवाजें आने लगीं। एक-दो पत्थर गिरे तो बच्चे दौड़कर टीचर को बताने गए। टीचर आए तो देखते ही देखते भरभराकर छत गिर गई। बच्चे चीखने-चिल्लाने लगे, इधर-उधर भागने लगे। वह भी भागकर स्कूल से बाहर आ गई। चिल्लाने की आवाजें सुनकर गांव वाले भी दौड़े आए।
क्या मुआवजा घर के चिराग लौटा पाएगा?
राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलादी गांव में सोमवार को जो कुछ हुआ, वह किसी एक घर का दुख नहीं, बल्कि पूरे गांव की आत्मा पर लगी चोट है। सरकारी स्कूल की जर्जर छत ताश के पत्तों की तरह ढह गई और उसके नीचे दब गए 7 मासूम सपने, 7 जिंदगियां, 7 घरों की धड़कनें, जो मलबे के नीचे ही दम तोड़ गईं। राज्य सरकार ने बेशक मुआवजे और नौकरी का ऐलान कर दिया हो, लेकिन हादसा एक सवाल बनकर हर जिम्मेदार से जवाब मांग रहा है। क्या मुआवजा घरों के चिराग लौटा पाएगा? आंगन सूने हो गए, किलकारियां बंद हो गईं।
7 बच्चों का आज हुआ अंतिम संस्कार
झालावाड़ के मनोहर थाना इलाके के पीपलोदी गांव में आज 7 मासूम बच्चों का अंतिम संस्कार कर दिया गया, जिनकी शुक्रवार को सरकारी स्कूल की छत गिरने से मलबे के नीचे दबकर मौत हो गई थी। जिन मां-बाप ने उन्हें कंधों पर बिठाकर स्कूल भेजा था, वही कांपते हाथों से अपने कंधों पर उनकी अर्थी उठाए दिखे। गुंनी देवी कहती हैं कि 2 बच्चे थे, एक 5वीं में मीना और दूसरा पहली में कान्हा, दोनों अब दुनिया में नहीं हैं। 24 घंटे पहले हंसते-खेलते घर से निकले थे, किताबें हाथ में थीं, लेकिन अब उनके नाम पर कब्रें बन चुकी हैं। खुद कभी स्कूल नहीं गई, लेकिन अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर कुछ बनाना चाहती थी, लेकिन हादसे ने सब खत्म कर दिया।
राहत-मदद पहुंचने में देरी का आरोप
गांववालों के मुताबिक, हादसे के बाद मदद पहुंचने में देरी हुई। बच्चे पत्थरों के नीचे दबे चीखते रहे, बिलखते रहे और जब प्रशासन की राहत पहुंची, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। गांव के लोगों ने अपने हाथों से मलबा हटाकर बच्चों को बाहर निकाला, लेकिन किस्मत की दीवारें बहुत पहले गिर चुकी थीं। प्रशासन मौके पर पहुंचा, कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ और एसपी अमित बुडानिया ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और सांत्वना दी। सरकार की ओर से 10 लाख का मुआवजा, एक नौकरी और स्कूल का पुनर्निर्माण कराने की घोषणा हुई है। कहा गया कि स्कूल की कक्षाओं के नाम हादसे में जान गंवाने वाले मासूम बच्चों के नाम पर रखे जाएंगे।
ग्रामीणों ने सिस्टम पर उठाए सवाल
सरकार की तरफ से हर संभव सहायता दी जा रही है। हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो चुकी है। स्कूल की बिल्डिंग को भी दोबारा बनाया जाएगा, लेकिन सवाल यह है कि क्या इन घोषणाओं से वो मासूम बच्चे वापस आ जाएंगे? क्या हर बार हादसे के बाद ही सिस्टम जागेगा? क्या ग्रामीण, गरीब, आदिवासी बच्चों की जान इतनी सस्ती है कि जर्जर स्कूलों में पढ़ना ही उनका नसीब बनेगा। गांव में कोई चूल्हा नहीं जला। हर आंगन में एक रूदाली बैठी है। यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि सिस्टम की लापरवाही पर लिखा गया मासूमों का खून से सना हुआ एक काला दस्तावेज है।