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800 साल बाद जागा सोया शैतान, मच सकती है तबाही

Iceland’s Litli Hrutur Volcano: आइसलैंड में काफी लंबे समय से सुप्त पड़ा हुआ लिटली-ह्रुतूर ज्वालामुखी अचानक ही एक बार फिर से सक्रिय हो गया है। महाद्वीप में बढ़ती अंडरग्राउंड भूगर्भीय गतिविधियों के बाद गत माह 10 जुलाई 2023 को इस ज्वालामुखी से लावा और धुएं का विशाल गुबार निकलने लगा। यह आइसलैंड की राजधानी रेक्जाविक […]

Image Credit: guidetoiceland.is
Iceland's Litli Hrutur Volcano: आइसलैंड में काफी लंबे समय से सुप्त पड़ा हुआ लिटली-ह्रुतूर ज्वालामुखी अचानक ही एक बार फिर से सक्रिय हो गया है। महाद्वीप में बढ़ती अंडरग्राउंड भूगर्भीय गतिविधियों के बाद गत माह 10 जुलाई 2023 को इस ज्वालामुखी से लावा और धुएं का विशाल गुबार निकलने लगा। यह आइसलैंड की राजधानी रेक्जाविक से लगभग 20 मील (30 किलोमीटर) दूर है। इससे बाहर निकलते धुएं के गुबार और पिघले लावे की धरती की परिक्रमा कर रहे सैटेलाइट्स ने तस्वीरें ली हैं।

800 वर्षों से था शांत

यह ज्वालामुखी दक्षिण-पश्चिम आइसलैंड में फाग्राडल्सफजाल ज्वालामुखी क्षेत्र में स्थित है। इसे स्थानीय भाषा में लिटली-ह्रुतूर (Litli Hrutur Volcano अथवा ‘Little Ram’) कहा जाता है। स्थानीय शोधकर्ताओं के अनुसार यह ज्वालामुखी आखिरी बार लगभग 800 वर्ष पूर्व फटा था। तब से अब तक यह पूरी तरह शांत था। हाल ही अचानक यहां पर भूगर्भीय गतिविधियां बढ़ने लगी और उसमें अचानक ही एक छोटा विस्फोट हुआ। विस्फोट के बाद ज्वालामुखी के मुंह से अचानक ही लावा और धुआं निकलना शुरू हो गया। यह भी पढ़ें: Nebula में जन्म लेते हैं सूरज जैसे हजारों-लाखों सितारे, गैस और धूल से होता है इनका जन्म

इलाके में बढ़ गया है खतरा

ज्वालामुखी के फटने की वजह से इस इलाके में टूरिज्म इंडस्ट्री बूम कर रही है। हालांकि भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार यह खतरनाक हो सकता है। स्थानीय क्षेत्र में कई नई दरारें ओपन हो सकती है और लावा की नदियां बह सकती हैं। लावे के साथ इससे सल्फर डाइऑक्साइड सहित कई जहरीली गैसें भी बाहर निकलती हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है।

जल्द हवा में घुल-मिल जाती हैं लावे का साथ निकली जहरीली गैसें

आम तौर पर सल्फर डाइऑक्साइड का जीवनकाल अपेक्षाकृत कम होता है जो इसे हवा से हटा देता है। यह बारिश के पानी या वातावरण में मौजूद जलवाष्प से क्रिया कर सल्फ्यूरिक एसिड भी बना सकती है जो घातक हो सकता है। परन्तु यदि यह गैस पृथ्वी के वातावरण में समताप मंडल में पहुंच जाएं तो फिर ये वहां पर कुछ दिन से लेकर कई वर्षों तक रह सकती है। यह भी पढ़ें: क्या आपने भी देखा है यह चमत्कार, पारे की एक बूंद से बनने लगेंगे फाइबर जैसे धागे

सैटेलाइट्स से की जाती है निगरानी

सक्रिय ज्वालामुखी एक बहुत ही खतरनाक क्षेत्र होता है जहां किसी भी जीव का जाना आत्मघाती हो सकता है। ऐसे में धरती की कक्षा में घूम रहे सैटेलाइट्स के जरिए उन जगहों की निगरानी की जाती है। साथ ही वहां के फोटोज लिए जाते हैं। उपग्रहों में अलग-अलग सेंसर और उपकरण भी ले जाए जा सकते हैं जो ज्वालामुखी का विस्तृत अध्ययन कर सकते हैं।  


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