तिलसकरात के लिए मुजफ्फरपुर बाज्जीकांचल के लोग एक सप्ताह पहले से तैयारी शुरू कर देते हैं। इस दिन तिल, गुड़, लाई और खिचड़ी का विशेष महत्व होता है। हर घर में लाई और तिलकुट बनाने की तैयारी शुरू हो जाती है ।
किसान खेतों में उपजे अनाज का करते हैं उपयोग
मुजफ्फरपुर के गांवों में आज भी किसान परिवार के लोग अपने खेतों में उपजे धान का चियुड़ा (चूड़ा) घर पर ही तैयार करते हैं। अपने खेतों का तिल और गुड़ मिलाकर लाई और तिलकुट का निर्माण एक सप्ताह पहले से शुरु हो जाता है। हर घर से इन पकवानों की सोंधी महक आनी शुरू हो जाती है ।
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पर्व का पौराणिक और वैज्ञानिक आधार
मान्यता है की इसी तिथि को सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है इसीलिए पूरे देश में इस पर्व को मनाया जाता है। दूसरी सोच यह है की अत्यधिक ठंड के मौसम के बाद संक्रांति के दिन से तिल जितनी गर्मी वातावरण में आ जाती है। इस दिन तिल और गुड़ खाने से मनुष्य के शरीर में गर्मी आ जाती है जो बदलते मौसम में शरीर को संतुलित रखने का काम करता है।
एक मान्यता के अनुसार बेटियों को शादी कर दूसरे घर जाना निश्चित होता है। इसलिए बेटियों की जिम्मेवारी अपने ससुराल के प्रति बन जायेगी ऐसा सोचकर बेटियों को तिलकट भरने से दूर रखा जाता है। जबकि बेटे और बहू की जिम्मेवारी घर के बुजुर्गों के प्रति अधिक होती है इसलिए इन्हें तिलकट भरने की परंपरा का निर्वहन करना पड़ता है।
खास भोजन का है पर्व
संक्रांति एक खास भोजन का पर्व माना जाता है। सुबह स्नान करने के बाद चूड़ा,दही, गुड़ और कोहड़ा की सब्जी भोजन में मिलती है। साथ में तिल का तिलकुट, लाई अनिवार्य रूप से भोजन में शामिल होती है। जबकि रात में खिचड़ी बनाया जाती है। कुछ लोग सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को ही खिचड़ी बनाते हैं ।
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