सनातन धर्म के लोगों के लिए शादी का खास महत्व है। शादी के दौरान होने वाली हर एक रस्म से लोगों की खास आस्था जुड़ी होती है, जिसे वो सच्चे मन से निभाते हैं। हालांकि शादी होने से पहले वर-वधू की कुंडली मिलाई जाती है। यदि वर-वधू के गुण मिल जाते हैं तो उसके बाद ही उनका विवाह किया जाता है। वैदिक ज्योतिष के मुताबिक, जन्म कुंडली में 12 भाव यानी घर होते हैं, जिनमें स्थित राशि, नक्षत्र, और ग्रहों का अध्ययन करके राशिफल तैयार किया जाता है। जिन लोगों की कुंडली के सातवें भाव में शनि ग्रह विराजमान होता है, उनकी लव लाइफ में परेशानियां आती हैं। जहां सिंगल लोगों की शादी होने में बाधाएं आती हैं, वहीं दूसरी तरफ विवाहित जातकों के जीवन में आए-दिन क्लेश होते रहते हैं।
आज के कालचक्र में पंडित सुरेश पांडेय आपको सातवें भाव से जुड़ी मुख्य बातों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे सही करके आपकी लव लाइफ बेहतर हो सकती है।
सातवें भाव का महत्व
कुंडली के सातवें भाव से जीवनसाथी, विवाह, जीवनसाथी का सौंदर्य, समृद्धशाली जीवनसाथी, दांपत्य सुख और मांगलिक दोष का भी विचार किया जाता है। जन्मकुंडली में सातवें भाव, सप्तमेश, सातवें भाव में बैठे ग्रह, सातवें भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रह और सातवें भाव के कारक ग्रह शुक्र व्यक्ति के वैवाहिक जीवन पर काफी प्रभाव डालते हैं।
सातवां भाव पापी ग्रहों जैसे शनि, मंगल, सूर्य या राहु-केतु के प्रभाव में है या कुंडली में गुरु-शुक्र अस्त स्थिति में हैं तो वैवाहिक जीवन में रुकावटें आती हैं।
विवाहित जातकों के सातवें भाव में शनि अशुभ है तो वैवाहिक जीवन नीरस रहता है। पति-पत्नी के संबंधों में आकर्षण की कमी होती है और जीवनसाथी क्लेश करता है।
अविवाहित जातकों के सातवें भाव में शनि अशुभ स्थिति में होता है तो जीवनसाथी चुनने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। विवाह होने में देरी आती है। यदि रिश्ता तय भी हो जाता है तो बार-बार टूट जाता है।
शादी के बाद किसी दूसरे व्यक्ति की तरफ झुकाव का कारण भी शनि बनता है। सातवें भाव में यदि शनि बैठ जाता है तो ऐसी स्थिति में नौकरी या क्लेश के कारण पति-पत्नी अलग रहते हैं।