Matsya Dwadashi Katha: विष्णु जी को जगत का पालनहार माना जाता है, जिन्होंने सृष्टि पर धर्म की रक्षा करने, बुराई का नाश करने और लोगों को अराजकता से बचाने के लिए विभिन्न अवतार लिए हैं. सतयुग में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को विष्णु जी ने सबसे पहले मछली के रूप में मत्स्य अवतार लिया था. इसलिए इस तिथि पर हर साल मत्स्य द्वादशी मनाई जाती है. हालांकि, विष्णु जी के मत्स्य अवतार में धन की देवी मां लक्ष्मी की भी अहम भूमिका थी.
यदि उस समय मां लक्ष्मी अवतार लेकर धरती पर नहीं आतीं, तो विष्णु जी का अवतार लेने का लक्ष्य पूरा नहीं होता. चलिए जानते हैं मत्स्य द्वादशी की संपूर्ण कथा के बारे में.
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मत्स्य द्वादशी की संपूर्ण कथा
राजा को मछली पर आई दया
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में सत्यव्रत नामक एक शक्तिशाली राजा था. एक दिन राजा नदी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य दे रहे थे. जैसे ही राजा ने अपना हाथ पानी से निकाला तो उनके हाथ में एक छोटी-सी मछली आ गई. राजा मछली को नदी में वापस छोड़ ही रहे थे कि वो बोल पड़ी कि 'नदी में बड़े जीव हैं. वो मुझे निगल जाएंगे. कृपया मेरी रक्षा करें.'
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राजा को मछली पर दया आ गई और वो उसे अपने कमंडल में रखकर महल ले गए. अगले दिन राजा मछली को देख चौक गए. दरअसल, मछली का आकार कमंडल से बड़ा हो गया था. राजा मछली के पास गए तो वो उसे देख बोली कि, 'मैं यहां नहीं रह सकती हूं. मुझे बड़ी जगह चाहिए.'
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तालाब से भी बड़ी हो गई मछली
राजा ने मछली को एक बड़े पात्र में रखा. लेकिन दो दिन बाद वो पात्र भी छोटा पड़ गया. राजा ने अब निर्णय लिया कि वो मछली को तालाब में छोड़ देंगे. अगले दिन राजा ने जब मछली को तालाब में छोड़ा तो वो भी छोटा पड़ गया. राजा ये देख हैरान हो गया.
राजा ने मछली से पूछा कि 'आप कौन-हो.' मछली के रूप से विष्णु भगवान प्रकट हुए और उन्होंने कहा 'हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चोरी कर लिया है, जिस कारण संसार में ज्ञान का अभाव है. मैं हयग्रीव दैत्य को परास्त करने आया हूं.' इसी के आगे उन्होंने कहा, आज से 7 दिन बाद पृथ्वी पर प्रलय आएगी. तुम उस दिन एक नाव में सप्त ऋषियों, बीज, अनाज और औषधियां को लेकर तैयार रहना. मैं उस दिन आऊंगा और बताऊंगा कि तुम्हें आगे क्या करना है.
राजा ने माना विष्णु जी का आदेश
सात दिन बाद पृथ्वी पर भयंकर जल प्रलय आया. प्रलय के बीच देवी लक्ष्मी भू देवी के रूप में प्रकट हुईं और पृथ्वी का प्रतीक बनीं. इससे उपजाऊ पृथ्वी सुरक्षित रही. वहीं, दूसरी तरफ विष्णु जी के आदेश के अनुसार सत्यव्रत राजा नाव लेकर तैयार रहे. कुछ ही समय में मत्स्य रूप में विष्णु जी ने राजा को दर्शन दिए और हयग्रीव राक्षस का वध कर ब्रह्मा जी को वेदों को सौंप दिया. इससे पृथ्वी भी सुरक्षित रही और संसार में ज्ञान का प्रकाश एक बार फिर फैल गया.
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है. News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.