पढ़िए KJ श्रीवात्सन की रिपोर्ट अरावली पर्वतमाला… एक बार फिर पर्यावरण से ज्यादा राजनीति का अखाड़ा बन गई है. सुप्रीम कोर्ट ने 100 मीटर की परिभाषा वाले अपने ही आदेश पर रोक लगाकर और 21 जनवरी 2026 तक खनन पर ब्रेक क्या लगाया, अब राजस्थान की सियासत पूरी तरह गर्म आ गई है. कांग्रेस को सरकार पर हमला बोलने का मौका मिला है… तो वहीं भजनलाल सरकार अब डैमेज कंट्रोल मोड में नज़र आ रही है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अरावली अब सिर्फ पहाड़ नहीं,विपक्ष के लिए राजनीतिक हथियार बन चुकी है. कांग्रेस, जो पिछले कई दिनों से अरावली बचाओ आंदोलन के जरिए सरकार को घेर रही थी, अब कोर्ट के फैसले को अपनी नैतिक जीत बता रही है. कांग्रेस का दावा है कि सरकार के दबाव में 100 मीटर की परिभाषा बदलने की कोशिश हुई, लेकिन कोर्ट ने उस पर ब्रेक लगा दिया. हालांकि रणनीतिक तौर पर कांग्रेस ने अपने आंदोलन को फिलहाल स्थगित कर दिया है, लेकिन सियासी तेवर और तीखे कर दिए हैं.
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अशोक गहलोत, पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा “सुप्रीम कोर्ट ने वही किया जो सरकार को पहले करना चाहिए था. अरावली के साथ छेड़छाड़ का खामियाजा आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा. मुख्यमंत्री जी पूछ रहे थे कि मेरी डीपी बदलने का क्या असर होगा तो मैं कहना चाहता हूं देख लीजिए असर सामने है.
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बाईट-टीकाराम जुली, नेता प्रतिपक्ष दूसरी ओर भाजपा सरकार पर आरोपों की धार तेज होते देख मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने तुरंत मोर्चा संभाला है. सरकार ने अरावली क्षेत्र में अवैध खनन के खिलाफ संयुक्त अभियान के आदेश दिए हैं और यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि सरकार पर्यावरण विरोधी नहीं है. भाजपा नेताओं का पलटवार है कि कांग्रेस ने अरावली को सिर्फ राजनीतिक स्टंट बनाया और भ्रम फैलाकर माहौल खराब किया.
जोराराम कुमावत, कैबिनेट मंत्री अरावली की रक्षा को लेकर सरकार की नीयत साफ है. कांग्रेस झूठ फैलाकर राजनीति कर रही है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भले ही खनन पर रोक लगा दी हो, लेकिन राजस्थान की राजनीति में हलचल और तेज हो गई है. कांग्रेस इसे सरकार की नाकामी बता रही है, तो भाजपा इसे विपक्ष की सियासी नौटंकी करार दे रही है. अब असली सवाल यह है कि क्या अरावली सच में बचेगी… या फिर कानूनिका पेज के बीच यह सिर्फ मुद्दा बनकर रह जाएगी?