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ED कार्यालय में लगी आग से मंत्री भुजबल का पासपोर्ट क्षतिग्रस्त, अदालत ने विदेश यात्रा की अवधि 12 जून तक बढ़ाई

Chhagan Bhujbal: छगन भुजबल और उनके बेटे पंकज मनी लॉन्ड्रिंग के एक पुराने मामले में जांच के दायरे में रहे हैं। हालांकि उन्हें अंतरिम जमानत मिली हुई है, लेकिन विदेश यात्रा के लिए अदालत की पूर्व अनुमति अनिवार्य होती है।

Chhagan Bhujbal
Chhagan Bhujbal मुंबई के प्रसिद्ध ‘कैसर-ए-हिंद’ इमारत में अप्रैल के अंतिम सप्ताह में लगी भीषण आग का असर अब राजनीतिक हलकों तक पहुंच चुका है।महाराष्ट्र सरकार में वरिष्ठ मंत्री छगन भुजबल और उनके पुत्र पंकज भुजबल की विदेश यात्रा पर /इसका सीधा असर पड़ा, क्योंकि इस आग में प्रवर्तन निदेशालय (ED) के मुंबई कार्यालय में रखे उनके पासपोर्ट क्षतिग्रस्त हो गए।इस वजह से तय समय पर यात्रा नहीं हो सकी और अब विशेष अदालत ने दोनों को मिली यात्रा की अनुमति की अवधि 12 जून तक बढ़ा दी है।

पूरा मामला क्या है?

29 अप्रैल 2024: विशेष अदालत ने छगन भुजबल और उनके बेटे को विदेश यात्रा की अनुमति दी थी। अदालत ने ED द्वारा जब्त पासपोर्ट वापस करने का आदेश भी उसी दिन दिया था। 27 अप्रैल 2024: इससे ठीक दो दिन पहले, दक्षिण मुंबई स्थित ‘कैसर-ए-हिंद’ इमारत, जिसमें ED का दफ्तर है, वहां भीषण आग लग गई थी। आग पर काबू पाने में 12 घंटे से अधिक समय लगा। इसी दौरान ED कार्यालय में सैकड़ों महत्वपूर्ण दस्तावेजों को नुकसान हुआ। 13 मई को जब भुजबल को उनका पासपोर्ट मिला, तो वह भीगा हुआ और आंशिक रूप से फटा हुआ था — जिससे उसका उपयोग अंतरराष्ट्रीय यात्रा में असंभव हो गया।

नया पासपोर्ट और वीज़ा मिलने में आई देरी

भुजबल ने उसी समय नए पासपोर्ट के लिए आवेदन कर दिया, लेकिन प्रक्रिया में समय लग गया। 22 मई को वीज़ा जारी हुआ, जो 28 मई से वैध था। इसके चलते वे अपनी पहले से तय यात्रा (24 मई से 8 जून) के बीच विदेश नहीं जा सके। भुजबल ने अदालत को बताया कि उन्होंने 28 मई से विदेश यात्रा शुरू की है। चूंकि उनका पूरा कार्यक्रम आग की घटना के चलते प्रभावित हुआ, इसलिए उन्होंने यात्रा की अवधि बढ़ाकर 12 जून तक करने की मांग की, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।

कानूनी अनुमति क्यों जरूरी थी?

गौरतलब है कि छगन भुजबल और उनके बेटे पंकज मनी लॉन्ड्रिंग के एक पुराने मामले में जांच के दायरे में रहे हैं। हालांकि उन्हें अंतरिम जमानत मिली हुई है, लेकिन विदेश यात्रा के लिए अदालत की पूर्व अनुमति अनिवार्य होती है। ED ने इस मुद्दे पर कोई आपत्ति नहीं जताई, जिससे अदालत ने भी मानवीय आधार पर प्रतिकूल परिस्थिति को समझते हुए राहत दी।


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