राजस्थान में अरावली पर्वतमालाओं को लेकर चिंता लगातार गहराती जा रही है. एक तरफ पर्यावरण और विरासत के संरक्षण की मांग है, तो दूसरी ओर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और आंदोलन तेज होते रहे हैं. इसी बीच कांग्रेस के एक बड़े आरोप ने सत्तारूढ़ बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. कांग्रेस का कहना है कि सनातन और विरासत की बात करने वाली बीजेपी, अरावली की नई परिभाषा के जरिए ऐतिहासिक किलों, महलों और प्राचीन मंदिरों को खतरे में डालने की “फूलप्रूफ योजना” बना चुकी है.
अपनी प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक पहचान के लिए मशहूर राजस्थान में अरावली पर्वतमाला सिर्फ पहाड़ों की श्रृंखला नहीं है, बल्कि यहां की संस्कृति, इतिहास और आस्था की रीढ़ भी है. अरावली की पहाड़ियों पर ही राज्य के कई ऐतिहासिक किले, महल और प्राचीन मंदिर बसे हुए हैं. लेकिन सरकार द्वारा 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली मानने के मानक ने अब इन धरोहरों पर संकट के बादल खड़े कर दिए हैं. आरोप है कि इससे खनन माफियाओं की नजर उन पहाड़ियों और उनकी तलहटी पर बने किलों-मंदिरों पर टिक गई है. इसी मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी को सीधे कटघरे में खड़ा कर दिया है.
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गोविंद डोटासरा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, राजस्थान
कांग्रेस के आरोपों के पीछे इतिहास का तर्क भी दिया जा रहा है. अरावली की ऊंची-नीची पहाड़ियां कभी राजपूत शासकों के लिए प्राकृतिक सुरक्षा कवच थीं. दुश्मनों के लिए किलों तक पहुंचना मुश्किल होता था, इसलिए इन्हीं पहाड़ियों पर मजबूत और भव्य किलों का निर्माण हुआ. आज यही किले राजस्थान की पहचान और पर्यटन की जान हैं.
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- उदयपुर के पास यूनेस्को विश्व धरोहर कुम्भलगढ़ किला, जिसकी दीवार “भारत की महान दीवार” कहलाती है
- जयपुर के पास अरावली पर स्थित आमेर किला
- जयगढ़ और नाहरगढ़ किले
- चित्तौड़गढ़ किला, एक और यूनेस्को विश्व धरोहर
- जोधपुर का मेहरानगढ़ किला
- माउंट आबू का अचलगढ़ किला
इन्हीं अरावली पहाड़ियों पर कई प्राचीन मंदिर भी स्थित हैं-
- दिलवाड़ा जैन मंदिर
- गुरु शिखर पर दत्तात्रेय मंदिर
- मालेश्वर धाम और गालव पीठ
- रणकपुर जैन मंदिर
- हरनी महादेव शिव मंदिर
कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी एक तरफ सनातन और विरासत की बात करती है, दूसरी तरफ ऐसी नीतियां ला रही है, जो इन्हीं मंदिरों और किलों को खतरे में डाल दें. साथ ही इस मुद्दे को राजपूत समाज और धार्मिक आस्था से जोड़कर बीजेपी पर दबाव बनाने की कोशिश भी तेज हो गई है. वहीं, बीजेपी इस पूरे मामले में बचाव की मुद्रा में नजर आ रही है. पार्टी का कहना है कि अरावली को लेकर जो परिभाषा लागू है, वह नई नहीं है.
रामलाल शर्मा, बीजेपी प्रवक्ता, राजस्थान
दरअसल, वर्ष 2010 से पहले ही 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची पहाड़ियों को अरावली मानने की परिभाषा तय की जा चुकी थी. इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, जो राजस्थान के साथ-साथ दिल्ली, हरियाणा और गुजरात पर भी लागू होता है. पर खास बात यह है कि इस परिभाषा के लिए राजस्थान सरकार की सिफारिश को ही प्रमुख आधार बनाया गया था. सरकार ने अरावली की पहचान के लिए रिचर्ड मर्फी के 1968 के लैंडफॉर्म क्लासिफिकेशन को बेंचमार्क माना. पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसी वजह से आज अरावली अवैध खनन, पानी की कमी, रेगिस्तान के फैलाव और प्रदूषण के साथ-साथ ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों के लिए भी खतरा बन चुकी है. विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि ऐतिहासिक इमारतों के आसपास पहाड़ियों के कटाव से उनकी नींव कमजोर हो रही है. अगर यही हाल रहा, तो आने वाले समय में राजस्थान की शान कही जाने वाली ये धरोहरें अस्थिर हो सकती हैं. सवाल यही है क्या अरावली की नई परिभाषा विकास का रास्ता है या विनाश की पटकथा? फैसला सरकार को करना है, लेकिन दांव पर है राजस्थान की प्रकृति, इतिहास और पहचान.