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बेटियों के लिए हिमाचल सरकार का बड़ा फैसला, शादी की उम्र 21 करने की तैयारी

Preparation To Increase The Marriage Age Of Himachal Daughters मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू शूलिनी विवि के दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि विवि में पीएचडी की डिग्री लेने मे लड़कियों की संख्या लड़को से ज्यादा है।

Preparation To Increase The Marriage Age Of Himachal Daughters: हिमाचल सरकार ने प्रदेश में बेटियों के भविष्य को मजबूत बनाने के लिए लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 वर्ष करने का ऐलान किया। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह ने कहा कि इसके लिए कमेटी बनाएगी। जिससे बेटियों को अपना भविष्य सवारने के लिए अधिक समय मिल सकेगा।  मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू शूलिनी विवि के दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करने के दौरान कहा कि विवि में पीएचडी की डिग्री लेने मे लड़कियों की संख्या लड़को से ज्यादा है। वही समाज तरक्की करता है, जिसमें पर लड़के, लड़कियों सभी  को बराबर का अधिकार मिलता है। पढ़े लिखे युवाओं को राजनीति में  आना चाहिए। विधानसभा में 92 फीसदी विधायक ग्रेजुएट हैं। असफलता से सफलता का रास्ता निकलता है। युवाओं को सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

जिप कर्मियों की मांगों पर चल रहा विचार  

बैठक के दौरान जिला परिषद कैडर के कर्मचारियों की हड़ताल के बारे में पूछने पर उन्होने कहा  कि पंचायती राज विभाग और ग्रामीण विकास के मंत्री  इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं।  कर्मचारियों की मांग का मामला उनके ध्यान में है और उसे पूरा करने का पूरा प्रयास कर रहे  है।

कानून के हिसाब से उम्र 

इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872, पारसी मैरिज एंड डिवोर्स एक्ट 1936, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954, और हिन्दू मैरिज एक्ट 1955, सभी के अनुसार शादी करने के लिए लड़के की उम्र 21 वर्ष और लड़की की 18 वर्ष होनी चाहिए। इसमें धर्म के हिसाब से कोई बदलाव या छूट नहीं दी गई है। फिलहाल बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 लागू है।  जिसके तहत 21 और 18 से पहले की गई शादी को बाल विवाह माना जाएगा। बाल विवाह करने और करवाने वाले को 2 साल की जेल और एक लाख तक का जुर्माना हो सकता है।

आजादी से पहले भी किए गये थे बदलाव 

भारत में लड़कियों की शादी की उम्र को कम करने के लिए पहले भी तैयारी की गई। बाल विवाह जैसी प्रथा को रोकने के लिए आजादी के पहले भी कई बार लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर बदलाव किया गया था। आजादी के पहले लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर अलग-अलग न्यूनतम आयु तय की गई थी लेकिन कोई ठोस कानून न होने से 1927 में शिक्षाविद्, राजनेता, न्यायाधीश और समाज सुधारक राय साहेब हरबिलास सारदा ने बाल विवाह रोकथाम के लिए एक विधेयक पेश किया। पारित विधेयक में शादी के लिए लड़कों की उम्र 18 और लड़कियों के लिए 14 साल करने का प्रस्ताव था। फिर 1929 में  कानून बना जिसे सारदा एक्ट के नाम से जाना जाता है। 1978 में इस कानून में संसोधन हुआ और लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 और लड़कियों के लिए 18 साल कर दी गई। वहीं 2006 में बाल विवाह रोकथाम के लिए कानून लाया गया था।


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