Saphala Ekadashi Vrat Katha In Hindi: जिस प्रकार पक्षियों में गरुड़, नागों में शेषनाग, ग्रहों में सूर्य और देवताओं में भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी तरह व्रतों में एकादशी को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है. खासकर, सफला एकादशी को महापुण्यदायी माना गया है. हर साल पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी का व्रत रखा जाता है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस एकादशी पर पूजा-पाठ और व्रत रखने से जगत के पालनहार भगवान विष्णु को शीघ्र ही प्रसन्न किया जा सकता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सफला एकादशी व्रत को रखने की परंपरा कैसे शुरू हुई? सबसे पहले किसने सफला एकादशी का व्रत रखा था? यदि नहीं, तो चलिए कृपालु श्रीहरि की महिमा की कथा के बारे में जानते हैं, जिसे सफला एकादशी पर पढ़ना व सुनना बहुत ज्यादा शुभ होता है.
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सफला एकादशी व्रत की कथा
युवराज लुम्पक से थे सभी परेशान
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में चम्पावती नामक नगरी में राजा महिष्मान का राज था. राजा महिष्मान के 4 पुत्रों में से सबसे बड़ा बेटा 'लुम्पक' अत्यन्त दुष्ट एवं महापापी था. राज्य के लोग ही नहीं, प्रजा भी लुम्पक से तंग आ चुकी थी लेकिन कभी कोई उसकी शिकायत राजा से नहीं करता था.
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हालांकि, एक दिन राजा महिष्मान को लुम्पक के कुकर्मों का पता चला, जिसके बाद उन्होंने उसे राज्य से निष्कासित कर दिया. राज्य से निकलने के बाद लुम्पक एक वन में रहने लगा, जो कि देवी-देवताओं को अति प्रिय था. वन में एक प्राचीन पीपल का वृक्ष था, जिसके नीचे सुबह-शाम लुम्पक आराम किया करता था. कहा जाता है कि उस पेड़ में देवताओं का वास था.
लुम्पक मूर्च्छित होकर गिर पड़ा
एक दिन वन में ठंडी-ठंडी हवाएं चलने लगीं, जिसके कारण लुम्पक मूर्च्छित होकर गिर गया और अगले दिन तक वैसे का वैसे ही पड़ा रहा. जब सूर्य निकला तो उसकी गर्मी से लुम्पक जागा और वन में भोजन की खोज करने लगा. उस दिन लुम्पक शिकार करने में असमर्थ था, जिस कारण वो फल पेड़ से तोड़कर लेकर आया. हालांकि, भूखा होते हुए भी लुम्पक फलों का सेवन नहीं कर सका क्योंकि वो केवल मांस खाया करता था.
अत: उसने फलों को पीपल की जड़ के पास रखा और दुखी मन से कहा, 'हे ईश्वर, ये फल आपको ही अर्पण हैं. इनसे आप ही तृप्त हों.' ये कहते ही वो रोने लगा और पूरी रात रोते-रोते ही व्यतीत कर दी.
अज्ञानतावश पूर्ण हुआ एकादशी का व्रत
24 घंटे से ज्यादा समय तक लुम्पक भूखा रहा, जिस कारण उससे अज्ञानतावश ही एकादशी का उपवास पूर्ण हो गया. दरअसल, जिस दिन लुम्पक के साथ ये घटना हुई, उस दिन एकादशी थी. लुम्पक के इस उपवास और रात्रि जागरण से भगवान श्रीहरि अत्यन्त प्रसन्न हुए और उसे सभी पापों से मुक्त कर दिया.
प्रातः काल में लुम्पक के सामने एक दिव्य रथ आकर रुक गया, जिसके बाद आसमान से आकाशवाणी हुई 'हे युवराज, भगवान नारायण के प्रभाव से तेरे सभी पाप नष्ट हो गए हैं. अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य को प्राप्त कर.' आकाशवाणी को सुनकर लुम्पक खुश हुआ और अपने पिता को जाकर पूरी बात बताई.
इस कारण लुम्पक बना राजा
पुत्र की सारी बात सुन राजा महिष्मान खुश हुए और उन्होंने अपना राज्य लुम्पक को सौंप दिया. इसी के बाद से देशभर में सफला एकादशी व्रत को रखने की परंपरा शुरू हो गई. माना जाता है कि जो भी भक्त सफला एकादशी व्रत के दिन ये कथा सुनता या पढ़ता है, उसे कृपालु विष्णु जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है. News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.