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किस वजह से ‘हाथ’ से फिसल गई ‘झाड़ू’? हरियाणा में AAP-कांग्रेस गठबंधन न होने के 5 कारण

Haryana Assembly Elections 2024: हरियाणा में 5 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और बीजेपी ने अपनी रणनीति बना ली है। माना जा रहा था कि कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन लगभग तय है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। गठबंधन न होने के कारणों के बारे में जानते हैं।

हरियाणा में अब आम आदमी पार्टी और कांग्रेस आमने सामने हैं।
Haryana Assembly Elections: लोकसभा चुनाव की तरह लग रहा था कि 5 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) मिलकर चुनाव लड़ेंगे। बीजेपी को हराने के लिए दोनों दल हाथ मिलाएंगे। लेकिन अब इन अटकलों पर विराम लग चुका है। आप ने अपने 20 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है। दोनों दलों के नेताओं के बीच कई दौर की बैठकें हुईं। लेकिन डील होते-होते ऐन मौके पर बात बिगड़ गई। इसके पीछे कारण है आप की डिमांड। आप ने कांग्रेस से 10 सीटें मांगी थी। लेकिन कांग्रेस 5 सीटें दे रही थी। जिसके बाद डील फेल हो गई। गठबंधन न होने के 5 कारण जान लेते हैं।

आप की बढ़ती महत्वाकांक्षा

दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाने के बाद आप हरियाणा में विस्तार चाहती है। गुजरात और गोवा में भी उसे फायदा मिला है। जिसके बाद पार्टी हरियाणा में प्रयोग करना चाहती है। क्योंकि पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल खुद हरियाणा से हैं। आप को उम्मीद है कि वह हरियाणा में खेल कर सकती है। इस वजह से 90 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला लिया गया है।

नो रिस्क टेकिंग एप्रोच

कांग्रेस 'नो रिस्क टेकिंग एप्रोच' नीति पर काम कर रही थी। कांग्रेस को लगता है कि अगर कोई बीजेपी को टक्कर दे सकता है तो वही है। कांग्रेस मुकाबले को भाजपा से ही देख रही है। वह INLD या JJP की तरह गठबंधन कर खुद को कमजोर नहीं साबित करना चाहती थी। जिसके कारण सिर्फ 5 ही सीटें ऑफर की गई। कांग्रेस को लगता है कि हरियाणा में आप का वोट बैंक नहीं है। जिसके कारण वह कम सीटों पर लड़ने का रिस्क नहीं उठाना चाहती थी। यह भी पढ़ें:हरियाणा की राजनीति के ट्रेजेडी किंग, अधूरा रहा CM बनने का ख्वाब; कभी ली थी हुड्डा की जीत की गारंटी

आप का इन्कार

कुछ सीटों की वजह से भी गठबंधन नहीं हो सका। माना जा रहा है कि कम सीटों पर बात तो बन गई थी। लेकिन जो सीटें कांग्रेस ऑफर कर रही थी, वो बात आप को हजम नहीं हुई। आप ने कांग्रेस को बताया था कि कलायत से वह प्रदेश उपाध्यक्ष अनुराग ढांडा को उतारेगी। इसी तरह कुरुक्षेत्र में भी एक सीट की डिमांड की गई थी। लेकिन कांग्रेस ने दोनों बातें मानने से इन्कार कर दिया।

बिहार से सबक

कांग्रेस बिहार के मामले से भी सबक ले रही है। बिहार में ऐसा हो चुका है, जब छोटे दलों को मनमाफिक सीट दी गई हो। पिछले चुनाव में राजद से अधिक सीटों की डिमांड कांग्रेस ने की थी। कांग्रेस 70 पर लड़ी, सिर्फ 17 पर जीत हासिल हुई। राजद का प्रदर्शन शानदार रहा, लेकिन कांग्रेस की वजह से वहां सरकार नहीं बन पाई। क्योंकि कांग्रेस ने सीटें अधिक ले ली। वोट मिले नहीं। यहां कांग्रेस आप के साथ ऐसी ही स्थिति देख रही है। खुद को सीनियर मानते हुए आप को मनमाफिक सीटें नहीं दे पाई। जिससे बात नहीं बनी।

दोनों ही मजबूर नहीं

डील न होने का कारण दोनों पार्टियों का मजबूर होना भी नहीं है। असर में वोटों के बिखराव को रोकने के लिए गठबंधन होना था। आप का मकसद भी बीजेपी को ही हराना है। वहीं, दोनों पार्टियों को ये भी लगा कि अगर गठबंधन नहीं हुआ तो कुछ खास नुकसान नहीं होगा। दोनों ने इसे अपनी साख पर नहीं लिया। दूसरा कारण कांग्रेस के बागी भी थे। क्योंकि अगर उनको आप टिकट दे देती तो फिर समीकरण बिगड़ जाते। यह भी पढ़ें:बगावत ने बढ़ाई BJP-कांग्रेस की टेंशन, 34 सीटों पर 47 नेताओं ने खड़ा किया बखेड़ा…किसे मिलेगा फायदा?


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