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इस वजह से 31 अगस्त को दिखेगा ‘Blue Moon’, जानिए क्यों होता है खास

दुनिया भर की सभ्यताओं में ‘Blue Moon’ को एक खगोलीय चमत्कार माना गया है। ब्लू मून के साथ कई तरह की धार्मिक और सामाजिक मान्यताएं भी जोड़ी गई हैं। यदि विज्ञान के हिसाब से देखा जाए तो यह एक सामान्य घटना है जो लगभग प्रत्येक तीसरे वर्ष घटित होती है। आधुनिक विज्ञान में ब्लू मून […]

Image Credit: pxhere
दुनिया भर की सभ्यताओं में ‘Blue Moon’ को एक खगोलीय चमत्कार माना गया है। ब्लू मून के साथ कई तरह की धार्मिक और सामाजिक मान्यताएं भी जोड़ी गई हैं। यदि विज्ञान के हिसाब से देखा जाए तो यह एक सामान्य घटना है जो लगभग प्रत्येक तीसरे वर्ष घटित होती है। आधुनिक विज्ञान में ब्लू मून की दो परिभाषाएं बताई गई हैं। आइए जानते हैं कि ब्लू मून क्या होता है और किस तरह यह हमें प्रभावित करता है। यह भी पढ़ें: इन 3 कारणों से महज 30 सैकंड में हो सकती है एक अंतरिक्ष यात्री की मृत्यु

क्या होता है ‘Blue Moon’

ब्लू मून की दो परिभाषाओं में से एक (और पारंपरिक) परिभाषा के अनुसार वर्ष में कुल चार सीजन होते हैं। इनमें से हर एक सीजन में तीन पूर्णिमाएं आती हैं। यदि किसी सीजन में चार पूर्णिमा आए तो तीसरी पूर्णिमा को दिखाई देने वाले चंद्रमा को ही ब्लू मून कहा जाता है। सरल भाषा में हम कह सकते हैं कि जब एक ही महीने में दो बार पूर्णिमा आती है तो बाद वाली पूर्णिमा पर दिखने वाले चंद्रमा को ब्लू मून (Blue Moon) कहा जाता है। ब्लू मून की दूसरी परिभाषा पूरी तरह से चंद्रमा की गति पर आधारित है। प्रत्येक वर्ष 12 महीनों में कुल 12 पूर्णिमा आती हैं, जिन्हें 12 अलग-अलग नाम दिए गए हैं। परन्तु चांद-तारों की केल्कुलेशन इतनी सरल नहीं होती है। वास्तव में चंद्रमा धरती की परिक्रमा 29.5 दिन में पूरी करता है। इस तरह धरती की 12 परिक्रमाएं पूरी करने में चंद्रमा को केवल 354 दिन लगते हैं जबकि वर्ष में कुल 354 दिन होते हैं। इसलिए प्रत्येक 2.5 वर्ष बाद एक कैलेंडर वर्ष के अंदर 13वीं पूर्णिमा मनाई जाती है। इसी 13वीं पूर्णिमा को दिखाई देने वाले चंद्रमा को ही ब्लू मून कहा जाता है। यह भी पढ़ें: इन जगहों पर आते हैं इतने विशाल तूफान कि पूरी धरती एक बार में बर्बाद हो जाए

कब होती है ब्लू मून की घटना

खगोलीय गणना के अनुसार ब्लू मून की घटना प्रत्येक दो से तीन वर्ष में एक बार होती है। यह पूरे वर्ष के 12 महीनों में से फरवरी को छोड़कर अन्य किसी भी महीने में घट सकती है। फरवरी माह में 28 दिन होने के कारण कभी ब्लू मून नहीं दिखाई देता है। हालांकि जब कभी भी फरवरी माह में पूर्णिमा नहीं होती है तो उसे ब्लैक मून (Black Moon) कहा जाता है। सबसे बड़ी बात, ब्लू मून कभी भी नीला नहीं दिखाई देता है वरन यह भी अन्य पूर्णिमाओं पर दिखने वाले चांद जैसा ही दिखाई देता है। हालांकि पृथ्वी पर मौसम या अन्य चीजों की वजह से चंद्रमा का रंग अलग दिखाई दे सकता है। उदाहरण के लिए वर्ष 1884 में क्राकाटोआ में एक ज्वालामुखी (Volcano) में विस्फोट हुआ था। इससे निकली राख और धूल ने पृथ्वी के काफी बड़े हिस्से को ढंक लिया था। इसकी वजह से धरती के उत्तरी गोलार्द्ध में कई महीनों तक सूर्य और चंद्रमा दोनों ही नीले रंग के दिखाई दिए थे। इसी प्रकार 24 सितंबर 1950 को भी उत्तरी अलबर्टा के जंगलों में लगी भयावह आग से निकला धुंआ करीब 200 मील की चौड़ाई में फैल गया था। इसकी वजह से दिन का सूर्य भी गुलाबी, नीला और बैंगनी रंग में दिखाई देने लगा था। हालांकि ऐसी घटनाएं बहुत दुर्लभ होती हैं और पृथ्वी के बहुत छोटे भाग को प्रभावित करती है। यह भी पढ़ें: भटकती आत्माओं की तरह ब्रह्मांड में घूमते हैं ‘इंटरस्टेलर’

कब होगा Blue Moon

चंद्रमा तथा धरती के बीच की गति का केल्कुलेशन कर हम आसानी से ब्लू मून कब दिखाई देगा, इसका पता लगा सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इस वर्ष 30/31 अगस्त 2023 को ब्लू मून की घटना घटित होगी। इससे पहले पिछला ब्लू मून 22 अगस्त 2021 को दिखाई दिया था, जबकि अगला ब्लू मून 19/20 अगस्त 2024 को दिखाई देगा।  


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