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Sawan 2024: सावन शिवरात्रि पर इस मंदिर में उमड़ती है भक्तों की भीड़, दर्शन मात्र से मिलता है रोगों से छुटकारा!

Sarang Nath Shiv Temple: श्रावण माह में भगवान शिव को समर्पित मंदिरों में शिवभक्तों की अच्छी-खासी भीड़ देखने को मिलती है। लेकिन आज हम आपको महादेव के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहा हैं, जहां भगवान शिव अपने 'साले' सारंग ऋषि के साथ विराजमान हैं। जहां दर्शन करने से साधक को अपनी विभिन्न समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है।

यहां होती है महादेव और उनके 'साले' की पूजा
Sarang Nath Shiv Temple: भगवान शिव को समर्पित सावन का पवित्र मास चल रहा है। वैसे तो श्रावण माह का हर एक दिन खास होता है, लेकिन मासिक शिवरात्रि का विशेष महत्व है। इस पावन दिन भगवान शिव की उपासना और व्रत रखने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस बार मासिक शिवरात्रि का व्रत आज यानी 2 अगस्त 2024 को रखा जाएगा। आज के दिन महादेव को समर्पित मंदिरों में शिवभक्तों की अच्छी-खासी भीड़ देखने को मिलती है। लोग दूर-दूर से शिव जी के दर्शन और शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए भोलेबाबा के प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर जाते हैं। आज हम आपको भगवान शिव के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां महादेव अपने 'साले' सारंग ऋषि के साथ विराजमान हैं।

सारंगनाथ मंदिर में होती है 'जीजा-साले' की पूजा

उत्तर प्रदेश में मौजूद वाराणसी के काशी नगर में भगवान शिव और उनके 'साले' सारंग ऋषि को समर्पित सारंगनाथ मंदिर स्थित है, जिसे बाबा विश्वनाथ के ससुराल के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, देवी सती से भगवान शिव के विवाह की बात माता के भाई सारंग ऋषि को नहीं पता थी। जब मां सती और महादेव का विवाह हो रहा था, तो उस समय  सारंग ऋषि तपस्या में लीन थे। जब सारंग ऋषि तपस्या से जागे और घर जाकर उन्हें पता चला कि उनकी बहन देवी सती का विवाह काशी के किसी योगी के साथ हुआ है, तो उन्हें बेहद क्रोध आया और वो काशी पहुंच गए।

महादेव ने सारंग ऋषि को दिया था वरदान

सारंग ऋषि अपनी बहन को ढूंढते हुए सारनाथ स्थित हिरनों के जंगल में पहुंच गए। एक दिन खत्म होने के बाद भी उन्हें अपनी बहन नहीं मिली, तो वो विश्राम करने के लिए एक जगह पर रुक गए। विश्राम करते हुए उनकी आंख लग गई और वो सो गए। सोते समय उन्होंने सपने में काशी को सोने की नगरी के रूप में देखा। सपने में ये देखकर उन्हें आत्मग्लानि हुई, जिसके बाद वो तपस्या करने लग गए। सारंग ऋषि की तपस्या को देखकर महादेव प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने 'साले' को दर्शन दिए। इसी के साथ महादेव नें सारंग ऋषि को वरदान दिया कि इस जगह पर उनके साथ सारंग ऋषि की भी पूजा की जाएगी। इसी वजह से इस जगह को सारनाथ कहा जाता है। जहां पर भगवान शिव और सारंग ऋषि यानी 'जीजा-साले' की साथ में पूजा की जाती है। ये भी पढ़ें- महादेव-राम और राधा के नाम वाले शर्ट-सूट पहनें या नहीं? जानें प्रेमानंद महाराज से

सावन में यहां विराजते हैं शिव जी

धार्मिक मान्यता के अनुसार, सावन शिवरात्रि के दिन सारंगनाथ मंदिर के दर्शन करने से साधक को भोले बाबा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है, क्योंकि कहा जाता है कि सावन के दौरान भगवान शिव पूरे एक माह के लिए काशी में रहते हैं। इसी वजह से काशी के इस मंदिर में सावन के दौरान शिवभक्तों की भीड़ देखने को मिलती है।

रोगों से मिलता है छुटकारा!

सावन के दौरान सारंगनाथ मंदिर को भव्य रूप से लाइट और फूलों से सजाया जाता है। सुबह-शाम भव्य आरती और मेले का भी आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि सावन के दौरान सारंगनाथ मंदिर में शिवलिंग पर जल चढ़ाने से लोगों को बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है। इसके अलावा मंदिर में मौजूद शिव जी और सारंग ऋषि को गोंद चढ़ाना भी शुभ माना जाता है। ये भी पढ़ें- आज रात 10:15 बजे से 5 राशियों के जीवन में आएगी तबाही! सूर्य गोचर से बढ़ेंगी परेशानियां डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यता पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। 


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