Caste Based Census: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बिहार में जातिगत जनगणना कराने के लिए राज्य सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई करने पर सहमति जताई। एक वकील ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष उस याचिका का उल्लेख किया जिसमें राज्य में जाति जनगणना कराने के लिए बिहार सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका की तत्काल सुनवाई की मांग की गई थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि वह शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई करेगी।
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समाजिक कार्यकर्ता ने दाखिल की थी याचिका
बता दें कि हाल ही में सामाजिक कार्यकर्ता अखिलेश कुमार ने अधिवक्ता बरुण कुमार सिन्हा और अभिषेक के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा, "06.06.2022 को बिहार सरकार के उप सचिव की ओर से जातिगत जनगणना के संबंध में एक अधिसूचना जारी की गई थी।" याचिकाकर्ता ने कहा कि बिहार राज्य का निर्णय अवैध, मनमाना, तर्कहीन, असंवैधानिक और कानून के अधिकार के बिना है।
याचिकाकर्ता के प्रस्तुतीकरण के अनुसार, बिहार में कुल 200 से अधिक जातियां हैं और उन सभी जातियों को सामान्य श्रेणी, ओबीसी, ईबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
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दलील के अनुसार, बिहार राज्य में 113 जातियां हैं जो ओबीसी और ईबीसी के रूप में जानी जाती हैं, आठ जातियां उच्च जाति की श्रेणी में शामिल हैं, लगभग 22 उपजातियां हैं जो अनुसूचित जाति श्रेणी में शामिल हैं।
अधिसूचना को रद्द करने की अपील की
याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार ने शीर्ष अदालत से 6 जनवरी की अधिसूचना को रद्द करने के लिए निर्देश जारी करने का आग्रह करते हुए कहा, "बिहार राज्य के अवैध निर्णय के लिए बिना किसी भेदभाव के अलग-अलग उपचार के लिए दी गई अधिसूचना अवैध, मनमाना तर्कहीन और असंवैधानिक है।" बता दें कि 7 जनवरी को में बिहार में जातिगत जनगणना शुरू की गई है जो दो चरणों में कराई जाएगी।
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